आगामी बजट से उम्मीद यह है कि हम अपनी अर्थव्यवस्था में मांग और उपभोग, खासकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के निम्न आय स्तर वाले वर्ग की मांग और उपभोग के स्तर बढ़ा सकें। हमारी पूरी अर्थव्यवस्था के संवहनीय विकास और राष्ट्रीय आय के समुचित वितरण को सुनिश्चित करने के लिए मध्य और निम्न वर्ग की मांग और उपभोग को बढ़ाने का रास्ता निकालना होगा। इसके लिए आवश्यक होगा कि उनकी अवशिष्ट आय को बढ़ाया जा सके। हमारी आर्थिक प्रगति में जहां हमारी सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि सकारात्मक रही है, इस वृद्धि के लाभ को विकेंद्रित करने में रही हमारी विफलता घटती मांग और उपभोग की दरों के लिए उत्तरदायी है।
हमारे निम्न और मध्य वर्ग की आर्थिक प्रवृतियों को देखें तो बचत उनके आर्थिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है। यही बचत अब तक उनके आर्थिक जीवन का आधार और सबसे बड़ी शक्ति रही है । लेकिन कुछ कतिपय कारणों से यह बचत उनकी आय को बढ़ाने में मददगार सिद्ध नहीं हो रही। बचत के साथ साथ हमारे मध्यवर्ग की एक और प्रसिद्ध प्रवृति है, सोना जैसी कीमती धातु का क्रय और संचय। पिछले इक्कीस सालों में हम भारतीयों ने 433 बिलियन अमरीकी डॉलर का सोना आयातित किया है। टूथपेस्ट की ट्यूब को निचोड़ कर आखिरी बूंद पेस्ट निकालने से लेकर फटी बनियान का पोछा बनाकर इस्तेमाल करना, हमारे मध्यम और निम्न वर्ग को जहां बचत के हजारों तरीके आते हैं, निवेश का बस एक तरीका मालूम है सोना खरीदना। भारतीय सोना को एक सुरक्षित निवेश के रूप में देखते हैं लेकिन इसके कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं वैयक्तिक आय और पूरी अर्थव्यवस्था पर।
सोना खरीदने का मतलब है उसकी बचत की गाढ़ी कमाई का देश के बाहर जाना क्योंकि हमारा सारा सोना आयातित होता है। एक तरफ जहां इस पैसे का इस्तेमाल हमारी देश की प्रगति में नहीं हो पाता वहीं हमारा मध्यवर्ग अपनी बचत को नियमित आय के स्रोत में नहीं बदल पाता। इससे उनकी अवशिष्ट आय कम होती है और अर्थव्यवस्था की मांग और उपभोग की दरें नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।
हमारे बचत के तरीकों में हाल के सालों में सकारात्मक परिवर्तन आए हैं। आज 80% से ज्यादा भारतीय बैंकिंग सेवाओं का इस्तेमाल करके अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा से जुड़ चुके हैं। एक सुखद बदलावों का अगला कदम होगा हमारे मध्यवर्ग में निवेश की आदत डालना। हमारे मध्यवर्ग को इसके लिए प्रेरित करना होगा कि सोने के जगह वो म्यूचुअल फंड और शेयर मार्केट को भी निवेश का एक विकल्प समझे।
आगामी बजट से उम्मीद है कि इस दिशा में कई सकारात्मक कदम उठाए जाएं। 80c के प्रावधानों में बदलाव और कराधान की दरों में कमी करके हम अपने मध्य वर्ग को अर्थव्यवस्था में निवेश के लिए उत्साहित कर सकते हैं। हमारी सरकार यह अच्छे से जानती है कि जब किसी चीज को सारी जनता अपनाती है तो उसका सफल होना निश्चित हो जाता है। 'स्वच्छ भारत मिशन' हो या 'जन धन योजना', इनकी सफलता का मंत्र यही रहा है कि इनको एक सामान्य सरकारी योजना या कानून की तरह लागू ना करके एक जन आंदोलन बनाया गया। इसी तर्ज पर निवेश की आदत को जन आंदोलन बनाने की आवश्यकता है। निवेश में मध्यवर्ग का विश्वास उसी प्रकार से कायम करना होगा जैसा विश्वास मध्यवर्ग का अब तक सोने पर रहा है।आर्थिक असमानता, मांग में कमी और मध्यवर्ग की बचत का सोने में कैद हो जाने वाली पुरानी बीमारियों का यह एक रामबाण इलाज है।
सकारात्मक बात यह है कि हमारी अर्थव्यवस्था के कई घटक अभी काफी मजबूत स्थिति में हैं। हमारा विदेशी मुद्रा भंडार , मुद्रा स्फीति की दर, पूंजी पर ब्याज की दर सब विश्व की बाकी अर्थव्यवस्थाओं जैसे अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस आदि के मुकाबले कहीं मजबूती से खड़ी है। हमारी अर्थव्यवस्था और हमारा देश तैयार है आर्थिक सुधारों को अगले स्तर पर ले जाने के लिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगामी बजट मध्य वर्ग की अवशिष्ट आय बढ़ाने, उनको निवेश के लिए प्रेरित करने और उनको आर्थिक संवृद्धि में शामिल करने की दिशा में निर्णायक फैसले लेगा।
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