Wednesday, May 25, 2022

जॉनी डेप और एम्बर हर्ड वाद के निहितार्थ

‌पुरुष हमेशा महिला को एक सुखदायक छवि के रूप में देखता है। चाहे उसपर वात्सल्य की वर्षा करने वाली माता हो या स्नेह सिंचित कर देने वाली बहन। नवयुवक के रूप में एक पुरुष की प्रेयसी वाली समस्त कल्पनाएं प्रणय की गुलाबी क्षणों की और आनंददायक सान्निध्य की अजस्त्र धारा मात्रा होती है। गार्हस्थ्य जीवन में भी अंधांगिनी के रूप में प्रेम और विश्वास जड़ित सहयोग के बल पर ही पुरुष अपने स्वप्न नीड़ का निर्माण करता है। उसकी आने वाली पीढ़ियों के लालन पालन में भले ही वो अपने आप को संग्राहक और अर्जक के रूप में देखता है लेकिन अपने द्वारा अर्जित आय से अपने बच्चों की भौतिक आवश्यकताओं की सफल पूर्ति के लिए अपनी पत्नी को ही वाहक मानता है। वो जानता है कि चाहे वो कितना भी अर्जन करे, एक स्त्री, जो उसकी अर्धांगिनी और उसके बच्चों की मां है, बच्चों का उचित लालन पालन मां के बिना अधूरा ही है। जीवन की संध्या बेला में भी पुरुष एक स्त्री संगिनी के सहारे ही अपने पल काटने की कल्पना करता है। 

‌पुरुष की रचना ही ऐसे हुई है कि वो स्त्री के वात्सल्यमयी, स्नेहसिंचित, प्रेमपूर्ण और सुखद संगिनी रूप के अलावा किसी और रूप में सोच नहीं पाता। इसीलिए जब भी पुरुष स्त्री को इनके अलावा किसी और रूप में पाता है तो अत्यंत ही दयनीय हो जाता है। एक बालक जिसकी माता की असमय मृत्यु हो गई हो , पहली बार अपनी सौतेली मां को भी मां के रूप में देखता है और उससे मातृवत व्यवहार की आशा रखता है। सौतेली मां का रुख व्यवहार बालक के अबोध मन को समझ नहीं आते क्योंकि उसका मन स्त्री को क्रूर रूप में देखने के लिए बना ही नहीं होता। एक युवक भी अपनी पत्नी की समस्त कल्पनाओं से परे जब किसी अपनी जीवन संगिनी के हाथों प्रेम और निष्ठा के सिवा कोई और भाव पाकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। पत्नी के हाथों क्रूरता झेलता पुरुष नितांत अकेला सा पड़ जाता है। बाह्य दुनिया उसकी बातों का विश्वास नहीं करती क्योंकि उसकी सच्चाई के उलट दुनिया स्त्री को एक ममतामयी रूप में तथा पुरुष को एक आक्रामक चरित्र के रूप में देखता है। 

‌यह सच है कि घरेलू हिंसा के अधिकतर मामलों में स्त्री ही पीड़ित होती है लेकिन घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों की संख्या भी कम नहीं है। यह संख्या अपनी वास्तविकता से कम दिखती है क्योंकि पीड़ित पुरुष बहुधा यह सोच कर अपना दर्द नहीं बताता कि पहला कोई उसका विश्वास नहीं करेगा दूसरा उसकी कहानी पुरुषों की "मर्द को दर्द नहीं होता" वाली छवि से मेल नहीं खाती। सौतली मां के हाथों प्रताड़ना झेलता बालक हो या पत्नी द्वारा झूठे दहेज मामले में अदालत के चक्कर लगाता पुरुष या अपनी बहू के हाथों अपमान का दंश सहता एक वृद्ध ससुर। सबकी कहानी अक्सर छुप जाती है या उजागर होने पर भी झुठला दी जाती है , मखौल का विषय बनती हैं।   

