शहर में सुबह की सैर एक व्यायाम है। एक अतिरिक्त काम जिसे आप अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर करते हैं। सुबह की मॉर्निंग वॉक के लिए जॉगर्स पार्क बने हुए हैं, जहां आप हरेक कदम के साथ हाथ में बंधे फिटनेस बैंड में देखते हैं कि कितनी कैलोरी लूज हुई। मेरी हार्ट बीट क्या है, मेरा पल्स रेट क्या है, और टाइम क्या हुआ, ज्यादा लेट हो गया तो कहीं ऑफिस के लिए लेट ना हो जाऊं।
कुछ लोगों को सुबह की सैर के वक़्त कुछ और ही चिंता होती है। यह टॉमी जल्दी से पॉटी क्यों नहीं कर रहा, कोई आ जाएगा तो क्या कहेगा कि शर्मा जी वैसे तो स्वच्छ भारत पर गेस्ट लेक्चर देते हैं लेकिन बीच सड़क पर कुत्ते को पॉटी करवा रहे हैं। टॉमी प्लीज!! जल्दी करो ना। इसको किसी वेट को दिखाना पड़ेगा और पूछना पड़ेगा कि कुत्ते के लिए भी कोई इसबगोल आता है क्या। और जैसे ही टॉमी का रंगोली बनाना पूरा हुआ, यह लोग ऐसे तेज़ चाल में निकल जाते हैं जैसे बजरंग दल को देख कर प्रेमी जोड़े खिसक लेते हैं।
कुछ लोगों की समस्या अलग होती है। अब मॉर्निंग वॉक के बाद शक्ल पर पसीना आ जाता है, फोटो अच्छी नहीं आती। अब उस फोटो को सोशल मीडिया पर कैसे डालें। वॉक से पहले ही फोटो ले लो, तो लोग कहेंगे कि घर पर बैठे बैठे ही फोटो ली गई है। अब फोटो लें तो कब लें किस बैकग्राउंड में लें। किस एंगल से लें कि महंगी वाली साइकिल और हाथ में बांधा गया फिटनेस बैंड दोनो फोटो में आ जाएं लेकिन तोंद छुप जाए। विकट समस्या है। उनके लिए सुबह की सैर एक फोटो सेशन होता है।
अगली श्रेणी में वे प्राणी शामिल हैं जिनको अपनी कैलोरी लूज नहीं करनी। बुढ़ापे की भड़ास निकालनी है। जॉगर्स पार्क के किनारे वाली बेंच पर बैठ कर नाखून रगड़ रगड़ कर अपने खोए बाल पाने की कोशिश करते रहते हैं और आस पास के लोगों पर कमेंट्री करते रहेंगे। विषय वही हमारा ज़माना और यह ज़माना। मेरी बहू तुम्हारी बहू। इनमें से सभी लोगों को दूध के पैकेट और सब्जी लाने का भी एक्स्ट्रा काम घर की बहुओं ने दे रखा है। दूध लाने के बाद पोते को स्कूल बस तक भी छोड़ना है। उसके बाद भी आराम नहीं। दिन में बेटे बहू के ऑफिस जाने के बाद भी प्लम्बर को बुला कर घर के नल ठीक करवाने हैं और कारपेंटर को बुलवा कर सोफ़ा ठीक करवाना है। फिर बच्चे को डे केअर से वापस भी लाना है। दिन में समय नहीं मिल पाएगा इसलिए वहीं पार्क में बैठे बैठे सबको गुड मॉर्निंग वाले फॉरवर्ड भेजते हैं।
गांव के लोगों के लिए सुबह की सैर कोई कैलोरी लूज करने का सिद्धांत नहीं है। उनको फिटनेस बैंड की जरूरत नहीं उनको अच्छे से पता है कि उनके घर से हनुमान मंदिर दो फर्लांग है, फलां बाबू का बगीचा चार फर्लांग और आधा बना सड़क पुल एक मील। सुबह की सैर गांव में सबको देखने और सबसे मिलने का एक मौक़ा है।
सुबह उठिये तो सबसे पहले लाल बजरंगी के मंदिर में सर नवा कर देखिए वहां दो चार वृद्ध जन बैठे हैं। मंदिर का सेवादार प्रांगण को झाड़ू लगाकर आम के सूखे पत्ते और बासी फूल बुहार रहा है। उसको पंडित के आने से और पहले सुबह की आरती से पहले सारा प्रांगण साफ करना है , भोग का बर्तन मांजना है, दीप की बाती बदलनी है और पूजा सामग्री और फूल का प्रबंध करना है। ईश्वर का निवास अगर स्वच्छता में है तो ईश्वर को निवास प्रदान करने वाले सेवादार से पहली मुलाकात आपकी सबसे पहले होती है। सुबह की इससे अच्छी शुरुआत शायद ही हो।
