Saturday, October 28, 2023

घबराना नहीं है

सबसे पहले जी हमने घबराना नहीं है। मुश्किलात हैं हमारे लड़कों के साथ , इसलिए हमें बस कुछ तब्दीलियां करनी है। सबसे पहले तो टीम के खानसामे को बदलना है जी। केवल कार्बोहाइड्रेट खिलाता है हमारे बैट्समैन को । इस बंदे को प्रोटीन वाला खाना बनाना आंदा ही नहीं। इसी खानसामे की वजह से हमारे बंदे छक्के नहीं मार पा रहे। यही खानसामा था जिसके हाथ की निहारियां पा पा के हमारा सरफराज विकेट के पीछे जम्हाइयां लिया फिरता था। जो सेंचुरी हमारे किंग बॉबी नू लगानी थी, वो सेंचुरी हारिश रऊफ लगा दे रहा है बॉलिंग में। ऐसे वाहियात खानसामे के रहते 92 वाली परफार्मेस कैसे हो सकती है जी।
दूसरा बदलना है आईसीसी के वाहिद अफसरों को। अजी हमारे माकूल ना पिच दे रहे हैं और ना हमारे माकूल तमाशाई। नामाकूल पिच पर हमारी नंबर वन टीम खेल भी ले, लेकिन नामाकूल टीम के खिलाफ कैसे खेलें। जब हमारी सारी प्रैक्टिस जिम्बाब्वे के खिलाफ थी और आपने जिम्बाब्वे को बुलाया ही नहीं खेलने के लिए। यह तो सरासर हमारे जिमबाबर भाई की odi रैंकिंग छीनने की साजिश भर है।

इसके बाद जरूरी है बदलना हमारे टीम के लास्ट ओवर फेंकने वाले को। नवाज कितने आखिरी ओवर फेंकेगा जी। आखिर फिनिशर का रोल वो अकेला कब तक निभाए। धोनी हो या माइकल बेवन, नवाज से बेहतर फिनिशर पाकिस्तानी क्रिकेट नहीं बल्कि पूरी दुनिया की क्रिकेट की तारीख में मिलना मुश्किल है जी। आखिर हमारी क्रिकेट टीम एक फैमिली है, एक चाचा हैं, एक इंजी भाई के भतीजे हैं, एक दामाद हैं जिनको रिवर्स स्विंग तभी मिलती है जब सामने वाली टीम तीन सौ रन मार के गेंद का हुलिया बिगाड़ दे। कप्तान बॉबी बादशाह हमारे शाहीन को पहले ही बॉलिंग पर ले आता है तो बेचारे शाहीन की क्या गलती। हारिश और शादाब अपना कोटा पूरा कर लें, शाहीन से पहले। बस मिलने लगेगी शाहीन को रिवर्स स्विंग। हारिश तो हमारा हीरो है जी, 150 पर बॉल डालता है, और दूसरों के 300 करवाता है।

लास्ट में बस एक म्यूजिक थेरेपिस्ट चाहिए। अफगान जलेबी वाला गाना सुन के टीम के कई लड़कों को घबराहट के दौरे पड़ने लगे हैं। दिल दिल पाकिस्तान सुना के जैसे तैसे इनको सम्हाला है जी। म्यूजिक से याद आया, हमारे पीसीबी चीफ की कुर्सी के।लिए जो म्यूजिकल चेयर वाला गेम चल रहा है, उसको भी थोड़ा बंद करना पड़ेगा जी। लोग हमारी क्रिकेट से ज्यादा पीसीबी वाली गेम ज्यादा देखते हैं। बाकी तो बॉयज ऑलवेज प्लेड वेल। एक और मैच हैदराबाद में रखवा दो जी। हैदराबाद की बिरयानी और पाया दा शोरबा एक और बार जी भर के खाना है, कराची की फ्लाइट पकड़ने से पहले। 

Wednesday, October 25, 2023

टिक टिक करती रुकी घड़ियां

दीवाल घड़ी अचानक से खराब होकर नहीं रुकती। रुकने से पहले वो कुछ दिन तक टिक टिक करती रहती है। घड़ी टिक टिक करती है , घड़ी की सुइयां हिलती हैं पर आगे नहीं बढ़ती। बस घड़ी एक जगह अटक कर टिक टिक करती रहती है। इंसान भी अचानक से नहीं रुकते, रुकने से पहले टिक टिक करते रहते हैं।

