छोटी हो रही खुशियां
बड़े हो रहे गम
बड़ा होता जा रहा अंतर्तम
बड़ी हो रही वह खाई विषम
बड़ी लगने लगी ज़िन्दगी
इसके जुल्म औ सितम
मशीनें होती जा रही छोटी
सोच होती जा रही छोटी
परिधि दोस्ती की हो रही छोटी
व्यापक दृष्टि होती जा रही छोटी
बड़ा हो रहा व्यक्तित्व
छोटा हो रहा मानव का सत्व
जिसे होना था बड़ा
वह हो रहा छोटा
जिसे सोचा था मिटा
देंगे सदा के लिए
बड़ा होता जा रहा
जो है खोटा
जब तब है यह आलम
तब तक चलेगा यह खेल
बड़े छोटे का
देखता जमाने के साथ
अपलक खड़ा मैं
अपनी छोटी आंखों से
बड़ा हो रहा छोटा
छोटा हो रहा बड़ा
शायद निकले रास्ता इसी
छोटे बड़े के खेल में
शायद कोई बड़ा ले अवतार
ले जन्म कंस की जेल में
या अपने बीच का ही कोई
छोटा बनेगा बड़ा
वह छोटा जो अभी है
बीज जैसा
अभी भले है
मिट्टी में गड़ा
खाद बनाएगा उस कचरे को
जो है गंदा और सड़ा
सड़े खाद से पोषित
निकलेंगी छोटी कोंपले
वो छोटे से पत्ते
मुंह चिढ़ाते कचरे के बड़े ढेर को
छोटा बीज निगल जाएगा
कचरे को खाद बना
छोटा दीप निगलेगा
बड़े अंधकार को
चलता रहेगा यह खेल
छोटे बड़े का
बड़े के छोटे
और छोटे के बड़े होने का।
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