और वो तुम्हारा संवाददाता भी कम थोड़े ना है। बोलेगा, मैं आपको 'आंखों देखा हाल' सुना रहा हूं। घटनास्थल पर मौजूद बेटे, तुम कोई अंतर्यामी तो ही नहीं कि बिना आंखों से देखे तुम कोई हाल सुना पाओ। तो सीधा सीधा बोलो कि हाल सुना रहा हूं, 'आंखों देखा' वाला उपसर्ग लगा कर कोई खास वैल्यू एड नहीं कर रहे हो तुम।
और यह फालतू के उपसर्ग लगाने की समस्या सिर्फ तुम्हारे नाम तक सीमित नहीं है। यह क्या लगा रखा है कि 'पाक समर्थित आतंकवादी' ने 'महत्वपूर्ण सुरक्षा ठिकानों' पर 'आतंकवादी हमले' किए। आजतक तुमने और तुम्हारे वरिष्ठ पत्रकार ने 'पाक विरोधी आतंकवादियों' के बारे में कोई समाचार सुनाया है क्या! अगर नहीं तो फिर यह 'पाक समर्थित' का पुछल्ला लगाना बिलकुल भी जरूरी नहीं है। ठीक उसी प्रकार जिसप्रकार अगर आतंकवादी है तो 'आतंकवादी हमला' ही करेगा ना , छायावादी या प्रगतिवादी हमला तो हमने आजतक नहीं देखा। और जहां तक हमले की बात है तो वो 'महत्वपूर्ण सुरक्षा ठिकानों' पर ही होते हैं । बेचारा आतंकवादी अपनी जान दांव पर लगा कर गैर जरूरी ठिकानों पर हमले तो नहीं करेगा ना।
गलती तुम्हारी नहीं है, गलती है उस नासपीटे की जिसने आधे घंटे के समाचार को रबड़ की तरह खीच कर चौबीस घंटे का न्यूज चैनल बना दिया । तो समय भरोगे कैसे? न्यूज के सामने ब्रेकिंग का पुछल्ला लगाओगे, घटना के आगे सनसनीखेज जोड़ोगे और हर मैच को ऐतिहासिक बताओगे, तभी तो इसी रास्ते पर चलकर 'वरिष्ठ पत्रकार' कहलाओगे। लिखने का तो तुम्हारे फालतू शब्दों की पूरी बारात निकाल दें लेकिन किस्मत वाले हो कि हमारे पास फालतू टाइम है नहीं ज्यादा।
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