Sunday, January 30, 2022

भीष्म का जाना आवश्यक हो जाता है

विचार ऐसे होते हैं जो मरते नहीं। कोई उनको खत्म नहीं कर सकता। इस प्रकार से विचार भीष्म पितामह की तरह होते हैं। इच्छा मृत्यु प्राप्त होती है उन्हें। लेकिन विचार भले ही न मरें, वृद्ध और जीर्ण शीर्ण जरूर होते हैं। मृत्यु नहीं लेकिन उनका क्षय तो जरूर होता है। विचार मरते नहीं लेकिन सड़ते जरूर हैं। पुराने विचारों की प्राणवायु भले न निकले, उनसे पुरानी सड़ांध तो निकलती ही है। पुराने भीष्म की तरह जो विचार अपने जीवन आयु से ज्यादा जी चुके हैं, नई पीढ़ी के गुडाकेश अर्जुन से यह आशा तो की ही जा सकती है कि भले ही उनके हृदय में वृद्ध पितामह का सम्मान हो लेकिन यह सम्मान उनको पितामह को शर शैय्या पर लिटाने से नहीं रोकना चाहिए। नए विचारों की गांडीव का निशाना सड़ चुकी विचारधारा और उसके प्रतिनिधियों की छाती पर ही होना चाहिए। भले ही विचार की मृत्यु हमारे हाथ में नहीं है, उनको तीरों से बिंध कर समेटने के प्रयास में हमारी कोई कसर नहीं रहनी चाहिए। पितामह के जाने के दुख भी हो लेकिन अगर पितामह नए बदलाव के रास्ते में खड़े होकर धर्मयुद्ध में अन्याय के पक्ष में खड़े हों तो अपनी गांडीव का रुख उनकी तरफ मोड़ने में कतई संकोच नहीं होना चाहिए। 

Friday, January 28, 2022

निवेश के लिए प्रेरित करने वाला हो बजट

भारतीय अर्थव्यवस्था के संकेतकों को देखें तो सभी मुख्य संकेतक जैसे कृषि, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, निजी क्षेत्र में तो अर्थव्यवस्था करीब करीब कोरोना पूर्व के युग के स्तर पर आ चुकी है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र और पिरामिड के निचले स्तर के सामान्य उपभोग का स्तर अभी भी अपने कोरोना पूर्व स्तर पर नहीं आ सका है। कोरोना संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी दुखती रग, आर्थिक असमानता को और भी बढ़ा दिया है। अमीर और भी अमीर हुआ है, गरीब और भी गरीब हो गया है। और इसकी बानगी हमें भारतीय अर्थव्यवस्था की मांग और उपभोग की प्रवृतियों को देख कर पता चलता है। जहां एक तरफ महंगे एसयूवी कारों की बिक्री कोरोना पूर्व स्तर से उपर जा चुकी है, 100 सीसी की मोटरसाइकिल की बिक्री गिरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा स्कीम के लाभार्थियों की संख्या में भी अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। वर्ष 2017-18 में मनरेगा के लाभार्थी लोगों की संख्या जहां 7.59 करोड़ थी, वर्ष 2020-21 में अक्टूबर माह तक ही यह संख्या 8.7 करोड़ तक पहुंच चुकी थी। एक तरफ जहां कारों की बिक्री की कुल संख्या गिरी है, महंगे कार सेगमेंट में कारों की संख्या बढ़ी है। आंकड़ों के अनुसार, माह अक्टूबर 2021 में कारों की बिक्री में 21% तक की गिरावट दर्ज की गई है। यह दिखाता है कि हमारी अर्थव्यवस्था अभी उस दौर से गुजर रही है जहां बिना मध्यवर्ग की मांग को बढ़ाए अर्थव्यवस्था की वर्तमान वृद्धि की दर को बनाए रखना कठिन होगा। चूंकि बजट हमारी अर्थव्यवस्था के आने वाले स्वरूप को निर्धारित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण नीतिगत दस्तावेज है, यह आशा की जाती है कि आगामी बजट इन समस्याओं का स्थायी और दीर्घकालिक समाधान निकालने की दिशा में सकारात्मक पहल करेगा।

  आगामी बजट से उम्मीद यह है कि हम अपनी अर्थव्यवस्था में मांग और उपभोग, खासकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के निम्न आय स्तर वाले वर्ग की मांग और उपभोग के स्तर बढ़ा सकें। हमारी पूरी अर्थव्यवस्था के संवहनीय विकास और राष्ट्रीय आय के समुचित वितरण को सुनिश्चित करने के लिए मध्य और निम्न वर्ग की मांग और उपभोग को बढ़ाने का रास्ता निकालना होगा। इसके लिए आवश्यक होगा कि उनकी अवशिष्ट आय को बढ़ाया जा सके। हमारी आर्थिक प्रगति में जहां हमारी सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि सकारात्मक रही है, इस वृद्धि के लाभ को विकेंद्रित करने में रही हमारी विफलता घटती मांग और उपभोग की दरों के लिए उत्तरदायी है।
हमारे निम्न और मध्य वर्ग की आर्थिक प्रवृतियों को देखें तो बचत उनके आर्थिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है। यही बचत अब तक उनके आर्थिक जीवन का आधार और सबसे बड़ी शक्ति रही है । लेकिन कुछ कतिपय कारणों से यह बचत उनकी आय को बढ़ाने में मददगार सिद्ध नहीं हो रही। बचत के साथ साथ हमारे मध्यवर्ग की एक और प्रसिद्ध प्रवृति है, सोना जैसी कीमती धातु का क्रय और संचय। पिछले इक्कीस सालों में हम भारतीयों ने 433 बिलियन अमरीकी डॉलर का सोना आयातित किया है। टूथपेस्ट की ट्यूब को निचोड़ कर आखिरी बूंद पेस्ट निकालने से लेकर फटी बनियान का पोछा बनाकर इस्तेमाल करना, हमारे मध्यम और निम्न वर्ग को जहां बचत के हजारों तरीके आते हैं, निवेश का बस एक तरीका मालूम है सोना खरीदना। भारतीय सोना को एक सुरक्षित निवेश के रूप में देखते हैं लेकिन इसके कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं वैयक्तिक आय और पूरी अर्थव्यवस्था पर।