अमरीकी अभिनेता जॉनी डेप और उनकी तलाकशुदा पत्नी एम्बर हर्ड के चल रहे मुकदमे के दौरान बाहर आ रही जानकरियों ने इस बात को पुख्ता तौर से सामने रखा है कि पीड़ित पुरुषों की समस्या कोई अपवाद या कोई छोटी मोटी घटना नहीं है। महिला उत्पीडन की समस्या सर्वविदित है और उसके लिए पर्याप्त ना सही लेकिन कदम उठाए जा रहे हैं। उसके प्रति जागरूकता भी है। घरेलू हिंसा के पीड़ित पुरुषों के बारे में ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां न जागरूकता है और न ही इस दिशा में कोई भी कदम उठाए गए हैं । इसे झूठी मर्दानगी के जोड़ दिया जाता है जहां पीड़ित पुरुष को शर्मिंदगी का अहसास कराया जाता है । परिवार,समाज , न्याय व्यवस्था, पुलिस थाने में पुरुष को अविश्वास की दृष्टि से देखा जाता है। घरेलू हिंसा से जुड़े कानूनों का महिला के पक्ष में अत्यधिक झुका होना भी न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत की अवहेलना करता दिखता है।

अभिनेता जॉनी डेप ने अपनी कहानी दुनिया के सामने रख कर एक बहुत साहस का काम किया है। आशा है कि हम इस पूरे प्रकरण को एक मसालेदार पेज थ्री गॉसिप के रूप में देखने से ऊपर उठकर इसमें निहित संदेश को भी ग्रहण करेंगे और एक बेहतर समानता आधारित समाज की ओर बढ़ेंगे। 

Sunday, May 22, 2022

डॉक्टर गलत मरीज सही

एक महिला ने डॉक्टर को फोन किया। डॉक्टर साब, मेरे पति की तबियत ठीक नहीं है। डॉक्टर साब अपना आला, अपना बैग सब लेकर आए। पेसेंट को अच्छे से चेक किया और कहा , आई एम सॉरी। आपके पति अब नहीं रहे। महिला के पति ने कहा अबे यह क्या बात हुई मैं तो जिंदा हूं। महिला ने अपने पति को डांटते हुए कहा कि चुप रहो जी। तुम डॉक्टर हो या ये। तुमसे ज्यादा जानते हैं ये। ऐसे ही डॉक्टर थोड़े बने हैं।
कहने के लिए यह चुटकुला मैंने बचपन में सुना था और  शायद सुन कर हँसा भी था। लेकिन मन में यह भाव भी था कि ऐसा थोड़े ही हो सकता है। ऐसा कैसे हो सकता है कि सामने वाला बोले कि मैं जिंदा हूं और कोई डॉक्टर की बात मान के उसको मुर्दा मान ले। लेकिन जब से टीवी और आजकल यूट्यूब चैनल वालों को देखता हूं चुनाव परिणामों को समीक्षा करते हुए तो यही जोक याद आता है। जनता बोल चुकी है जो उसको बोलना था, और ये चुनावी पंडित अपने "सर्वे और अपने जमीनी अनुभव" का हवाला दे दे कर जनता को गलत साबित करने में लगे हुए हैं। भैया अब तो मान लो कि तुम्हारी डायग्नोसिस गलत थी। लेकिन नहीं, गले में चोंगा टांग रखा है तो हो गए डॉक्टर। और डॉक्टर तो हमेशा मरीज से ज्यादा ही जानता है!! 
तो उसी प्रकार से सामने एक माइक रख लेने और नाम के आगे वरिष्ठ पत्रकार, और चुनाव विशेषज्ञ लगा लेने के बावजूद भी जनता की आवाज के सामने तुम्हारी बात सही नहीं हो जाती। 

अगर आप अभी भी चुनावी विश्लेषण में लगे हुए हैं तो आप वोही डॉक्टर हैं जो जिंदा मरीज को मुर्दा और मुर्दा को जिंदा बता रहे हैं क्योंकि आपकी रिपोर्ट ऐसा कहती है। अगर आप उन लोगों में से हैं जो अभी तक उनको सुन रहे हैं और डॉक्टर को सही मानते हैं तो आप वो महिला हैं। मैडम, मरीज की सुनिए, डॉक्टर की नहीं। मरीज का हाल सबसे बेहतर मरीज ही बता सकता है। और अगर आप डॉक्टर और महिला दोनो नहीं हैं तो फिर आप जनता हैं। आप अच्छे से जिंदा हैं, किसी के कहने से आप और लोकतंत्र मर नहीं जाते, चाहे वो कहने वाला कोई भी हो। पंजाब हो या गोवा हो या हो उत्तर प्रदेश, जनता की आवाज में जनार्दन बोलते हैं। तो डॉक्टर साब, प्लीज अपना आला समेटिए, और निकल लीजिए पतली गली से। अगली बार किसी को दस्त की शिकायत हुई तो आपको फिर से आपको याद करेंगे !! 