अपने आस पास देखिए, बहुत सारी ऐसी घड़ियां दिख जाएंगी। इनसे बात करिए तो उनका टिक टिक करना भी सुन लेंगे। उनसे पूछिए कि आजकल गाने कौन से सुन रहे हैं, तो वो बताएंगे कि कुमार शानू और अलका याग्निक के बाद उनको कोई पसंद ही नहीं आया। क्रिकेट के बारे में पूछिए तो आपको पता चलेगा कि भाई साब की सुई अब तक जावेद मियांदाद और इमरान खान पर अटकी हुई है। फिल्म में भाई साब अब भी साजन और सनम बेवफा की तारीफ में कसीदे पढ़ते रहते हैं। पूछिए कि अपने परिवार के बारे में कुछ बताइए तो भाई साब अपने दादा जी की जमींदारी के किस्से बांचने लग जायेंगे । समझ लीजिए, कि भाई साब अटकी हुई घड़ी हैं , बस टिक टिक कर रहे है, आगे नहीं बढ़ रहे।

बस टिक टिक करना और आगे ना बढ़ना, रुकने से पहले वाला पायदान है। ऐसे टिक टिक वाली घड़ियां हमेशा गलत समय बताती हैं, हालांकि वो घड़ियां खुद गलत रहती हैं । ऐसी टिक टिक करने वाले घड़ियां जो समय के साथ आगे नहीं बढ़ती, अपने आप को बदल नहीं पाती, अक्सर बदल दी जाती हैं। 

बीच बीच में खुद को भी देखिए कि कहीं आप भी पीछे तो अटके नहीं हुए हैं। या तो अपनी बैटरी बदलिए, या खुद में चाबी भरिए, या अपनी स्प्रिंग बदलिए, और समय के साथ आगे बढिए । नई चीज़ें सीखिए, नए शौक पालिए, नई आदतें डालिए, किसी नई जगह घूम आइए, कोई नई किताब पढ़ डालिए, नए दोस्त बनाइए वरना किसी कबाड़ी की दुकान का एक अंधेरा कोना आपका इंतजार कर रहा है। 

Saturday, October 21, 2023

सर्व सिद्धि दात्री दुर्गा पूजा

दुर्गा पूजा तो सबके लिए है और दुर्गा पूजा में सबके लिए कुछ न कुछ है। दुर्गा पूजा उनके लिए है जो सारा बाजार खंगाल कर अपने लिए नए नए कपड़े खरीदते हैं और रोज रोज नए वस्त्र धारण करते हैं। और दुर्गा पूजा उनके लिए भी है जो एक अधोवस्त्र पहनकर अपनी छाती पर कलश स्थापना कर नौ दिन का कठिन तप करते हैं। मां का आर्शीवाद उनके लिए भी है जो प्रत्येक दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और उनके लिए भी है जो मां को बिदाई देने के समय डीजे की तेज धुन पर बस पूरे रास्ते नाचते हैं। शारदीय उत्सव जितना फलाहार पर रहने वालों का है उतना ही प्रत्येक दिन नए नए व्यंजन खाने के लिए रेस्टोरेंट्स जाने वालों का है। नवरात्रि पर उनको भी उतनी ही प्रसन्नता मिलती है जो शहर में स्थापित हर प्रतिमा का दर्शन कर लेना चाहते हैं और उनका भी जिनका झुकाव केवल पंडाल की जगमग रोशनी और कलात्मक सौंदर्य से है। यहां तक कि मां दुर्गा का आशीर्वाद तो उनके लिए भी है जिन्हे न पंडाल देखना और ना दुर्गा प्रतिमा, उन्हें तो बस मेले में लगे झूले, मौत का कुंआ और पापड़ी चाट के ठेले पर भीड़ लगानी है।