सोना खरीदने का मतलब है उसकी बचत की गाढ़ी कमाई का देश के बाहर जाना क्योंकि हमारा सारा सोना आयातित होता है। एक तरफ जहां इस पैसे का इस्तेमाल हमारी देश की प्रगति में नहीं हो पाता वहीं हमारा मध्यवर्ग अपनी बचत को नियमित आय के स्रोत में नहीं बदल पाता। इससे उनकी अवशिष्ट आय कम होती है और अर्थव्यवस्था की मांग और उपभोग की दरें नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।
 हमारे बचत के तरीकों में हाल के सालों में सकारात्मक परिवर्तन आए हैं। आज 80% से ज्यादा भारतीय बैंकिंग सेवाओं का इस्तेमाल करके अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा से जुड़ चुके हैं। एक सुखद बदलावों का अगला कदम होगा हमारे मध्यवर्ग में निवेश की आदत डालना। हमारे मध्यवर्ग को इसके लिए प्रेरित करना होगा कि सोने के जगह वो म्यूचुअल फंड और शेयर मार्केट को भी निवेश का एक विकल्प समझे।
आगामी बजट से उम्मीद है कि इस दिशा में कई सकारात्मक कदम उठाए जाएं। 80c के प्रावधानों में बदलाव और कराधान की दरों में कमी करके हम अपने मध्य वर्ग को अर्थव्यवस्था में निवेश के लिए उत्साहित कर सकते हैं। हमारी सरकार यह अच्छे से जानती है कि जब किसी चीज को सारी जनता अपनाती है तो उसका सफल होना निश्चित हो जाता है। 'स्वच्छ भारत मिशन' हो या 'जन धन योजना', इनकी सफलता का मंत्र यही रहा है कि इनको एक सामान्य सरकारी योजना या कानून की तरह लागू ना करके एक जन आंदोलन बनाया गया। इसी तर्ज पर निवेश की आदत को जन आंदोलन बनाने की आवश्यकता है। निवेश में मध्यवर्ग का विश्वास उसी प्रकार से कायम करना होगा जैसा विश्वास मध्यवर्ग का अब तक सोने पर रहा है।आर्थिक असमानता, मांग में कमी और मध्यवर्ग की बचत का सोने में कैद हो जाने वाली पुरानी बीमारियों का यह एक रामबाण इलाज है। 
सकारात्मक बात यह है कि हमारी अर्थव्यवस्था के कई घटक अभी काफी मजबूत स्थिति में हैं। हमारा विदेशी मुद्रा भंडार , मुद्रा स्फीति की दर, पूंजी पर ब्याज की दर सब विश्व की बाकी अर्थव्यवस्थाओं जैसे अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस आदि के मुकाबले कहीं मजबूती से खड़ी है। हमारी अर्थव्यवस्था और हमारा देश तैयार है आर्थिक सुधारों को अगले स्तर पर ले जाने के लिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगामी बजट मध्य वर्ग की अवशिष्ट आय बढ़ाने, उनको निवेश के लिए प्रेरित करने और उनको आर्थिक संवृद्धि में शामिल करने की दिशा में निर्णायक फैसले लेगा।

Tuesday, January 25, 2022

Difference between flag hoisting and unfurling

There is a difference between hoisting a flag on Independence day and unfurling it on Republic Day. On Independence Day, the Indian tricolour is tied at the bottom of the flag pols and then pulled up for hoisting. Usually, the Prime Minister of India hoists the tricolour. This is done to mark the Independence of the country from the British Rule. On the other hand, during the Republic Day celebrations, the flag is already tied up on the top and is unfurled without pulling it up, which depicts that the country is already independent.
Another crucial difference is that the Prime Minister of India hoists the flag on Independence Day as the head of the Central government. This is done since at the time of Independence, the Constitution of India was not in effect and the President who is the constitutional head did not take office. However, on Republic Day, the President, who is the first citizen of the country, attends the Republic Day official event and unfurls the flag.

हिंदी में कहें तो स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधानमंत्री झंडोत्तोलन करते हैं और गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं। इन दोनों समारोह में राष्ट्रध्वज के साथ होने वाले समारोहों में अंतर है और यह अंतर हमें जानना चाहिए। 

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।

Leaked script of Pushpa Remake

Insider information tells me that superstar Salman Khan has agreed to do to the remake of Pushpa- the rise. Actor will start shooting for the movie after completing the current bigg Boss season . Meanwhile producers are changing the script of the movie a bit to suit the stature of the superstar.

Few script changes which I managed to know are as below.

A) Pushpa raj business will be not smugling of illegal sandle wood but Antlers.

B) Pushpa raj will get the antlers from jungle but will never get caught . Even if he is caught, top lawyers will get his bail and thus he will become the king of the trade.

C) As in original movie,Pushpa will do everything to get the girl attention and love. Hero will even woo her but just before the climax, heroine will get married to Keshava, the sidekick leaving the hero distraught.

