Tuesday, January 11, 2022

ये राय साहब की हवेली है

ये राय साहब की हवेली है।

पहले गांव की जमीन थी नीची
और ऊंचे से टीले पर बनी थी हवेली
चहारदीवारी से घिरी, 
गांव वालों को दिखती
सिर्फ हवेली की गुंबद
 और ऊंचा तोरण द्वार
जिसपर बनी थी गांव वालों को डराती
मुंह बाए शेरों की जोड़ी,
और बीच में बनी थी
तलवार लिए रायबहादुर साहब की प्रतिमा।
पूरे गांव के बीच हवेली दिखती मानो 
गुदड़ी के बीच किसी ने 
टांक दिया हो हीरे को।
फटेहाल विधवाओं के बीच मानो 
दुल्हन नई नवेली है।
ये राय साहब की हवेली है।

हवेली की नाली का रुख था निचले
गांव की तरफ, हवेली का गंदा पानी
बहता था कच्चे खपरैल मकानों के आंगन होकर
हवेली का कचरा आकर गिरता था 
गांव वालों के तुलसी पिंडे पर
लेकिन गांव वालों की आवाज कभी
ना पहुंच पाती चहारदीवारी के अंदर
हां उसके अंदर से जरूर आती थी 
कड़कती हुई आवाज, 
डांट और फटकार
बदले में इधर से आती
 बस एक आवाज, जी सरकार।
बीच में सर उठाए बैठे राजा भोज
चारों तरफ बिखरे गंगू तेली है
ये राय साहब की हवेली है।

धीरे धीरे गांव वाले जाने लगे 
शहरों की ओर
और उनकी मेहनत की कमाई से 
खपरैल बदलने लगे पक्के मकानों में
ऊंची बनने लगी मकानों की कुर्सियां
और गहरी पड़ने लगी उनकी नींव
निचले गांव भी अब बदलने लगे 
ऊंचे टीलों में
और बंद हो गया हवेली का गंदा नाला
क्योंकि गंदा पानी कितना भी गाढ़ा हो
नीचे से ऊपर नहीं बह सकता
कचरा चाहे हवेली का क्यों ना हो
नीचे से उपर नहीं जा सकता।
डूबी रहती हवेली कचरे और गंदे पानी में
समय ने भी क्या नई चाल खेली है।
ये राय साहब की हवेली है।
अब बाकी गांव बन गया है टीला
और उनके बीच दुबकी सी 
दिखती है हवेली
बौनी हो गई है चहारदीवारी
टूट गए हैं जोड़ी शेरों के दांत
और राय साहब की प्रतिमा
 हो गई है सफेद
कौवे की बीट से
अब अपनी छत पर बैठे गांव वाले
देखते हैं रायबहादुर के पोतों को
 फटी बनियान धोते और पसारते
हवेली के आंगन में
अब हवेली दिखती मलमल से गांव में
टांट का पैबंद जैसी।

समय ने करवट ले ली है
बदल गए सरकार और 
बदल गई उनकी हवेली है।
ये राय साहब की हवेली है।


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