दुर्गा पूजा मूर्ति बनाने वाले कुम्हार के लिए है तो नवरात्रि का पाठ करने वाले ब्राह्मण के लिए भी। दुर्गा पूजा मेले में मिठाई की दुकान लगाने वाले हलवाई की है और सजे धजे बाजार में कपड़े की दुकान पर बैठे बनिए की भी है। इस पर्व में पान बेचने वाला पनवाड़ी भी उतना ही शामिल है जितना ढाक की ताल देने वाला ढाक वाला। यह दोनो हाथों में धूपची लेकर नृत्य करते पुरुषों का भी है और सिंदुरखेला करती महिलाओं का भी। यह नवमी को पूजी जाने वाली शक्ति स्वरूपा बच्चियों के लिए भी है और उनके साथ पंगत में बैठ कर खाने वाले उनके छोटे बालक भाइयों के लिए भी है। दुर्गा पूजा नारीवाद का उत्सव है और जननी का महोत्सव है।

यह मां की प्रतिमा को साष्टांग करते भक्तों का भी है और मां की प्रतिमा के साथ सेल्फी लेते gen Z की पीढ़ी का भी है। कोलकाता भी गलियों में गूंजते शंखध्वनि की आवाज के बीच भी दुर्गा पूजा है और न्यू जर्सी में बंगाली एसोसिशन द्वारा सात समंदर पार भी पूजोर आनंद भरपूर है। 

साल भर नौकरी की चक्की में पिसने के बाद परिवार के साथ एक सप्ताह भर भक्ति, उल्लास के बीच गुनगुनाती ठंड के मौसम में समय व्यतीत करना , अगर यह मां का आशीर्वाद नहीं है तो और क्या है। शारदीय पर्व सबका है, सर्व समावेशी है, सर्व रस से सिक्त है और मां के नाम की तरह सर्व सिद्धिदात्री है।

मां आप सबका कल्याण करे। दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं।।

Thursday, October 19, 2023

Enough of Yo Mama Jokes !!!



Ladies and gentlemen, let's embark on a cosmic comedy journey to explore why our planet Earth often suffers from an inferiority complex. I mean, come on, Earth! Why so glum when you've got so much going for you?

First of all, have you ever noticed how aliens get all the credit in science fiction? They swoop in with their advanced technology, sleek spaceships, and a penchant for mysterious, interstellar dance-offs. Meanwhile, we Earthlings are left feeling a bit, well, behind the times. It's like we're showing up to a cosmic party in a horse and buggy while they're sporting light-speed sneakers.

But here's the kicker: these aliens don't even exist! Earth is the real deal, baby. Sure, we haven't discovered any extraterrestrial neighbors yet, but we've got it all: lush forests, shimmering oceans, and the undeniable charm of the raccoon digging through your trash at 2 AM.

And speaking of charming, let's dive into the realm of mythological scriptures. Our ancestors had quite the imagination when they decided that heaven was located somewhere above our planet, high up in the clouds. I mean, can you blame them? Clouds are fluffy and white – quite heavenly, one might say. But did anyone ever wonder how we were supposed to get up there? Stairway to heaven, anyone? I bet even escalators in the clouds would have us all huffing and puffing by the time we reached the pearly gates.

Our cosmic complex also sneaks into our everyday language. We describe extraordinary things as "out of this world." But really, isn't everything we know right here on Earth? Are you trying to tell me that chocolate lava cake with a scoop of vanilla ice cream is less mind-blowing than a comet whizzing by? I don't think so! I'd choose that cake over a comet any day.
Now, let's get serious for a moment – well, as serious as this comedy can get. The truth is, Mother Earth is an absolute gem. Just look around! From the jaw-dropping landscapes to the diverse wildlife to the delicious food (chocolate lava cake included), we've got it all. And here's the kicker: scientific discoveries suggest that we might be living on one of the rarest planets with a habitable environment. So, take that, aliens!

And if anyone ever praises "other planets" over our Earth, it's like the cosmic version of a "Yo Mama" joke. You know the ones where you say, "Yo Mama's so awesome that other planets wish they were Earth!" It's a reminder that we don't need to look to the stars for the extraordinary – it's right here on our home planet.

In conclusion, Earth, you don't need to feel inferior to anyone or anything. You've got charm, beauty, and chocolate cake. So, let's celebrate our lovely blue planet and remember that in the grand cosmic comedy, Earth is the real headliner.