D) A new heroine will be selected for sequel but most likely she will also not marry the hero but will marry SP Shekhavat in the climax.

E) Hero will take the revenge of the childhood trauma he suffered at the hands of his half-brother in the first movie itself. The half brother will be killed in an accident by the new car hero buys with his first income. Keshava will claim that he was driving the car just to save his friend.

F) The signature style of hero caressing his beard with his hands will be modified a bit as Sallu bhai didn't agree to do it. His bracelet can't be removed even when working as a coolie and there is a chance of beard getting entangled in the bracelet. Hero will simply rotate and adjust his bracelet as his signature move.

G) Film will be considerably shorter in length as Konda Reddy will handover his reign only in his first meeting with the hero as hero will say "Swagat nahin. Karoge hamara". Heroine will agree only in first scene with hero after hero will say, "Maan jao nahin to thappad maar ke bhi manwa sakte hain".

H) In the climax, it will be revealed that Pushpa is the DGP of police in disguise and SP Shekhavat will ask for his forgiveness lying on the feet of Pushpa.

Eagerly waiting for the movie now. Here is the leaked poster..

Sunday, January 23, 2022

राजनीति का द्विवेदी युग

बीसवीं सदी के पहले दशक में हिंदी साहित्य में महावीर प्रसाद द्विवेदी का उदय हुआ। नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका सरस्वती के संपादक के रूप में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने संपादन से परे जाकर दो महती कार्य शुरू किये। पहले उनके प्रयासों से जहां हिंदी भाषा के मानकीकरण की प्रक्रिया को बल मिला। आचार्य द्विवेदी  मानकीकृत भाषा के प्रयोग को जहां मुख्य धारा में शामिल किया, आचार्य द्विवेदी का मुख्य योगदान रहा काव्य की संवेदना और विषयगत कार्यक्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन।

आचार्य द्विवेदी ने समकालीन साहित्यकारों से कहा कि कविता के पारंपरिक विषयों से इतर कविता के लिए नए विषय तलाशे जाय। इतिहास से उन चरित्रों को निकाल कर उनको यथोचित स्थान दिलाया जाय तो अब तक उपेक्षित रहे हैं। बुद्ध के ज्ञान और परिणिर्वाण को लेकर बहुत कागज़ काले किए जा चुके हैं, अब यशोधरा पर लिखा जाय। लक्ष्मण के त्याग और भातृप्रेम का बहुत गुणगान हो चुका, अब अवध में सिसकती उर्मिला की आवाज को सबको सुनाया जाय। अर्जुन के गांडीव की कथाओं से पटे आसमान में सूर्यपुत्र कर्ण की गौरव गाथा की किरणें बिखेरी जाय।

आचार्य द्विवेदी की इस पहल का असर यह हुआ कि हमारी साहित्यिक संवेदना का विस्तार हुआ और साहित्य को उस संकुचन से मुक्ति मिली जिसने हमें अपने इतिहास के ठुकराए गए नायकों की चर्चा तक करने से रोक रखा था। इसीलिए हिंदी साहित्य में राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने  साकेत की रचना की । यह आचार्य द्विवेदी का ही प्रभाव था कि " सखि, वो मुझसे कह कर जाते " जैसी अमर कविता लिखी जा सकी। इसी कारण से बीसवीं सदी के पहले दो दशक निर्विवाद रूप से द्विवेदी युग के नाम से जाने जाते हैं।

भारतीय राजनीति की हालिया प्रवृतियों को देखें तो शायद अभी द्विवेदी युग का प्रतिरूप चल रहा है। सरदार पटेल, नेताजी सुभाष बोस , शहीद ऊधम सिंह जैसे हमारे नायकों को वो सम्मान दिलाने का प्रयास चल रहा है जिसके वो हकदार तो थे लेकिन जो उन्हें प्राप्य ना हो सका था। यकीन मानिए, भले ही इसके कई राजनीतिक अर्थ निकाले जा सकते हैं, इन प्रयासों से हमारी राजनैतिक विमर्श, सोच और इतिहास बोध का दायरा विस्तृत और समृद्ध ही होगा। जिस प्रकार द्विवेदी युग समाप्त होने के काफी बाद राष्ट्रकवि दिनकर ने रश्मिरथी जैसा काव्य रचा, राजनीति की इन नवीन प्रवृतियों का सुखद फल हमें आने वाले लंबे समय तक मिलना तय है।

नेताजी की एक सौ पच्चीसवीं जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र का नमन।।

Thursday, January 20, 2022

Pushpa Jhukega Nahin

Spoiler alert.. If you haven't seen movie Pushpa , you can wait to read ahead till you see the film. Go , watch the movie and come back.. kyonki jo aaj mere ko kahna hai woh main kahne se rukega nahin..

Pushpa movie has a running theme of lineage and family. Protagonist is humiliated repeatedly by his adversaries for not having a family surname. In the climax, Pushpa strips SP Shekhavat and himself and says that even without clothes, I am still Pushpa and people will respect me. However without the police uniform, SP Shekhavat will have no respect. He further says that respect comes from inner virtues not the accessories you wear like branded clothes.
This scene has a message for bollywood. They should think if they are like Shekhavat whom even his dog won't recognise without his uniform. So dear bollywood.. What will be bollywood without Manish Malhotras, foreign locations and Shamelss PR agencies. Nothing.. because you are left with no content. All you have now is remixes and remakes .. so while you are so busy in remixes and remakes, what you should really do is Rethink.

