अश्लीलता क्या है? अश्लील किसे कह सकते हैं? क्या नग्नता अश्लीलता की शर्त है? क्या भाषा अश्लील हो सकती है? या किसी टैबू विषय पर बात करना अश्लील हो सकता है?
उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर देने से पहले हम दो तीन उदाहरणों पर विचार करते हैं। फिल्म बैंडिट क्वीन में अभिनेत्री सीमा विश्वास पूर्ण नग्न होकर परदे पर दिखती है। उस दृश्य में अदाकारा के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं है क्योंकि उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है। अब दूसरा दृश्य फिल्म सत्यम शिवम् सुंदरम में ज़ीनत अमान एक मंदिर में भजन गा कर पूजा कर रही है और उसने झीनी ही सही पर पूरी साड़ी पहन रखी है। अब इनमें से कौन सा दृश्य अश्लील है?
अधिकतर लोग मानेंगे कि सत्यम शिवम् सुंदरम का दृश्य अश्लील माना जाएगा जबकि बैंडिट क्वीन का दृश्य कटु यथार्थ का एक वास्तविक चित्रण मात्र। अश्लीलता के निर्धारण में भाव पक्ष का प्राबल्य होता है। अश्लीलता की अवधारणा सामाजिक है। मोटे शब्दों में कहें तो अश्लील वह है जो आपके अंदर कामुक भावनाओं का उद्दीपन करे। लेकिन यह परिभाषा भी अपूर्ण ही है। अश्लीलता किसी कृत्य या कार्य में निरपेक्ष रूप में विद्यमान नहीं रह सकती। जो साहित्य और फिल्म आपको अकेले में वैयक्तिक आनंद दे सकती है, अपने माता पिता के सामने वही साहित्य पढ़ना अश्लील कहलाएगा। मतलब यह कि वह साहित्य सामाजिक रूप से अश्लील है और वैयक्तिक रूप से मनोरंजक।
प्रेयसी का श्रृंगार और उसकी भंगिमाएं प्रेमी के साथ एकांतिक क्षणों में अश्लील नहीं हैं, हां छुप कर उनको देखता व्यक्ति अश्लील अवश्य है। यहां कृत्य अश्लील नहीं है, छुप कर देखना अश्लील है। बीच पार्क में प्रेमी जोड़े की हरकतें अश्लील हैं , उनके आसपास टहलने वाले लोग नहीं।
अश्लीलता का संबंध किसी समाज की संस्कृति से भी है। जो कपड़े पेरिस की सड़कों पर सुन्दर माने जाएंगे वही कपड़े काशी की गलियों में अश्लील कहला सकते हैं। स्वान जोड़े की रति क्रिया अश्लील नहीं है यद्यपि वह खुले सड़क पर होती है, उसी सड़क पर फब्तियां कसने वाले युवक अश्लील हैं।
सीमा विश्वास के नग्न दृश्य सिनेमा का मील का पत्थर है और प्रशंसा के योग्य है तो पूरे कपड़े पहने कर भी ज़ीनत अश्लील कहलाएंगी। बिहार में शादियों के समय गाए जाने वाले महिलाओं के लोक गीत और मंगल गीत के बोल आपको अश्लील लग सकते हैं लेकिन वह वहां की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा हैं अश्लील नहीं। यही बात कुछ हद तक भोजपुरी गानों के लिए भी कही जा सकती है। भोजपुरी समाज बाकी समाजों के अपेक्षा ज्यादा खुला है , उनके मज़ाक बाहरी समाज के प्रतिमानों पर अश्लील लग सकते हैं पर उनके समाज में वह स्वीकार्य हैं। सीधे सीधे उनपर अश्लीलता का आरोप चस्पां करना उनका सही मूल्यांकन नहीं होगा।
श्लील और अश्लील के बीच की रेखा एक जड़ रेखा नहीं हो सकती। अनेक सामाजिक नियमों, परम्पराओं और नैतिकता के नियम मिलकर उस रेखा का निर्धारण करते हैं। चूंकि अश्लीलता निर्धारक अवयव स्वयं समय के साथ परिवर्तनशील हैं, इसीलिए अश्लीलता की परिभाषा भी समय अंतराल पर मूल्यांकन खोजती है। तो यह भी संभव है कि जो आपको अश्लीलता लगती हो, दूसरे छोर से वही जेनरेशन गैप दिखता हो। आवश्यक है कि किसी का भी मूल्यांकन सभी कारकों का ध्यान रख कर किया जाय।
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