Sunday, September 13, 2020

मुझे हिन्दी बोलने और समझने में दिक्कत होती है

निराला बंगला भाषी थे, दयानंद की मातृभाषा गुजराती थी, मुक्तिबोध मराठी में शिक्षा प्राप्त थे तो  खुसरो मूलतः फारसी के थे। प्रेमचंद उर्दू में लिखते थे, हिन्दी में आकर हिन्दी के हो गए। हिन्दी का हृदय बहुत विशाल है। कोई और भाषा बता दीजिए जिसे अपनाकर कोई दूसरी भाषा वाला उसका सिरमौर बना हो।

समावेशन हिन्दी का चरित्र है। मैं जब कुछ लोगों से पूछता हूं कि क्या आप हिन्दी बोलते समझते हैं तो उनका जवाब होता है। जी नहीं। मुझे हिन्दी बोलने और समझने में दिक्कत होती है। मैं कहता हूं जी समझ गया। आपको सच में हिन्दी समझ नहीं आती। हिन्दी है ही बहुत कठिन।

यह कुछ ऐसा ही  है जब शिक्षक कक्षा में पूछते हैं कि क्या मेरी आवाज़ पीछे तक आ रही है, तो पीछे से बा आवाज़ ए बुलंद उत्तर आता है। नहीं सर। आवाज़ बिल्कुल भी नहीं आ रही।

हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं!! 



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