Forget making Pushpa, you did such a shody job of even dubbing it.. Still the movie beat your alpha fim 83 by an inning and 250 runs in an ODI. Because despite all its flaws, Pushpa is raw. Pushpa has made its own brand and doesn't derive its value and appeal from external accessories. It is an Indian film where every element in the film is indian and it doesn't look like a wannabe Hollywood film. That's why it works and works like magic. 

No doubt, movie pushpa has flaws. But atleast those flaws are also flaws of our indian society and are not borrowed and imported flaws. Hero suffers from issues that a boy in average indian society faces, that's why people relate to him. So either you mend your ways and accept and celebrate your indian roots or else perish.

Kyonki Pushpa with its inner brand and ruthlessness, tere saamne kabhi jhukega nahin. One more thing, with this OTT thing and acceptance of South Indian cinema after Bahubali, yeh tera remake wala dhandha bhi jysati chalega nahin..


Monday, January 17, 2022

दो दूधिया बच्चे

गुनगुनी धूप में खेलते
बकरी के दो दूधिया बच्चे।

रात भर सोए रहे अपनी मां के पास
दुग्ध धारा रही प्रवाहित 
गर्माहट वाले प्रेम का पोषण मिला खास
अब संक्रति की सुबह जब चरने को निकली मां
शिशु द्वय अब भी न लेने देते मां को श्वास।
मां के पीछे उछलते कूदते जुड़वां 
भले कदम हैं कच्चे
गुनगुनी धूप में खेलते
बकरी के दो दूधिया बच्चे।
यह निश्छल रंग है मां का
प्रेम का या मां के दूध का,
जिससे हैं सराबोर बच्चे 
और उनका तिनका तिनका
बाबा नागार्जुन वाला दूधिया वात्सल्य
मानो है हर तरफ छलका
छटकती रोशनी है बताती कि
है चारों तरफ जुड़वां ऊन के गोलों के चर्चे
गुनगुनी धूप में खेलते
बकरी के दो दूधिया बच्चे।

भूखी मां ने खा लिए गुलाब के दो पौधे
बच्चों ने मचाया उत्पात, गमले पड़े औंधे
शोर करता आया माली , जब देखा श्वेत वसना जुड़वे
बस दे पाया गुलाबी सी झिड़की,
उतर गई त्योरियां क्रोध रह गए आधे
जैसे दुनिया हो गलत, मां बच्चे लगे सच्चे
गुनगुनी धूप में खेलते
बकरी के दो दूधिया बच्चे।
गुनगुनी धूप में खेलते
बकरी के दो दूधिया बच्चे।




Sunday, January 16, 2022

बागबां से जुड़े अनसुलझे सवाल

वैसे मैं इनसेप्शन और इंटरस्टेलर फिल्म भी दो तीन बार देख कर करीब करीब समझ गया था, लेकिन बागबां फिल्म समझना मेरे बस से बाहर है। पहली बात कि बहुओं को अपनी सास से क्या समस्या थी? सारा कुछ तो सास ने बहुओं और बेटों को दे ही दिया था। लेकिन बहू है कि सास को सताए जा रही हैं। इतनी उमर होने के बाद भी सास का अपनी सारी बहुओं से ज्यादा हॉट लगने पर बहुओं में जलन स्वाभाविक है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं सास को ससुर से अलग कर दिया जाय।

बेटों और बहुओं के द्वारा सास ससुर को अलग रखने की साजिश कहीं जायदाद को लेकर उनका लोभ तो नहीं था। यह अलग बात है कि उतनी उमर हो जाने पर भी सास ससुर की हरकतें देख कर बहुओं को हमेशा एक नए देवर के आने का डर सताता रहता होगा। वैसे जिस तरह बच्चन साब सिक्सटी प्लस होने के बाद भी घर से छुप छुपाकर पीसीओ से बीवी को फोन पर गाने सुनाते थे, उनका यह डर आधारहीन तो बिल्कुल नहीं था। अगर बागबां फिल्म में बिग बी और हेमा जी के एनर्जी लेवल को देखें तो बागबां फिल्म का सीक्वेल बागबां 2 नहीं बल्कि 'बधाई हो' होनी चाहिए।
 
एक और बात समझ में नहीं आई कि बच्चन साब तो आईसीआईसीआई बैंक से रिटायर हुए थे तो कंप्यूटर सब पर बढ़िया से काम करना जानते होंगे। फिर नोवेल लिखने के लिए उनको बाबा आदम के ज़माने का खट खुट करने वाला टाइपराइटर ही क्यों चाहिए। अब रात को बगल वाले कमरे में बैठ कर कोई टाइप राइटर चलाए तो बेटा बहु क्या समझेंगे। यही ना कि बुड्ढा ना सोऊंगा और ना सोने दूंगा के सिद्धांत को घर में लागू करने पर आमादा है।

सिर्फ यही हो तो बेटा बहू बर्दाश्त भी कर लें, लेकिन जो बुड्ढा घर पर एक टूटा चश्मे बनवाने के लिए चेहरे से गुरुदत्त बन के सत्याग्रह कर रहा हो, वोही बाहर जाकर वेलेंटाइन डे पर चली चली फिर चली चली पर डांस करे तो शक तो होना स्वाभाविक है। जैसी इस बूढ़े की हरकतें हैं उनको तो देख कर तो यही लगता है कि सलमान खान ही इसका असली बेटा है और यह चारों गोद लिए हुए बेटे हैं। एक बात और बागबां में दिखाते हैं कि जिस बच्चे को वो गोद लेते हैं वो पहले फुटपाथ पर रहता है और बड़ा होकर सलमान खान बनता है। यह तो उल्टी बात हुई ना, लोग पहले सलमान खान बनते हैं, उसके बाद वो गाड़ी लेकर फुटपाथ पर जाते हैं। एक बात और, यह महिमा चौधरी के पास कौन सा स्पेशल टैलेंट है कि वो हमेशा सताए हुए करोड़पति लोगों के पास पहुंच कर उनकी गर्लफ्रेंड बन जाती हैं । हमने धड़कन में भी देखा था इनको शेट्टी अन्ना के पास डांस करते हुए, इधर भी सलमान के साथ बाबूजी बाबूजी की रट लगाते दिख जाती हैं। 