Tuesday, October 17, 2023

Nostalgia : It's not for everyone

Privilege and Perspective

Nostalgia, that wistful longing for a bygone era, often evokes feelings of warmth and fondness. Yet, it is important to recognize that nostalgia is not universal and can sometimes be a signal of privilege. This essay delves into the notion that the ability to feel nostalgia is often linked to a privileged past, drawing examples from both Indian and world history. Oppressed individuals, such as Black people who endured slavery or India's so-called untouchables, rarely experience nostalgia due to the horrors they endured. The essay also examines the poignant cases of children rescued from bonded labor and young girls freed from the shackles of flesh trade, demonstrating how their harrowing pasts preclude nostalgia. It is crucial to reflect on our own privilege when we experience nostalgia, as not everyone is fortunate enough to share in these sentiments.

The Privilege of Nostalgia

Nostalgia is a reflection of happier times, often associated with one's past. However, it is essential to acknowledge that not everyone's past is worth reminiscing about. To illustrate this, let's consider the history of slavery, both in the United States and across the world.

In the context of the United States, Black people endured centuries of brutal enslavement. Their history is fraught with unimaginable suffering, exploitation, and systemic oppression. It is implausible that any Black person would be nostalgic about this dark chapter in their history. The memories of slavery, separated families, and the relentless pursuit of basic human rights overshadow any glimmer of nostalgia. Instead, their history calls for a remembrance of resilience and the pursuit of justice.

Similarly, India has its own history of oppression in the form of the caste system, particularly affecting the so-called untouchables or Dalits. For generations, they faced discrimination, segregation, and violence. Their past is scarred by indignity and despair. Thus, the notion of nostalgia for such a community is nearly inconceivable.

The Inability to be Nostalgic: A Glimpse into Harrowing Realities

Taking the discussion further, let's consider the experiences of children who have been rescued from bonded labor and underage girls who have been freed from the clutches of flesh trade. These young souls have lived through traumatic, inhumane conditions, and their pasts are etched with fear and suffering. Nostalgia is a luxury they cannot afford, as their focus is on healing, recovery, and rebuilding their lives.

Children rescued from bonded labor often have stories of toiling in hazardous conditions, devoid of a childhood. Their memories are filled with exploitation, deprivation, and the absence of the opportunities that many take for granted. Similarly, young girls who escape the horrors of flesh trade have suffered physical and emotional trauma. Their past is a testament to the resilience of the human spirit, as they strive to reclaim their lives.

Reflecting on Our Privilege

In experiencing nostalgia, it is essential to pause and reflect on our privilege. We must acknowledge that our ability to reminisce about a happier past is not universal. It is rooted in the circumstances of our lives, which, in many cases, have been privileged and free from systemic oppression and violence.

Conclusion

Nostalgia is a powerful emotion, but it is not experienced by everyone in the same way. The ability to feel nostalgia often indicates a privileged past, while oppressed individuals and survivors of harrowing experiences are unlikely to share these sentiments. The cases of Black people during slavery, India's untouchables, children rescued from bonded labor, and girls freed from flesh trade highlight the profound impact of oppression on one's ability to feel nostalgia. We must recognize our privilege when we experience nostalgia and use it as an opportunity to support those whose pasts do not allow for such sentiments. Nostalgia should be a call to action, a reminder that we must work towards a more equitable and just future for all.

Monday, October 16, 2023

गहरे घाव

गहरे घाव नहीं भरा करते हैं।
वक्त की पपड़ी के नीचे एक बीज की तरह
बस छुपा करते हैं।

जिनसे फूट पड़ती हैं दर्द की कोंपलें 
जब संवेदना और ग्लानि की नमी पाया करते हैं।

बह निकलती है वेदना की पीव 
जो जड़ें बन कर और गहरी जमा करते हैं।
इंतजार करते हैं गहरे घाव
और वक्त बेवक्त फिर से हरे हुआ करते हैं।

छुपते हैं दो चार दिन वो मुस्कुराते हुए चेहरों के पीछे
लेकिन गहरे घाव नहीं भरा करते हैं।
गहरे घाव नहीं भरा करते हैं।






Saturday, October 14, 2023

For Mickey Arthur..

