करीब बाइस साल हो गए इक्कीसवीं सदी को और इस सदी को भारत की सदी बनाने का सपना अभी अधूरा ही दिखता है। विश्व के तीस सबसे प्रदूषित शहरों में बाइस भारत में हैं। राजधानी दिल्ली की बात करें तो प्रदूषण की वजह से औसतन एक सामान्य दिल्ली निवासी की जीवन प्रत्याशा करीब करीब नौ वर्ष कम हो जाती है। यह हवा लॉक डाउन के दौरान कुछ हद तक साफ हुई थी जब परिवहन, विनिर्माण, औद्योगिक गतिविधियों पर अभूतपूर्व रूप से रोक लग गई थी। लेकिन इस साफ हवा की कीमत थी लाखों का विस्थापन और उनका वापस गरीबी के दुष्चक्र में जा फंसने की गंभीर संकट। यह सच है कि भारत गरीबी और भूख की कीमत पर साफ हवा पाने का कार्य नहीं कर सकता।
इसका अर्थ है कि हमें अपनी समस्त आर्थिक गतिविधियों को जारी रखना है लेकिन हम उन्हें वर्तमान तौर तरीकों से जारी नहीं रख सकते। इसका सीधा सा तात्पर्य है कि हमें अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के माध्यमों में बदलाव की जरूरत है और यह मुद्दा सीधे सीधे रूप से हमारी ऊर्जा सुरक्षा से जा जुड़ता है। हालिया अंतराष्ट्रीय घटनाक्रमों यथा रूस यूक्रेन युद्ध और अंतराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती तेल की अनवरत कीमतों ने हमारी ऊर्जा सुरक्षा को सबसे महत्वपूर्ण विषय बना दिया है। बिना ऊर्जा सुरक्षा के इक्कीसवीं सदी के भारत की सदी बनाने का सपना एक दिवा स्वप्न के सिवा कुछ भी नहीं।
सौभाग्य की बात यह है कि हमारी पेट्रोलियम पर निर्भरता उतनी भी नहीं जितनी हम समझ रहे हैं। कार केवल छः प्रतिशत भारतीयों के पास है। लेकिन यह प्रतिशत तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2050 तक भारत की शहरी जनसंख्या वर्ष 2014 के मुकाबले दुगुनी हो जायेगी। और हमारी ऊर्जा आवश्यकता चार गुनी हो जायेगी। वर्ष 2030 तक आवश्यक अवसंरचना के सत्तर प्रतिशत का निर्माण अभी हुआ ही नहीं है। यह सर्वविदित है कि भारत ने अगर अपनी ऊर्जा स्रोतों में बदलाव नहीं किए और 2050/2030 तक की भारत की यात्रा के परिणाम भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिए घातक होंगे, आखिर मानवता के एक चौथाई हिस्से की के ऊर्जा उपभोग के परिणाम प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन के रूप में सबको झेलने होंगे।
ऊर्जा सुरक्षा के लिए 2030 तक हम त्रिस्तरीय लक्ष्यों पर काम कर रहे हैं। पहला सौर और पवन ऊर्जा का अधिकतम उत्पादन और दोहन। दूसरा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उन क्षेत्रों में उपयोग जहां अब तक इनकी खास पहुंच नहीं है जैसे औद्योगिक क्षेत्र और यातायात। तीसरा हमारे उपकरणों का ऊर्जा मितव्ययी और दक्ष करना।