और एक नॉवेल लिख के आज तक कौन करोड़पति बना है खास करके हमारे भारत में जहां उपन्यास सम्राट प्रेमचंद भूखे मर गए। चेतन भगत ने बीस नोवेल लिख दिए, बेचारे ने जितने रुपए नहीं कमाए उससे ज्यादा उसपर मीम बने हुए हैं सोशल मीडिया पर। अब इसने ऐसा कौन सा उपन्यास लिख दिया कि पैसे भी मिले और सम्मान समारोह भी हो रहे हैं। कोई यह फार्मूला चेतन भाई को भी बताओ, उनको ना पैसे मिल रहे और सम्मान तो सपने में भी नसीब नहीं है।

आपके पास अगर इन सवालों के जवाब हैं कृपया बताएं। और यह भी बताएं कि अगर आपके पास बागबां देख कर उसपर रिसर्च करने का समय है तो आप भी खाली समय में कोई नोवेल क्यों नहीं लिखते। क्या जाने आपकी भी किस्मत खुल जाय। 

Saturday, January 15, 2022

The secret to joy

विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्।।

Literal meaning of this shloka is as below
True and complete knowledge gives discipline, from discipline comes worthiness, from worthiness one gets wealth, from wealth one does good deeds, and from those good deeds from comes joy.

We  often miss the catch in last line and think that with wealth, joy will come. While the truth is that you have do good deeds aka Dharma which will lead to attainment of joy. This shloka answers the most fundamental yet the most complex question that is how can we be happy and get joy. Only wealth can never give Happiness. It's the Daan and Dharma you do with your acquired wealth that can give you Joy.

Enjoy the festival of Daan and Uttarayan. Best wishes for Makar Sankranti.. May you get a joyful life.

Friday, January 14, 2022

फालतू शब्दों का पुछल्ला

पता नहीं क्यों लोग हमेशा 'पतली गली' क्यों कहते हैं, हमने आज तक 'मोटी गली' का नाम नहीं सुना। जिस तरह से गली हमेशा पतली होती है वैसे ही साजिश हमेशा 'सोची समझी साजिश' ही होती है। अगर बिना सोची साजिश नहीं होती तो सीधा साजिश भी कहने से काम चल जाना चाहिए था। लेकिन नहीं, जिस प्रकार हर पत्रकार को 'वरिष्ठ पत्रकार' कहने की खानापूर्ति की जाती है और उसी प्रकार हर साजिश को 'सोची समझी साजिश' कहने का चलन फालतू में ही है। अब यह वरिष्ठ पत्रकार लोग हमेशा 'घटनास्थल पर मौजूद' संवाददाता से बात करके समाचार लेते हैं। अरे मेरे वरिष्ठ वाले भैया, तुमने आजतक 'घटनास्थल से नदारद' संवाददाता से कोई समाचार लिया है क्या? अगर नहीं तो जैसे अपने नाम के आगे वरिष्ठ लगा लेते हो वैसे ही अपने संवाददाता के नाम के आगे 'घटनास्थल पर मौजूद' लगाना जरूरी समझते हो। 

और वो तुम्हारा संवाददाता भी कम थोड़े ना है। बोलेगा, मैं आपको 'आंखों देखा हाल' सुना रहा हूं। घटनास्थल पर मौजूद बेटे, तुम कोई अंतर्यामी तो ही नहीं कि बिना आंखों से देखे तुम कोई हाल सुना पाओ। तो सीधा सीधा बोलो कि हाल सुना रहा हूं, 'आंखों देखा' वाला उपसर्ग लगा कर कोई खास वैल्यू एड नहीं कर रहे हो तुम। 

और यह फालतू के उपसर्ग लगाने की समस्या सिर्फ तुम्हारे नाम तक सीमित नहीं है। यह क्या लगा रखा है कि 'पाक समर्थित आतंकवादी' ने 'महत्वपूर्ण सुरक्षा ठिकानों' पर 'आतंकवादी हमले' किए। आजतक तुमने और तुम्हारे वरिष्ठ पत्रकार ने 'पाक विरोधी आतंकवादियों' के बारे में कोई समाचार सुनाया है क्या! अगर नहीं तो फिर यह 'पाक समर्थित' का पुछल्ला लगाना बिलकुल भी जरूरी नहीं है। ठीक उसी प्रकार जिसप्रकार अगर आतंकवादी है तो 'आतंकवादी हमला' ही करेगा ना , छायावादी या प्रगतिवादी हमला तो हमने आजतक नहीं देखा। और जहां तक हमले की बात है तो वो 'महत्वपूर्ण सुरक्षा ठिकानों' पर ही होते हैं । बेचारा आतंकवादी अपनी जान दांव पर लगा कर गैर जरूरी ठिकानों पर हमले तो नहीं करेगा ना। 
गलती तुम्हारी नहीं है, गलती है उस नासपीटे की जिसने आधे घंटे के समाचार को रबड़ की तरह खीच कर चौबीस घंटे का न्यूज चैनल बना दिया । तो समय भरोगे कैसे? न्यूज के सामने ब्रेकिंग का पुछल्ला लगाओगे, घटना के आगे सनसनीखेज जोड़ोगे और हर मैच को ऐतिहासिक बताओगे, तभी तो इसी रास्ते पर चलकर 'वरिष्ठ पत्रकार' कहलाओगे।  लिखने का तो तुम्हारे फालतू शब्दों की पूरी बारात निकाल दें लेकिन किस्मत वाले हो कि हमारे पास फालतू टाइम है नहीं ज्यादा।