Dear Mickey Arthur,

Your recent embrace of " being Brutally honest" invites a deeper exploration of history. Let me offer a glimpse into why you may not have heard "Dil Dil Pakistan" chants in the crowd during the recent India-Pakistan match as much as you may have expected.

In the annals of the India-Pakistan rivalry, we find a significant incident from the 2nd ODI at Jinnah Stadium, Sialkot, on October 31, 1984. Pakistan won the toss and chose to bowl, but with the onset of winter and the absence of floodlights, the match was limited to forty overs per inning, to be played during daylight hours.

As India was at bat, Mr. Ismile Quraishi, the Deputy Commissioner of Sialkot overseeing the event, received a phone call bearing grave news – the assassination of India's Prime Minister, Smt. Indira Gandhi. He was ordered to halt the match by Pakistan's President, Mr. Zia ul Haq. Yet, Mr Quraishi hesitated, fearing the backlash from 25,000 Pakistani spectators who would feel shortchanged by an abandoned game.
Mr. Quraishi courageously entered the Indian dressing room to break the devastating news. The Indian team, except for Dilip Vengsarkar and Ravi Shastri, who were on the field, were stunned. Mr. Quraishi chose to wait until the end of India's inning to avoid upsetting the Pakistani crowd since they won't get the " Paisa Vasool".

With India's innings ending at 210/3 after 40 overs, Vengsarkar and Shastri were informed of the tragic events, and the match's abandonment was declared. Shocked and in tears, the Indian team began to pack their bags. At that moment, Quraishi revealed the assassination of Smt. Indira Gandhi and the match's abandonment. 
Astonishingly, the crowd at Sialkot Stadium applauded and cheered for nearly 20 minutes. Yes, you read it correctly – the crowd cheered the death of the Indian Prime Minister while the visiting team members were left in shock and tears.

This account is just one of many that contribute to the absence of "Dil Dil Pakistan" chants in Ahmedabad. The story I've recounted is but one of countless narratives. In conclusion, I'd like to borrow and adapt a famous line from the movie "A Few Good Men" to emphasize that perhaps we should be cautious when invoking the concept of brutal honesty. " You can't handle the brutal honesty". As for the notion of karma, it's worth remembering the saying about it being a bitch.

I wish you the best for the rest of your campaign and suggest you wait until Zimbabwe team's next tour to Pakistan, where you'll hear "Dil Dil Pakistan" resounding in full force.

Honestly yours..


Friday, October 13, 2023

दुख निवारण का जंतर

मैं आपको एक जंतर देता हूं। जब भी किसी समस्या में घिरे हों , परेशान हों, तो इस जंतर का प्रयोग करके देखें। जब भी अपनी समस्याओं से इतने परेशान हों कि कोई उपाय नहीं दिख रहा हो तो और एक अत्यंत सरल समाधान है। आप अपनी समस्या की जगह
दूसरों की समस्या के बारे में सोचना शुरू कर दीजिए।

जैसे मान लीजिए आप खुद शुगर बीपी मोटापे से परेशान हैं, ना सुबह टहलने का कार्यक्रम शुरू हो पा रहा है और न रात में पुलाव और मटन के कंठ तक भर कर भोजन करने का कार्यक्रम रुक पा रहा है। अब क्या करें, आसान है.. आप अपना ध्यान इस चीज पर केंद्रित करिए कि शुभमन गिल का डेंगू कब ठीक होगा, ऋषभ पंत अगला आईपीएल खेलेगा कि नहीं, करीना कपूर का स्वास्थ्य उसके तीसरे बच्चे के लिए उपयुक्त है या नहीं। फिर अपने आप को यह कह कर मना लें कि अब मेरी औकात तो है नहीं कि मोदी जी की तरह बीस हजार रुपए किलो वाले मशरूम खा सकूं, या विराट कोहली की तरह ब्लैक वाटर की बॉटल खरीद सकूं, फिर तो मेरा मोटा होना और थोड़ा बहुत शुगर ऊपर नीचे होना बिलकुल जायज है।
मान लीजिए कि आपकी बगल वाली पड़ोसन से तो बनती है लेकिन पड़ोसी से नहीं बनती। पड़ोसी रोज आपके घर के आगे अपना कचरा डाल जाता है और आपका अखबार उठा ले जाता है। रात को जब आप सोने को जाते हैं तो पड़ोसी को राग गर्धब का रियाज करना होता है और सुबह जब ऑफिस जल्दी निकलना हो तो आपकी कार के आगे उसके कार खड़ी रहती है। कुछ कहा भी नहीं जाता क्योंकि पड़ोसी सोसाइटी का अध्यक्ष है। ऐसे में आप इस समस्या को छोड़ कर गाजा पट्टी और अल अक्सा मस्जिद के बारे में सोचना शुरू कर दें। पड़ोसी के बारे में सोचने के बदले हमास और मोसाद के बारे में सोचें। सोचें कि मेरा तो सिर्फ अखबार जा रहा है, वहां किसी की जमीन जा रही है। मेरे यहां तो दुश्मन सिर्फ कचरा डाल रहा है , उधर तो रॉकेट और रॉकेट डाले जा रहे हैं। हमास और मोसाद से जी भर जाए तो चीन और ताइवान के बारे में सोचना शुरू कर दें। बस हो गई आपकी समस्या छू मंतर।