पंचायत का अखंड कीर्तन

एकता कपूर के पास पैसा है, राइटर्स की जमात है ,मेकअप आर्टिस्ट की फौज है, VFX करने वाले टेक्नीशियन हैं, तो मैडम नागिन और गंदी बात का सीजन पर सीजन निकाल रही हैं। सलमान खान  के पास स्टारडम है, बॉलीवुड का सारा रिजेक्टेड कचरा है तो उसको रिसाइकल करके बिगबॉस बना बना के पैसे कमा रहे हैं।  टीवीएफ वालों के पास आइडिया है , कंटेंट है और इंटेंट है इसीलिए वो पंचायत बना रहे हैं । चाहे एकता कपूर और सलमान खान वाला कोई औकात नहीं है उनके पास। 

पंचायत का दूसरा सीजन देख के लगा जैसे मेनस्ट्रीम प्रोड्यूसर्स और डायरेक्टर्स मानो उस पूरा गांव के जैसे है जहां सबके पास शौचालय है लेकिन सब शौकिया खुले में कर रहे हैं । सीना तान के खुले में कर रहे हैं। और कुछ लोग हैं बिनोद जैसे , जो चाहते हैं कि कुछ भी हो बाहर हगने का सिस्टम बंद होना चाहिए। चाहे उसके लिए नंगी क्रांति तक क्यों नहीं करनी पड़े।

बाकी प्रधान जी मतलब रघुबीर यादव जी तो अभिनय के खेल के मंझे हुए खिलाड़ी हैं , और सचिव जी उर्फ जीतू भैया भी अब जाना पहचाना नाम हैं लेकिन इन सबके बीच बाजी मारी है सहायक सचिव और उप प्रधान जी ने। जासूस वही तो जासूस ना लगे और एक्टर वही जो एक्टिंग करता हुआ न दिखे। लगे कि बस कर रहा है, जी रहा है अपने किरदार को। सहायक सचिव उर्फ चंदन रॉय अपने रोल में घुस गया है। उसको देख के आप भी कहिएगा कि आपमें बहुत प्रतिभा है सर। पंचायत में गाना सब भी सही है, मुझे सिचुएशन के मुताबिक ही लगा। जहां जरूरत पड़ी बैकग्राउंड म्यूजिक भी बढ़िए दिया है। 

बाकी बचा मैन ऑफ द मैच। तो वो ट्रॉफी बहुत महीन अंतर से ही सही लेकिन उप प्रधान जी यानि हमारे फैसल मालिक को जाता है। आखिरी एपिसोड में फैसल पूरी सीरीज को अपने कंधे पर उठा लेते हैं और उस ऊंचाई पर ले जाते हैं जहां पंचायत को जाना ही चाहिए। अगर पंचायत का अगला सीजन आएगा तो लोग यह जानने में ज्यादा इंटरेस्टेड होंगे कि प्रह्लाद चचा कैसे हैं न कि सचिव जी का कैट क्लियर हुआ कि नहीं। 

बाकी सब कुछ अपनी जगह ठीक है। ठीक क्या बहुते बम पिलाट बना के धर दिया है अरुणाभ और दीपक जी ने। वैसे जब विद्यार्थी नब्बे से ज्यादए नंबर लाने लगता है तब टीचर खराब हैंडराइटिंग का भी नंबर काटने लगता है। उसी हिसाब से कुछ गलती अगर निकालनी ही है तो हम कहेंगे कि भाषा का टोन बलिया वाला नहीं है । यह टोन है पूर्णिया खगड़िया और बेगूसराय वाला। बाकी किसको पता फरक पड़ता है । सलमान खान और प्रियंका चोपड़ा का फेक एक्सेंट और कपिल शर्मा शो पर नकली लड़की बने लोगों को जब झेल ले रहे हैं तो इधर तो बस थोड़ा टोन ही गड़बड़ है। वैसे भी लड़का लड़की बन के नाचे तो फकौली वाले माफ करने वाले नहीं हैं तो फकौली बाजार में कपिल शर्मा नहीं चलने वाले। 