Thursday, January 13, 2022

इंजीनियरिंग कॉलेज की दास्तान

इंजीनियरिंग कॉलेज में पांच तरह के लड़के होते हैं। पहले वो जिनको पता है कि चाहे वो कुछ भी कर लें, चाहे एग्जाम में टॉप मार दें, लड़की उनको भाव देने वाली नहीं है। तो निराशा में वो बाबा बन जाते हैं। जहां बाकी लड़के अलग अलग हेयरस्टाइल ट्राय करते नजर आते हैं, कोई बढ़िया हेयरकट के बाद बढ़िया सी लाल टोपी लगा के घूमता है तो कोई हैदराबाद से बाल कटवा कर आता है तो वोही बाबा लोग सर मुंडवा कर क्लास में बैठते हैं। उनको बस टोपी वालों का मजाक उड़ाना होता है पिछली बेंच पर बैठ कर। और कहते फिरते हैं कि बाबा तो सबके हैं, सिर्फ लड़की क्यों हम सबको भाव देते हैं । लेकिन दुनिया जानती है कि बाबा अपने बर्थडे पार्टी में सिर्फ लड़कों को बुलाते हैं।

दूसरे तरह के लड़के वो हैं जिनसे लड़की पटी होती है। बेचारे इस टाइप के लड़के अपनी लड़की के नखरे उठाने में ही व्यस्त रहते हैं। लड़की की हर मांग मानते मानते उसकी टोपी और धोती दोनो ढीली हो जाती है। उनके क्लास नोट्स लड़की के लिए, उनकी बर्थडे पार्टी पर निमंत्रण सिर्फ लड़की को, यहां तक कि सारे गिफ्ट भी उसी लड़की के लिए। बेचारे एक लड़की के इतने नजदीक आ जाते हैं कि अपने क्लास के बाकी लोगों से दूर होने लगते हैं , बाद में एग्जाम पास आने पर वो बाकी लोगों के पास हेल्प के लिए घूमते रहते हैं कि भैया, एग्जाम में हेल्प कर दियो, बस इ बार माफ कर दियो, लड़के हैं, गलती हो जात है। अबकी बार तुमको भी गिफ्ट देंगे, हम पर भरोसा नहीं है, ई लो हमारा लैपटॉप रख लो। बस कैसे भी करके हमको एग्जाम पास करवा देना।

तीसरे वो लड़के हैं जिन्होंने कॉलेज में नाम भी नहीं लिखाया लेकिन पड़ोस वाले कॉलेज से रोज कैंटीन में आकर बैठते हैं और लड़की को घूरते हैं। लड़की को कहते रहते हैं कि ए लड़की, ई तुम्हारे ब्वॉयफ्रेंड ने आज तक तुमको सिर्फ ठगा है। हम हैं तुम्हारे सच्चे आशिक। हमारी हो जाओ तुमको तुम्हारा सारा हक दिलवाएंगे। अगली बार कॉलेज का प्रेसिडेंट भी बनवा देंगे। बेचारा लड़की का ब्वॉयफ्रेंड सबसे कहता फिरता है कि कॉलेज की कैंटीन में बाहर से लड़के बाबा ने ही बुलवाए हैं, खुद तो लड़की पटा नहीं सकते तो बाहर से लड़कों को बुला कर हमारी गर्लफ्रेंड पर डोरे डलवा रहे हैं।

चौथे टाइप के लड़के वो हैं जिन्हें शायद लड़की कभी  किसी एक सेमेस्टर में ब्लाइंड डेट पर ले गई थी। उसके बाद से लड़की कभी उनकी तरफ देखती नहीं। इसी गम में अब वो क्लास भी कम आते हैं। बस कभी कभी किसी फंक्शन में दिख जाते हैं लोगों से शिकायत करते कि सिस्टम ही ठीक नहीं है, सारा सिस्टम हैक कर लिया है। नहीं तो सारी लड़की तो हम पर मरती है लेकिन सिस्टम हैक हो जाने के कारण वेलेंटाइन डे के दिन दूसरे के साथ डेट पर चली जाती हैं।

और पांचवे वो लड़के हैं जो न तीन में हैं न तेरह में। बाकी लड़के उनको अपने पास फटकने नहीं देते और लड़कियां भी इनपर ध्यान नहीं देती। लड़की पटाने के लिए ना इनके पास पैसे हैं और न पढ़ने में तेज हैं कि लड़के आके कहें कि भैया यह वाला टॉपिक पढ़ा दो। बेचारे इसी उपेक्षा का शिकार होकर हारे को हरिनाम की तर्ज पर फेमिनिस्ट बन जाते हैं। लड़की को कहते हैं कि हमारे साथ आओ हम तुमको लड़ना भी सिखाएंगे । तुम लड़की हो लड़ सकती हो।  तुम्हारा ब्वॉयफ्रेंड तुमको टोंटी देकर बेवकूफ बना रहा है, हम तुमको टोंटी की जगह एक स्कूटी  देंगे ।
अब लड़की कन्फ्यूज्ड हो जाती है। कभी टोपी वाले बॉयफ्रेंड पर शक करती है तो कभी कभी बाहर से आए  लड़के से भी बतिया लेती है। कभी स्कूटी का लालच भी मन में आ जाता है । कभी कभी तो बाबा भी ठीक लगने लगते हैं।