गर्लफ्रेंड छोड़ के चली गई हो तो ऋतिक रोशन के बारे में सोचना शुरू करें। उसको तो बीवी छोड़ के चली गई। शादी नहीं हो रही है तो सलमान खान और राहुल गांधी के बारे में सोचें। शादी करके बीवी से परेशान हों तो शिखर धवन के बारे में सोच सकते हैं। 

हर परिस्थिति में आप पाएंगे कि आपकी वर्तमान समस्या के लिए आप बिलकुल भी जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि यह तो एक संयोग है , बाकी दुनिया तो बस ऐसे ही दुखी है।

देखने में कोई खास सुंदर ना हों और इसको लेकर परेशान रह रहे हों तो राखी सावंत के बारे में सोचें कि भारतीय मीडिया राखी और उर्फी जावेद के पीछे ज्यादा पागल है या ऐश्वर्या राय के पीछे। आपको आपकी समस्त दुविधा का हल मिल जायेगा। 

अपनी समस्या भुलाने के लिए दूसरों की समस्या देखने से बेहतर उपाय नहीं है। अपना दर्द भुलाने के लिए दूसरों का दर्द निहारने से उत्तम उपाय आज तक मानवता को ज्ञात नहीं है। इस जंतर को अपना कर देखिए, आपका सारा दर्द, सारी चिंताएं दूर होती नजर आएंगी। 

इति जंतरः ।।


Thursday, October 12, 2023

advice to all employees

ADVICE TO ALL EMPLOYEES  

1. Build a home earlier. Be it rural home or urban home. Building a house at 50 is not an achievement. Don't get used to government houses. This comfort is so dangerous. Let all your family have good time in your house.
 
2. Go home. Don't stick at work all the year.  You are not the pillar of your department.  If you drop dead today, you will be replaced immediately and operations will continue.  Make your family a priority.

3. Don't chase promotions.  Master your skills and be excellent at what you do. If they want to promote you, that's fine if they don't,  stay positive to your personal.
development.

4. Avoid office or work gossip. Avoid things that tarnish your name or reputation. Don't join the bandwagon that backbites  your bosses and colleagues. Stay away from negative gatherings that have only people as their agenda.

5. Don't ever compete with your bosses.  You will burn your fingers.  Don't compete with your colleagues, you will fry your brain.

6. Ensure you have a side business.  Your salary will not sustain your needs in the long run.

7. Save some money. Let it be deducted automatically from your payslip. 

8. Borrow a loan to invest in a business or to change a situation not to buy luxury. Buy luxury from your profit.

9. Keep your life,marriage and family private. Let them stay away from your work. This is very important.  

10. Be loyal to yourself  and believe in your work. Hanging around your boss will alienate you from your colleagues and  your boss may finally dump you when he leaves. 

11. Retire early.  The best way to plan for your exit was when you received the employment letter. The other best time is today.  By 40 to 50 be out. 

