मेरे बाएं हाथ। मेरे वाम अंग। कैसे हो तुम? याद आता है वह पहला पल जब मैंने तुम दोनों को देखा था। तुम और तुम्हारा जुड़वां भाई दाहिना हाथ। क्या सुन्दर दृश्य था। दोनो भाई मानो एक साथ जुड़े भी हों और अलग भी हों। भगवान ने तुम दोनों को समान बनाया था। वही दस उंगलियां, वही नर्म हथेली और वही नाज़ुक कलाइयां। मुझे लगा कि मुझे दोनों जहां एक साथ मिल गए हों, मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
लेकिन वह कहते हैं ना कि ईश्वर अहंकार को नाश्ते में खाता है, शायद ईश्वर को मेरी खुशियां देखी ना गई। बचपन से तुम्हारे लक्षण बुरे दिखने लगे। मेरे वाम अंग!! जब खाने की बारी आई तो जहां तुम्हारा दाहिना भाई खाने की चीजों की तरफ बढ़ा, तुम खाने की चीज़ों से दूर ही रहे। यहां तक तो ठीक था लेकिन सुबह सुबह टॉयलेट में गंदी जगहों पर जाने में तुम सबसे आगे रहे। एक भाई मुंह आस पास मंडराया करता और तुम ? क्या बोलूं तुम खुद जानते हो। समझ नहीं आता मेरे वाम अंग, गंदगी से ऐसा आकर्षण क्यों है तुम्हारा? खैर!!
तुम्हारी उल्टी प्रवृत्ति को देख कर भी मैंने तुम में और तुम्हारे भाई के लालन पालन में कोई भेद नहीं किया। तुम दोनों एक ही स्कूल गए। एक ही गुरु से शिक्षा प्राप्त की। वहां भी एक तरफ जहां दाहिने हाथ ने लिखना सीखा, चित्र बनाए, और वाद्य यंत्रों को बजाना सीखा, तुम सभी रचनात्मक कार्यों से दूर ही रहे। ना तुमने लिखना सीखा और ना कोई सुन्दर चित्र बनाना। आखिर क्यों मेरे वाम अंग? रचनात्मकता से तुम्हारा ऐसा बैर क्यों?
मुझे लगा कि चलो रचनात्मकता नहीं तो शायद श्रम वाले काम तो तुम करोगे। लेकिन नहीं वहां भी तुमने निराश हो किया। कोई भार उठाने की बात हो तो तुम अपने भाई दाहिने हाथ को कहते हो। मेरे वाम हस्त, तुम कोई भार क्यों नहीं उठाना चाहते। कोई जिम्मेवारी क्यों नहीं लेना चाहते। बोलो मेरे वाम। बोलो कुछ तो सोचा होगा?
जहां एक तरफ कार्य दाहिना हाथ ही करता था, वहीं मैंने हमेशा दुनिया को यह सच्चाई नहीं बताई। मैंने कभी यह नहीं कहा कि मैंने यह कार्य अपने दाहिने हाथ से किया है। मैंने हमेशा तुम्हें तारीफ में बराबर का हिस्सा दिया। हमेशा कहा कि यह काम मैंने अपने दोनों हाथों से किया है। जबकि सारा काम तुम्हारा दाहिना भाई करता, मैं दुनिया से तुम्हारी ही तारीफ करता रहा । कठिन से कठिन काम को मैं यह कहता कि यह मेरे बाएं हाथ का काम है। जबकि सच्चाई यह है कि कमीज़ का एक बटन भी तुम नहीं लगा सकते मेरे वाम अंग। कब तक झूठी तारीफ बटोरोगे? कब तक दूसरे कि मेहनत का तमगा पहनोगे। कभी ना कभी तो सच का सामना करो।।
मेरे वाम अंग। एक तरफ ना तुम कोई काम करना जानते हो, ना कोई काम करना चाहते हो, फिर गुस्से में आकर उल्टे हाथ से किसी की पिटाई करने में सबसे आगे क्यों निकल आते हो। किसी को ठगने का काम हो तो उल्टे हाथ से मूडने का काम तो तुम खुशी खुशी कर लेते हो। मेरे वाम, यह पंथ क्यों चुनते हो? दाहिने के उलट सकारात्मता से ऐसी चिढ़ क्यों? बोलो मेरे वाम अंग। बोलो।
जो पंथ तुमने पकड़ा है वह यह है कि मैं कुछ करूंगा नहीं, सिर्फ गंदगी छू कर आनंद लूंगा, दूसरों को उल्टे हाथ से ठगुंगा लेकिन हर चीज में बराबरी से ज्यादा का हिस्सा लूंगा। बिना काम किए बराबरी का हिस्सा? और इसको तुम मानवाधिकार, समाजवाद और जाने क्या क्या बड़े बड़े नाम देते हो। मेरे वाम अंग। तुमने तो बचपन से ही हड़ताल कर रखी है। कोई काम ना करने की कसम खा रखी है। ऐसा कब तक चलेगा मेरे वाम अंग।
मेरे प्रिय वाम। लोगों से मिलो। वहां भी किसी से हाथ मिलाने का काम हो तुम पीछे तने हुए पड़े रहते हो। हाथ मिलाने का काम भी तुमने दाहिने को दे रखा है। यह क्या है? अपनी दुनिया से बाहर आओ।लोगों से मिलो, उनको जानो। फिर शायद तुम्हें पता चलेगा कि जीवन भर हड़ताल करके बिना काम किए बराबर का क्रेडिट लेने से बेहतर भी एक सम्मान की हो सकती है। फिर शायद तुम्हारी हमेशा गंदी जगहों पर जाने की ललक थोड़ी काम हो जाए। अपने इस पंथ के दुष्चक्र से बाहर निकलो। मेरे वाम। सुन रहे हो ना?
अब देखो ना, इस पत्र को लिखने का सारा काम भी तुम्हारे दाहिने भाई ने किया है, और इसको लिखने में जो भी गलतियां होंगी उसके लिए भी सारी फटकार वही सुनेगा। शायद उल्टे हाथ का एक चांटा भी खा जाए। दाहिने पर कृपा करो, मेरे वाम। और क्या कहूं। तुम खुद समझदार हो!!!
चिर तुम्हारा....
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