अरे एडिटर भैया, बात इंजीनियरिंग कॉलेज की हो रही है तो यह फोटो यूपी इलेक्शन वाली काहे लगा दी। ई फोटो तो न्यूज चैनल वालों को भेजो जो दिन रात मुस्लिम वोट किधर जायेगा पर हल्ला मचाते रहते हैं। यहां कोई और फोटो लगाओ, चकाचक वाला। 

Tuesday, January 11, 2022

ये राय साहब की हवेली है

ये राय साहब की हवेली है।

पहले गांव की जमीन थी नीची
और ऊंचे से टीले पर बनी थी हवेली
चहारदीवारी से घिरी, 
गांव वालों को दिखती
सिर्फ हवेली की गुंबद
 और ऊंचा तोरण द्वार
जिसपर बनी थी गांव वालों को डराती
मुंह बाए शेरों की जोड़ी,
और बीच में बनी थी
तलवार लिए रायबहादुर साहब की प्रतिमा।
पूरे गांव के बीच हवेली दिखती मानो 
गुदड़ी के बीच किसी ने 
टांक दिया हो हीरे को।
फटेहाल विधवाओं के बीच मानो 
दुल्हन नई नवेली है।
ये राय साहब की हवेली है।

हवेली की नाली का रुख था निचले
गांव की तरफ, हवेली का गंदा पानी
बहता था कच्चे खपरैल मकानों के आंगन होकर
हवेली का कचरा आकर गिरता था 
गांव वालों के तुलसी पिंडे पर
लेकिन गांव वालों की आवाज कभी
ना पहुंच पाती चहारदीवारी के अंदर
हां उसके अंदर से जरूर आती थी 
कड़कती हुई आवाज, 
डांट और फटकार
बदले में इधर से आती
 बस एक आवाज, जी सरकार।
बीच में सर उठाए बैठे राजा भोज
चारों तरफ बिखरे गंगू तेली है
ये राय साहब की हवेली है।

धीरे धीरे गांव वाले जाने लगे 
शहरों की ओर
और उनकी मेहनत की कमाई से 
खपरैल बदलने लगे पक्के मकानों में
ऊंची बनने लगी मकानों की कुर्सियां
और गहरी पड़ने लगी उनकी नींव
निचले गांव भी अब बदलने लगे 
ऊंचे टीलों में
और बंद हो गया हवेली का गंदा नाला
क्योंकि गंदा पानी कितना भी गाढ़ा हो
नीचे से ऊपर नहीं बह सकता
कचरा चाहे हवेली का क्यों ना हो
नीचे से उपर नहीं जा सकता।
डूबी रहती हवेली कचरे और गंदे पानी में
समय ने भी क्या नई चाल खेली है।
ये राय साहब की हवेली है।
अब बाकी गांव बन गया है टीला
और उनके बीच दुबकी सी 
दिखती है हवेली
बौनी हो गई है चहारदीवारी
टूट गए हैं जोड़ी शेरों के दांत
और राय साहब की प्रतिमा
 हो गई है सफेद
कौवे की बीट से
अब अपनी छत पर बैठे गांव वाले
देखते हैं रायबहादुर के पोतों को
 फटी बनियान धोते और पसारते
हवेली के आंगन में
अब हवेली दिखती मलमल से गांव में
टांट का पैबंद जैसी।

समय ने करवट ले ली है
बदल गए सरकार और 
बदल गई उनकी हवेली है।
ये राय साहब की हवेली है।


Sunday, January 9, 2022

पेन वाले पेन की दास्तान

बैंक में जाने वालों लोगों के प्रकारों में सामान्यतया शामिल किया जाता है उनको जो या तो पैसा जमा कराने आए हों, या पैसा लेने आए हों। थोड़े बूढ़े लोग हुए तो अपना पासबुक अपडेट करवाने वाले भी एक अलग कैटेगरी में शामिल किए जाते हैं। लेकिन इन सब में एक और प्रकार वाले लोग होते हैं जिन्हें लोग अक्सर बैंक में मिलते तो हैं लेकिन लोग उन्हें बैंक जाने वालों को सूची में शामिल करना भूल जाते हैं।