12. Join work welfare and be an active member always. It will help you a lot when  any eventuality occurs.

13.Take leave days utilize them by developing yr future home or projects..usually what you do during yr leave days is a reflection of how you'll live after retirement..If it means you spend it all holding a remote control watching series on Zee world, expect nothing different after retirement.

14. Start a project whilst still serving or working. Let your project run whilst at work and if it doesn't do well, start another one till it's running viably. When your project is viably running then retire to manage your business. Most people or pensioners fail in life because they retire to start a project instead of retiring to run a project. 

15. Pension money is not for starting a project or buy a stand or build a house but it's money for your upkeep or to maintain yourself in good health. Pension money is not for paying school fees or marrying a young wife but to look after yourself.

16. Always remember, when you retire never be a case study for living a miserable life after retirement but be a role model for colleagues to think of retiring too. 

17. Don't retire just because you are finished or you are now a burden to the company and just wait for your day to die. Retire young or whilst energetic to enjoy waking up for a cup of coffee, enjoy the sun, receive money from your business, visit nice place that you missed and spend good time with family. Those who retire late, spend about 95% of their time at work than with their family and that's why they see it difficult to spend time with their family when they retire but end looking for another job till they die. If they don't get another job, they die early.

18. Retire at your house than at government accommodation so that when you retire you can easily fit into the society that raised you. It's not easy to adjust to live in a location after spending more years at company house or at government house.

19. Never let your employment benefits make you forget about your retirement. Employment benefits are just meant to make you relax, get finished whilst time is moving. Remember when you retire no one will call you boss if you don't have a viable business.

20. Don't hate to retire because one day you will retire either voluntarily or involuntarily. 

Hope this will help you look at life positively

📸Millionaire Secrets

Saturday, October 7, 2023

मौसम और मजदूर

गर पसंद है तुम्हें बारिश, तो घर तेरा ऊंचाई पर है,
सर्दियां भाती हैं गर, तो सर तुम्हारा रजाई पर है।
लगती हैं अच्छी गर्मियां, तो हवा तेरे कमरे की तराई पर है,
हम ठहरे मजदूर, नजर हमारी मौसम पर नहीं , दो जून की कमाई पर है।

Friday, October 6, 2023

Inzamam: The heavyweight batting genius

If you were to ask any cricket enthusiast to name their top five batsmen, you'd typically hear names like Bradman, Viv Richards, Sachin Tendulkar, Lara, and Steve Waugh. Inzamam ul Haq's name seldom finds its way onto such lists, and there are valid reasons for that. Inzamam wasn't the fittest or the most agile athlete on the field. His running between the wickets often provided comic relief in cricketing circles, and his English language skills could amuse the elite. However, it's unanimous that no one would dare label Inzamam as a poor batsman. Those who witnessed his play would even argue that he was on par, if not better, than his contemporaries like Lara and Sachin.

What set Inzamam, or "Inzy bhai," apart? In one sentence, it was his extraordinary ability to seemingly have more time to play a shot—an extra second that made him exceptional and compensated for his other shortcomings. While most specialist batsmen are meticulous about their bat's size, weight, and brand, Inzamam was different. His dressing room tales reveal that he could casually pick up any bat, perhaps even one belonging to a number 11 batsman, and still score a century.

Listen to interviews with his contemporary bowlers like Waqar Younis and Wasim Akram, and you'll understand just how highly they regarded Inzamam for his batting genius. Despite his harmless appearance, he could wield the bat with remarkable speed. His batting repertoire included elegant cricketing shots, cheeky placements, and powerful brute force hits, all executed with that extra second. He detested running and preferred dealing in boundaries, shunning the idea of converting ones into twos. He believed in turning singles into fours and sixes.
Another reason why Inzamam is my personal favorite is his authentic persona and straightforward demeanor. He expressed his thoughts candidly and thought in simple terms. He made batting appear effortless and added a touch of grace to the game. These reminiscences harken back to a time when cricket was played in distinct seasons, unlike the continuous format we see today.

Statistics may not always do justice to Inzy bhai's true potential, as numbers can sometimes be deceptive. Inzamam seemed to be born in the wrong cricketing nation. Had he been born in Australia or India, his name would likely have been more prominent in those top five batsmen lists than it is today.