जहां तक पहले उपाय का प्रश्न है भारत सूर्यातप के मामले में अत्यंत ही सौभाग्यशाली है । प्रतिवर्ष 300 दिन हमें भरपूर सौर ऊर्जा मिलती है। भारत अपनी समस्त ऊर्जा जरूरतों को केवल अपनी 10 प्रतिशत बंजर भूमि पर सौर पैनल लगा कर पूरा कर सकता है। पवन ऊर्जा के मामले में भी कमोबेश यही स्थिति है। पवन ऊर्जा हमें उन दिनों में ज्यादा उपलब्ध हैं जब सौर ऊर्जा कम मिलती है जैसे मानसून के दौरान। आज हम उस स्थिति में पहुंच चुके हैं जब सौर और पवन ऊर्जा की लागत कोयले से उत्पन्न ऊर्जा से कम हो चुकी है और यह उत्तरोत्तर कम होती जायेगी। बैटरियों की लागत में भी लगातार गिरावट आई है और आज सबसे सस्ते सोलर पैनल और बैटरी बनाना भारत में संभव हो चुका है। सौर और पवन ऊर्जा में निवेश करने के लिए यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण दशक है। ऊर्जा उत्पादन के।लिए राजस्थान के मरुस्थल और गुजरात के सामुद्रिक किनारों के साथ साथ विकेंद्रित ऊर्जा दोहन के लिए व्यवसायिक, सरकारी और निजी भवनों के ऊपर भी सोलर पैनल लगाने का काम तेजी से किया जा रहा है।
दूसरी बात यह कि हमें नवीकरणीय ऊर्जा को उन क्षेत्रों में पहुंचाना पड़ेगा जहां पारंपरिक रूप से इनका प्रयोग कम होता है। भारत का 80 प्रतिशत यातायात दोपहिया और तीनपहिया वाहनों से होता है। सड़क पर ई-रिक्शा की बढ़ती संख्या एक सुखदाई संकेतक है। यही काम हमें दोपहिया वाहनों के लिए भी करना होगा। सारी रेल को बिजली चालित करने के कार्य में हम तेजी से आगे बढ़ चुके हैं । डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर जैसी योजनाओं के बाद सड़क मार्ग से जाने वाला माल ढुलाई का काम रेल मार्ग के द्वारा साफ ऊर्जा के जरिए किया जा सकता है। भारी उद्योगों के लिए जहां सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा बेहतर विकल्प नहीं हैं वहां हमें हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा का प्रयोग करना होगा।
सबसे ज्यादा ऊर्जा उत्पादन और उनको उपभोग के दायरे को विस्तृत करने के बाद भी यह कार्य अधूरा ही रहेगा और हमें ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा मितव्ययिता पर काम नहीं किया। अगर हम आज उपलब्ध वातानुकूलन की दक्षता पर काम करें तो सिर्फ घरेलू एसी चलाने के लिए हमें यूरोप की तीन चौथाई ऊर्जा चाहिए होगी। अच्छी बात यह है कि अभी हम वर्क इन प्रोग्रेस नेशन हैं जहां अवसंरचना का निर्माण हो ही रहा है। नवनिर्माण में हम स्मार्ट बिल्डिंग, स्मार्ट लाईटिंग और स्मार्ट वातानुकूलन का प्रयोग कर अपनी ऊर्जा दक्षता बढ़ा रहे हैं। आवश्यक है कि हमारे नए निर्माण और नए शहरीकरण में इन मानकों का पूरी तरह पालन किया जाय।
इन सबके अलावा हमें ऊर्जा क्षेत्र में वित्त अनुशासन और राजनीतिक समझदारी की घोर आवश्यकता है। मुफ्त में बिजली बांटने की योजनाएं वोट दिला सकती हैं लेकिन हमारे ऊर्जा क्षेत्र में जरूरी विदेशी निवेश इससे हतोत्साहित होता है। आवश्यक है कि हम राजनैतिक इच्छाशक्ति और वित्तीय अनुशासन को अपनी ऊर्जा नीति और क्रियान्वयन का हिस्सा बनाएंगे। इक्कीसवीं सदी को भारत की सदी बनाने का मार्ग ऊर्जा सुरक्षा के जरिए ही जाता है। और बाहर जो कड़ी धूप पड़ रही है ना, वोही हमारी सबसे बड़ी शक्ति भी है।
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