ऐसे लोग सामान्यता आपको एक भोली सी शकल बना कर आपसे मिल कर एक बड़ा ही मासूम सवाल पूछते हैं। यह मासूम सवाल कुछ भी हो सकता है, जैसे भाई साब एक मिनट के लिए पेन देंगे क्या? एक कलम होगा क्या आपके पास। देखिए पैने लगा भूल गए।जरा पेन दीजिएगा एक फॉर्म भरना है। मेरा पेन ही नहीं चल रहा है, जरा पेन दीजिए। तुरत वापस कर देंगे।
इस प्रकार के लोग आपसे तब पेन मांगेंगे जब आप या तो अपने फॉर्म को भरने में व्यस्त हैं या कैशियर के साथ अपने सिग्नेचर मिसमैच को लेकर डिस्किस कर रहे हैं या सुंदर सी कैशियर मैडम का इंतजार कर रहे हैं जो अपने बच्चे के लिए स्वेटर बुनने में व्यस्त हैं। पेन मांगने वाले इन्ही मौकों की ताक में रहते हैं ताकि आपका ध्यान कहीं और लगा रहे और आपको उनकी शकल याद ना रहे।
यकीन मानिए आपसे पेन लेने के बाद ना वो दीनता पूर्ण आवाज आपको सुनाई पड़ेगी और ना ही वो भोली शकल आपको दिखेगी। आप को जब तक अपने पेन की फिर से जरूरत पड़ेगी या याद आयेगी, वो सुहानी सूरत आपसे कहीं दूर जा चुकी होगी । आप भी सोचेंगे कि पेन मांगने वाले को भुगतान काउंटर खा गया या नकद रोकड़ी वाला निगल गया। जो भी हो, यह सब व्यर्थ की बातें हैं। आपका पेन आपसे हमेशा हमेशा के लिए दूर हो चुका होता है।
अगर आपको लगता है कि पेन मांग कर गायब हो जाने वाले लोगों के शिकार सिर्फ आप हैं क्योंकि आप एक सच्चे सहृदय व्यक्ति हैं जिनका मानवता पर से विश्वास अभी तक नहीं उठा । और इसी का फायदा उठा कर आपको आपके प्यारे पेन से वंचित कर दिया गया है तो आप एक बहुत बड़े मुगालते में हैं। भाई साब यह पेन मांगने वाले सिक्योरिटी वालों तक से पेन मांग कर गायब हो जाते हैं और उनके हाथ की दुनाली धरी की धरी रह जाती है। बेचारे अपनी जान पर खेल कर बैंक में लाखों की नकदी को तो डाकुओं से बचा लेते हैं लेकिन अपने पेन को बचा पाने में वो असमर्थ ही रहते हैं।
पेन मांगने वालों का प्रभाव आपको बैंक में हर जगह दिखेगा। मैनेजर के केबिन के बाहर लिखा प्रवेश निषेध का बोर्ड इनके आतंक का प्रतीक स्तंभ है। नकदी और लाकर के बाहर एके56 लेकर खड़ी सिक्योरिटी सिर्फ इसीलिए खड़ी रहती है कि कोई कलम के स्टाइल में बैंक की नकदी मांग कर गायब ना हो जाए।

इन्ही के कारण तलवार से भी शक्तिशाली माने जाने वाली कलम बैंक में गंदे मटमैले दंगे बंधी निकासी फॉर्म वाली गड्डी के पास झूलती रहती है। मानो अपनी किसी जवान लड़की को उसके बाप ने घर पर नजरबंद कर रखा हो कि कोई उसको फुसला कर भगा ना ले जाय । बताओ गलती पेन मांगने वालों की और ताउम्र सजायाफ्ता हो जाती है बेचारी पेन।

इन पेन मांगने वालों का तरीका इतना शातिर है कि स्पेशल 26 वाली टीम भी इनके सामने पानी भरती नजर आती है। लेकिन इनके विक्टिम लोगों के पास अपने जख्म सहलाने और दुबारा पेन खरीदने के सिवा कोई चारा नहीं। इनके पीड़ित पूरे देश खासकर उत्तर भारत में पाए जाते हैं जो आपको बात बात पर पेनचोर पेनचोर कहकर अपनी भड़ास निकालते सुने जा सकते हैं। आप भी अगर पेन मांगकर गायब हो जाने वालों के शिकार हुए हों तो साला पेनचोर जोर जोर से कह कर अपना दर्द कम करने का प्रयास कर सकते हैं। करके देखिए, शायद दर्द कम हो जाय या कोई हमदर्द ही मिल जाए तो अपना पेन ( दर्द वाला) आप उसके साथ बांट सकते हैं। वो कहते हैं ना कि सुख बांटने से बढ़ता है और पेन बांटने से घटता है। 

Wednesday, January 5, 2022

The modern Dadhichi

Yesterday, a 84 year old man in Bihar was caught trying to take 12th dose of COVID vaccines. Many people made fun of him which seems to be bit harsh on him. We can look into his adventure from different perspective with a positive mindset.

This man should be given immediate tourist visa of USA as vaccination brand ambassador to convince anti-vexxers to assure them that vaccines are safe and should be adopted.

He is a walking clinical trail setup and should be used as a national treasure  who has already donated his body while still alive to the greater cause of medical reaseach. How about a Padma Shri next year?

He also claims that multiple shots of COVID vaccine has helped him relieve his knee ache. It is definitely something worth investigating for its further usage. Research subject could be whether vaccines can help us fight other diseases like piles. Also, if these effects are valid limited only to free vaccines or it is equally effective when people have to pay for it.

He has also shown the fallacy in our aadhar authentication system. What he has discovered for free is generally done by world class hackers who charge a huge fee. He  should be given an advisory role at ministry of information technology as an consultant hacker.

He has also shown mirror to those headlines craving celebrities a way how to grab headlines without spending big bucks on PR agencies.

But aa usual, we people are slow to recognise the genius in this old man. We Biharis are simply making fun of this modern era Dadhichi by quoting a popular old bihari idiom.
मुफत के चंदन, रगड़ ले बेटा रघुनंदन
वो भी एकाध रत्ती नहीं, ललाट भर के। 

Sunday, January 2, 2022

पब्लिक है सब जानती है

यह पब्लिक है सब जानती है, लेकिन जिन विषयों के बारे में जानती है उन पर चुप रहती है।

यह पब्लिक है जिसके बारे में कुछ नहीं जानती है, उस पर जरूर बोलती है।

यह पब्लिक है जिसके बारे में ना जानती है ना समझती है, वहां बोल बोल कर अपनी भड़ास निकाल देती है।
क्योंकि यह पब्लिक है और यह जानती है कि जहां और जिसके बारे इसको बोलना चाहिए था वहां यह चुप रहती है । 

यह एक सच्चाई है और यह हर पब्लिक जानती है।