Friday, May 6, 2022

हनुमान और अंगद की कथा के मायने

वीरों का भूषण है क्षमा। हताशा और आवेश का परिणाम है तत्काल बदला लेने की उत्कंठा। रावण शूरों में शूरवीर था, प्रकांड पंडित था, लेकिन अंगद जैसे वानर के पांव पकड़ कर उसे उठाने को तत्पर हो उठा। जिसके पिता बालि को उसने अपनी कांख में दबा कर रखा था, उसके बेटे अंगद की रावण से कोई तुलना ना थी। लेकिन फिर भी रावण अंगद से चिढ़ गया। 

जिस रावण ने महाकाल शिव तक को अपने कंधे पर उठा लिया था, उसको हनुमान को लेकर अधीर होने की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन उसका समस्त ज्ञान और बल और नीति किसी काम न आए जब उसने एक वानर की पूंछ जला देने का आदेश दिया। एक वानर जो दूत की तरह आया था, रावण के कोप का भागी बनने लायक नहीं था। अंगद और हनुमान की कथा सिर्फ यह दर्शाती है कि जब कोई बड़ा अपने कद से छोटे व्यक्ति पर खीझ उठे तो उसके निर्णय बहुधा गलत ही होते हैं। जो रावण समस्त अनिष्ट के कारक शनिदेव को अपने पांव के नीचे दबा कर रखा था, वो भी अपनी स्वर्ण नगरी को भस्मीभूत होने से नहीं बचा सका। 

एक खीझे हुए महा बलशाली राक्षस पर एक वानर भारी पड़ता है।

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