आगे चलिए तो लंगोट पहने और दंड पेलते युवाओं का एक समूह आपको दिखेगा। पिछले महीने अखबार में दारोगा, कांस्टेबल और सेना की भर्ती आयी हुई थी, उसी के लिए जी जान से लगे हुए हैं। कोई छाती फुला कर माप ले रहा है तो कोई लम्बी कूद के लिए फावड़े से मिट्टी ढीली कर रह रहा है। किसी का पिछली बार दौड़ में एक सेकंड से रह गया था तो कोई ऊंची कूद में बल्ली को गिरा गया था। सारी कमियों को दूर करने का प्रबंध है। सामूहिक चंदे से एकत्रित पौष्टिक आहार भी सामुदायिक रूप से उपलब्ध है। एक बाल्टी में उबले देसी अंडे रखे हैं और बगल में बांस की रंगीन टोकरी में केले। भीगे चने और गुड़ का दोना भी उधर ही रखा है। गलवान और कारगिल में दुश्मनों से जो लोहा लेते हैं , उनकी फौलादी मांसपेशियां इन्हीं गांव की भट्ठियों में तैयार होता है।
आगे चलिए तो कुछ लोग बबूल, कीकर और नीम की कच्ची टहनियों के साथ दातून तैयार करते दिखेंगे। प्लास्टिक वाले ब्रश में वह बात कैसे हो सकती है जो दांतों से चबा कर ही बनाई गई सद्य निर्मित कूची, में है। उनसे एक दातून मांग कर आप देखो। बड़े बुजुर्ग दातून के साथ साथ उसके साथ संचित श्रुत ज्ञान भी आपको दे देंगे।
दातुन करिए नीम की,होय न दंत विकार।
नीम स्वयं ही वैद्य है, समझो सही प्रकार।।
जामुन की दातुन करो, गुठली लेय चबाय।
मधुमेही को लाभ हो ,प्रदर प्रमेह नशाय।।
दातुन करो बबूल की,हिलते कभी न दंत।
तन मन शीतलता रहे, शूल बचाओ पंत।।
खैर आप एक दातून ले आप आगे निकल जाते हैं। आगे देखते हैं कि कुछ बच्चे उथले पोखर में खिली कुमुदिनी के फूलों को नाल सहित निकाल कर उनकी माला बना कर खेल रहे हैं। जलकुंभी के खिले फूलों के साथ कुमुदिनी के फूलों से सजे बच्चों का श्रृंगार आपको मोह लेगा।
पास के तालाब के पास मछुवारे का परिवार अपने पुरानी जाल के टूटे कसीदे बुन रहा है। कुछ दूर पर ही अपनी नयी जाल से मछुवारा पोखर से मछलियों के रूप में चमकती उछलती रजत संपदा निकाल रहा है। प्रकृति का ऐसा सात्विक दानी रूप सहज रूप में शायद ही शहर वाली सुबह की सैर में दिखे। उसी पोखर के एक कोने पर तड़के से पानी में बैठी भैंसों का समूह भी दिखेगा और किनारे उन भैंसों के साथ आए चरवाहों का समूह अपना सुबह का नाश्ता अपने गमछे से निकाल कर खा रहा दिखेगा।
आगे जाने पर खेतों का इलाका शुरू हो जाता है। हरे भरे खेतों के बीच की टेढ़ी पगडंडी और मेड़ ऐसे लगती है जैसे प्रकृति की अबोध नवयौवना बाला ने अपनी केशः राशि के बीच बिना आइना देख अपनी मांग निकाली हो। भले बामुश्किल अभी सूरज निकला हो, वहां हलचल में कोई कमी नहीं। अभी खेतों में किसान पहुंच चुके हैं और आम के बागीचों के रात के पहरेदार अपना टॉर्च, डंडा और रात में मिले आम की सौगात समेटे अपनी ड्यूटी निभाकर वापस घर के लिए निकल रहे हैं।
इतनी दूर आने पर जब लोगों की आवाजाही थोड़ी कम ही जाती है तो आपको महसूस होता है कि आप गांव से कितना दूर निकल आए हैं । खलिहान की रक्षा करने वाले देवता के डीह को प्रणाम करके लौटने का वक़्त हो चला है। और इस प्रकार आपकी गांव वाली सुबह की सैर का आधा सफर पूरा होता है। इस सैर करने में अब तक आपको ना कोई परेशान नहीं दिखता है और ना कोई सेल्फी लेता, ना कोई कुत्ते को पॉटी करवाता। गांव के कुत्तों की पॉटी ट्रेनिंग अपने आप हो जाती है। उनको लेकर कोई परेशान नहीं रहता।
शहर वाले सैर करने वाले अपने रूटीन पर निकलते हैं और गांव वाले अपने काम पर। काम ही उनकी सैर है और काम ही उनका व्यायाम। उनके पास ना खोने के लिए चर्बी है और ना कोई डेली का कैलोरी लॉस टारगेट। एक बात तय है कि गांव में सवेरे निकलने पर आपकी कैलोरी भले लूज हो या नहीं आपके शहरी सैर के खोखलेपन का गुमान जरूर लूज हो जाता है।
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