मौका लगे तो पंचायत का नबका सीजन देख मारिये, बहुत लोग तो अखंड कीर्तन की तरह एके बार में देख गए हैं जिसको अंग्रेजी में बिंज वाचिंग भी कहते हैं। और आप भी पंचायत का अखंड कीर्तन शुरू कर दीजिए। बिरयानी, पिज्जा और  सुशी और मोमो खा के अगर पक गए हैं तो प्रधान जी के बगीचे का लौकी खा के देखिए, मजा नहीं आया तो आप बनराकस ही हैं। आपका कुछ नहीं हो सकता।

Friday, May 20, 2022

ऊर्जा सुरक्षा और भारत

कहावत है कि किसी भी समस्या या दुविधा के समय एक आईना देखना सबसे ज्यादा कारगर उपाय है। जब आप आईना देखते हैं तो आपको अपनी समस्या का कारण और समाधान दोनो दिख जाते हैं। अभी भारत के सामने बिजली संकट और भीषण गर्मी की समस्या में यह बात बिलकुल सटीक बैठती है। बिजली संकट जहां हमारी ऊर्जा समस्या या ऊर्जा सुरक्षा के संकट दिखाती है वहीं बेहद गर्मी और सूर्यातप इसका समाधान है। 

करीब बाइस साल हो गए इक्कीसवीं सदी को और इस सदी को भारत की सदी बनाने का सपना अभी अधूरा ही दिखता है। विश्व के तीस सबसे प्रदूषित शहरों में बाइस भारत में हैं। राजधानी दिल्ली की बात करें तो प्रदूषण की वजह से औसतन एक सामान्य दिल्ली निवासी की जीवन प्रत्याशा करीब करीब नौ वर्ष कम हो जाती है। यह हवा लॉक डाउन के दौरान कुछ हद तक साफ हुई थी जब परिवहन, विनिर्माण, औद्योगिक गतिविधियों पर अभूतपूर्व रूप से रोक लग गई थी। लेकिन इस साफ हवा की कीमत थी लाखों का विस्थापन और उनका वापस गरीबी के दुष्चक्र में जा फंसने की गंभीर संकट। यह सच है कि भारत गरीबी और भूख की कीमत पर साफ हवा पाने का कार्य नहीं कर सकता।

इसका अर्थ है कि हमें अपनी समस्त आर्थिक गतिविधियों को जारी रखना है लेकिन हम उन्हें वर्तमान तौर तरीकों से जारी नहीं रख सकते। इसका सीधा सा तात्पर्य है कि हमें अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के माध्यमों में बदलाव की जरूरत है और यह मुद्दा सीधे सीधे रूप से हमारी ऊर्जा सुरक्षा से जा जुड़ता है। हालिया अंतराष्ट्रीय घटनाक्रमों यथा रूस यूक्रेन युद्ध और अंतराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती तेल की अनवरत कीमतों ने हमारी ऊर्जा सुरक्षा को सबसे महत्वपूर्ण विषय बना दिया है। बिना ऊर्जा सुरक्षा के इक्कीसवीं सदी के भारत की सदी बनाने का सपना एक दिवा स्वप्न के सिवा कुछ भी नहीं।
सौभाग्य की बात यह है कि हमारी पेट्रोलियम पर निर्भरता उतनी भी नहीं जितनी हम समझ रहे हैं। कार केवल छः प्रतिशत भारतीयों के पास है। लेकिन यह प्रतिशत तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2050 तक भारत की शहरी जनसंख्या वर्ष 2014 के मुकाबले दुगुनी हो जायेगी। और हमारी ऊर्जा आवश्यकता चार गुनी हो जायेगी। वर्ष 2030 तक आवश्यक अवसंरचना के सत्तर प्रतिशत का निर्माण अभी हुआ ही नहीं है। यह सर्वविदित है कि भारत ने अगर अपनी ऊर्जा स्रोतों में बदलाव नहीं किए और 2050/2030 तक की भारत की यात्रा के परिणाम भारत ही नहीं पूरे विश्व के लिए घातक होंगे, आखिर मानवता के एक चौथाई हिस्से की के ऊर्जा उपभोग के परिणाम प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन के रूप में सबको झेलने होंगे।
ऊर्जा सुरक्षा के लिए 2030 तक हम त्रिस्तरीय लक्ष्यों पर काम कर रहे हैं। पहला सौर और पवन ऊर्जा का अधिकतम उत्पादन और दोहन। दूसरा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उन क्षेत्रों में उपयोग जहां अब तक इनकी खास पहुंच नहीं है जैसे औद्योगिक क्षेत्र और यातायात। तीसरा हमारे उपकरणों का ऊर्जा मितव्ययी और दक्ष करना। 

