Monday, August 17, 2020

होना है यह तो तय है, कब होना है पता नहीं

पंडित जसराज नहीं रहे, निशिकांत कामत ने भी अलविदा कह दिया। कामत पचास साल के थे और पंडित जसराज नब्बे वसंत देख चुके थे, फिर भी दोनो की मृत्यु का दुख बराबर है। यद्यपि मृत्यु जीवन का एक मात्र सत्य है, यह एक मात्र घटना है जिसकी पूरी गारंटी है। फिर भी यह जब आता है तो हमें चकित करता है, दुखित करता है। हमेशा दबे पांव आता है और हमारे अपनों को चुरा कर ले जाता है। आदमी इसकी तैयारी कभी नहीं कर पाता। 

जीवन की क्षणभंगुर प्रवृत्ति इसीलिए है क्योंकि भले मृत्यु निश्चित हो, उसका समय भी शायद विधाता ने सबके लिए तय कर रखा हो, लेकिन किसी को वास्तव में यह पता नहीं कि वह समय क्या है। यह परमात्मा का हमारे साथ एक लुका छिपी का खेल सा है, जो सारी मानव सामाजिक संरचना का आधार है।

 यह लोक लाज सम्मान उद्यम प्रेम रूठना मनाना लजाना लड़ना मनुहार करना नखरे अदाएं लाभ हानि यश अपयश आदि सब इसीलिए है क्योंकि मानव को अपनी मृत्यु का समय पता नहीं। जिस व्यक्ति को ज्ञात हो जाय कि उसके पास चंद घंटे बचे हैं वह क्या लोक लाज की बंदिशे मानेगा, वह क्यों किसी का सम्मान करेगा, दुनिया क्या कहेगी इससे उसको कोई मतलब नहीं रहेगा । ऐसा कोई व्यक्ति उद्यमी भी नहीं होगा, ना ही ऐसा व्यक्ति प्रेमी हो सकता है। मृत्यु के भय से आशंकित हृदय में प्रेम के लिए स्थान कहां?  वह ना किसी को नखरे दिखाएगा ना किसी के नखरे सहने का धैर्य उसके पास होगा। वह किसी से लड़ेगा भी नहीं और किसी से मनुहार भी नहीं करेगा। ना लाभ उसको आकर्षित करेगा ना हानि शब्द का कोई अर्थ उसके लिए होगा।यश अपयश उसके लिए बेमानी हो जाएंगे। जिसके नभ में मृत्यु का दीर्घ विवर बन चुका हो वहां यश का सूर्य ना उदित होगा ना अपयश का ग्रहण कोई चिंता का कारण होगा। 




जीवन का हर भाव, हर कार्य और हर रोमांच इसी कारण से है कि मनुष्य को मृत्यु का समय नहीं पता।  अगर मृत्यु का समय पता हो, तो डाक्टर का क्या काम, कोई संभल के सड़क पर क्यों चले, अनुशासन प्रशासन और सुशासन सभी निर्मूल हो जाएं। सोच कर देखिए तो मानव सभ्यता का आधार भी यही है। मृत्यु का समय ज्ञात हो जाय तो सभ्यता की मृत्यु हो जाय, सारा सामाजिक ढांचा ध्वस्त हो जाय। भले  ही हमें आकस्मिक मृत्यु का दुख झेलना पड़े, समस्त सुखों और जीवन के आनंद के मूल में मृत्यु की अनिश्चितता ही है | 


हाल में ही हमको छोड़  कर गए  शायर राहत  इन्दोरी कह गए हैं | 
"ये हादसा तो किसी दिन गुज़रने वाला था
मैं बच भी जाता तो इक रोज़ मरने वाला था"।


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