जब बहुत काटता है
दुनियादारी का वह मोटा लबादा
उसके बनावटी बेलबूटे
और उसका असहनीय भारीपन, इंसानों का
तब जरूरी हो जाता है नंगापन।
अच्छी लगती तस्वीरों में
म्यान चढ़ी तलवार है
जीतती है जो जंग वो
नंगी तलवार की धार है
शांति काल में भले लगे अच्छी
म्यान चढ़ी तलवार का नजाकतपन
दुश्मन घुस आए घरों में, तलवारों का
तब जरूरी हो जाता है नंगापन।
कांटे भी लगते सुहाने
दस्ताने चढ़े हाथों से
झूठा भी लगता सच्चा
चिकनी चुपड़ी बातों से
जब महसूस करना हो चिकने संगमरमर
के किनारों का छुपा खुरदुरापन
निकाल फेंको दस्ताने, हाथों का
तब जरूरी हो जाता है नंगापन।
आंखों में चढ़े चश्मे में दिखती
भूख और मुफलिसी भी रोमानी
नंगी आंखों से ही दिखता कि बड़े
बंगलों की ज़िन्दगी भी
है कितनी बेमानी
आंखों में सूरमा और आंखों पे चश्मा
सुन्दर भले लगे कविताओं में
वेदना से बहते आंसू पोछने को
हटाना पड़ता है चश्मा, आंखों का
तब जरूरी हो जाता है नंगापन।
नंगा आदमी ही करता सृजन
बुलेट प्रूफ जैकेट पहन तो
मौत बरसाई जाती है
नंगा ही जन्म लेता इंसान
कफ़न ओढ़ तो चिता सजाई जाती है
नंगे का ज़मीर होता साफ
ना उसपे रखा कोई वज़न
जब डराना को खुदा को, बंदे का
तब जरूरी हो जाता है नंगापन।
जब बहुत काटता है
दुनियादारी का वह मोटा लबादा
उसके बनावटी बेलबूटे
और उसका असहनीय भारीपन, इंसानों का
तब जरूरी हो जाता है नंगापन।
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