Monday, October 2, 2023

कटिहार जिले की स्वर्ण जयंती के अवसर पर

मेरे गृह जिला कटिहार का पचासवां स्थापना दिवस आज मनाया जा रहा है। 2 अक्टूबर 1973 को तत्कालीन पूर्णिया जिले के एक अनुमंडल से कटिहार एक स्वतंत्र जिला बना। 

गंगा कोशी और महानंदा जैसी प्रमुख नदियों के बीच बसा है कटिहार। जहां यह नदियां कटिहार की उपजाऊ भूमि और भरपूर पेयजल की जरूरत को पूरा करती हैं वहीं बाढ़ की समस्या भी हमारे यहां है। 

इस बात में शायद ही कोई शक हो कि कटिहार अब भी भारत और बिहार से सबसे पिछड़े जिलों में एक है। हालांकि अपने बचपन से अब तक मैने कटिहार को प्रगति करते ही देखा है। यह प्रगति विकास के हर पैमाने पर है। चाहे शिक्षा हो या सड़क या पानी, या बिजली । अस्सी के दशक के कटिहार से आज के कटिहार ने लंबी दूरी तय की है। कटिहार में आज बच्चों के लिए अच्छे स्कूल हैं, फोर लेन सड़कें हैं, चौबीस घंटे बिजली है। 

हां यह बात अलग है कि हमारी विकास दर देश के अन्य क्षेत्रों से थोड़ी कमतर रही है लेकिन हालिया वषों में यह शिकायत भी दूर होती नजर आ रही है। रेल संपर्क में कटिहार हमेशा ही मुख्य धारा से जुड़ा हुआ है। निकट भविष्य में साहिबगंज मनिहारी के बीच बन रहे फोर लेन ब्रिज और उसको जोड़ने वाली फोर लेन सड़क कटिहार को न केवल झारखंड बल्कि उत्तरपूर्व भारत तथा उत्तर भारत से जोड़ेगी। समृद्धि सड़क मार्ग से होकर आती है। इस सड़क के बन जाने के बाद समृद्धि कटिहार की ओर अपना रुख करेगी।

भागलपुर के विक्रमशिला पुल होकर जाने की जरूरत खत्म होने के बाद कटिहार साहिबगंज और मनिहारी में बन रहे मल्टी माडल ट्रांसपोर्ट हब का उपयोग कर कटिहार के कृषक और अन्य उत्पादक अपने उत्पादों के लिए एक बृहद बाजार से जुड़ सकेंगे। 

 कटिहार क्षेत्र अपने आम, मक्का, मखाना , चूड़ा और मछली जैसे उत्पादों को पूरे देश में भेजकर अपनी आय कई गुना बढ़ाने की पूरी संभावना रखता है। अभी तक कटिहार से मुख्यता अकुशल मजदूरों का दिल्ली पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में पलायन होता रहता है क्योंकि कटिहार में रोजगार की संभावनाएं अभी न्यून मात्रा में ही हैं। कोरोना काल में पूरे बिहार में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर कटिहार जिले में लौटे थे। आशा है शीघ्र ही रोजगार के लिए हो रहे पलायन दर में कमी आयेगी और रोजगार के अनेक अवसर कटिहार में ही उपलब्ध होंगे।

कटिहार के विकास की कक्षा में प्रक्षेपित होने की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और आने वाले समय में कटिहार के तीव्र विकास की गति को कोई भी नकार नहीं सकता। विकास के लिए आवश्यक हर कारक चाहे वो मानव संसाधन हो या अन्य भौतिक साधन , कटिहार में सबकी प्रचुर मात्रा उपलब्ध है। 

अगले पच्चीस साल कटिहार के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण पचास साल होने वाले हैं। आशा है इसमें कटिहार के निवासी, शासन और नीति निर्माता तीनों पूर्ण सहयोग रखेंगे और कटिहार जिले की स्थापना की हीरक जयंती के समय वर्ष 2048 में कटिहार एक विकसित जिला होगा।

अपनी स्वर्ण जयंती के अवसर पर कटिहार विकास के स्वर्ण युग में प्रवेश करे, ईश्वर से यही कामना है। सभी कटिहार वासियों को स्थापना दिवस की स्वर्ण जयंती की शुभकामनाएं।।