जहां तक पहले उपाय का प्रश्न है भारत सूर्यातप के मामले में अत्यंत ही सौभाग्यशाली है । प्रतिवर्ष 300 दिन हमें भरपूर सौर ऊर्जा मिलती है। भारत अपनी समस्त ऊर्जा जरूरतों को केवल अपनी 10 प्रतिशत बंजर भूमि पर सौर पैनल लगा कर पूरा कर सकता है। पवन ऊर्जा के मामले में भी कमोबेश यही स्थिति है। पवन ऊर्जा हमें उन दिनों में ज्यादा उपलब्ध हैं जब सौर ऊर्जा कम मिलती है जैसे मानसून के दौरान। आज हम उस स्थिति में पहुंच चुके हैं जब सौर और पवन ऊर्जा की लागत कोयले से उत्पन्न ऊर्जा से कम हो चुकी है और यह उत्तरोत्तर कम होती जायेगी। बैटरियों की लागत में भी लगातार गिरावट आई है और आज सबसे सस्ते सोलर पैनल और बैटरी बनाना भारत में संभव हो चुका है। सौर और पवन ऊर्जा में निवेश करने के लिए यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण दशक है। ऊर्जा उत्पादन के।लिए राजस्थान के मरुस्थल और गुजरात के सामुद्रिक किनारों के साथ साथ विकेंद्रित ऊर्जा दोहन के लिए व्यवसायिक, सरकारी और निजी भवनों के ऊपर भी सोलर पैनल लगाने का काम तेजी से किया जा रहा है।

दूसरी बात यह कि हमें नवीकरणीय ऊर्जा को उन क्षेत्रों में पहुंचाना पड़ेगा जहां पारंपरिक रूप से इनका प्रयोग कम होता है। भारत का 80 प्रतिशत यातायात दोपहिया और तीनपहिया वाहनों से होता है। सड़क पर ई-रिक्शा की बढ़ती संख्या एक सुखदाई संकेतक है। यही काम हमें दोपहिया वाहनों के लिए भी करना होगा। सारी रेल को बिजली चालित करने के कार्य में हम तेजी से आगे बढ़ चुके हैं । डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर जैसी योजनाओं के बाद सड़क मार्ग से जाने वाला माल ढुलाई का काम रेल मार्ग के द्वारा साफ ऊर्जा के जरिए किया जा सकता है। भारी उद्योगों के लिए जहां सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा बेहतर विकल्प नहीं हैं वहां हमें हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा का प्रयोग करना होगा।

सबसे ज्यादा ऊर्जा उत्पादन और उनको उपभोग के दायरे को विस्तृत करने के बाद भी यह कार्य अधूरा ही रहेगा और हमें ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा मितव्ययिता पर काम नहीं किया। अगर हम आज उपलब्ध वातानुकूलन की दक्षता पर काम करें तो सिर्फ घरेलू एसी चलाने के लिए हमें यूरोप की तीन चौथाई ऊर्जा चाहिए होगी। अच्छी बात यह है कि अभी हम वर्क इन प्रोग्रेस नेशन हैं जहां अवसंरचना का निर्माण हो ही रहा है। नवनिर्माण में हम स्मार्ट बिल्डिंग, स्मार्ट लाईटिंग और स्मार्ट वातानुकूलन का प्रयोग कर अपनी ऊर्जा दक्षता बढ़ा रहे हैं। आवश्यक है कि हमारे नए निर्माण और नए शहरीकरण में इन मानकों का पूरी तरह पालन किया जाय। 

इन सबके अलावा हमें ऊर्जा क्षेत्र में वित्त अनुशासन और राजनीतिक समझदारी की घोर आवश्यकता है। मुफ्त में बिजली बांटने की योजनाएं वोट दिला सकती हैं लेकिन हमारे ऊर्जा क्षेत्र में जरूरी विदेशी निवेश इससे हतोत्साहित होता है। आवश्यक है कि हम राजनैतिक इच्छाशक्ति और वित्तीय अनुशासन को अपनी ऊर्जा नीति और क्रियान्वयन का हिस्सा बनाएंगे। इक्कीसवीं सदी को भारत की सदी बनाने का मार्ग ऊर्जा सुरक्षा के जरिए ही जाता है। और बाहर जो कड़ी धूप पड़ रही है ना, वोही हमारी सबसे बड़ी शक्ति भी है। 

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Sunday, May 15, 2022

Buddha : The Yogi

If we notice Bhagwan Buddha's statues or paintings, we can see that he is depicted as a very handsome, well built person, having almost a perfect physique. These are described as the "32 signs of a great man". Apart from this, Buddhist texts describe another 80 characteristics of a perfect man. 
Though the first statue of Bhagwan Buddha was built at least 500–600 years after his death, it is believed that these statues were built based on earlier available texts on his appearance. Buddha is invariably depicted as a healthy, handsome man, regardless of the school of art or source of description of his physical appearance.

If we consider Buddha's lifestyle, he lived a very austere life. surviving on alms, whatever is received during the day. Eating one meal a day Buddhist texts describe how he used to sleep only an hour a day. With this much food and rest, he still used to walk for 30-40 km a day and address his disciples for hours every day. It leaves me wondering how one can remain so healthy with such a hard lifestyle.

 The only possible answer I can think of is that Bhagwan Buddha had reached the pinnacle of yogic practises where he had attained full control of his body functions. This is a stage where a yogi gets full control of their hunger, libido, sleep, and other bodily functions. If you look closely, you'll notice that none of the Buddha statues have a moustache or a beard. It's very hard to imagine that he shaved daily given the ascetic lifestyle he had . If we take the liberty to extend the effects of his yogic prowess, we may imagine that he had so much control over his body that he even controlled the growth of facial /body hair. 

Even Buddhist texts contain accounts of how Buddha announced his own death and was aware of his death time. This can only be possible at the highest level of yoga and meditation. We may believe that Buddha was first a yogi before becoming the Buddha as the world knows him. Look at any of his statues. That mysterious smile and a glow /calmness on his face can only come via Yoga. 

Good wishes on Buddha Purnima. 

वो चीज ही क्या

वो वाणी की मिठास किसी काम की नहीं को कटु सत्य बोलने से रोक दे। वो रूप किसी काम का नहीं जो चरित्रहीन बना दे। वो शस्त्र कैसा जो आत्मसम्मान की रक्षा के समय म्यान में पड़ा रहे। वो शास्त्र ज्ञान किसी काम का नहीं जो कर्म से विमुख कर दे। वो सुख ही क्या जो दुख सहने की क्षमता छीन ले। वो सुस्वादु भोजन ही क्या जो स्वास्थ्यकर ना हो। वो ओहदा ही कैसा जो बचपन के मित्रों से दूर कर दे। वो धन ही क्या जो धर्म के काम न आ सके। वो नीतिपरायणता ही कैसी जो विभीषण बना दे।

Wednesday, May 11, 2022

खुशियों का इंजन

दुनिया की रेल में
खुशियां जैसे बन गई हैं 
इंजन, दनदनाती हुई भाग रही है
सीटी बजाते हुए
और मैं पीछे हांफता सा दौड़ता
गार्ड के डिब्बे की तरह।

कितना भी तेज दौड़ लूं
दूरी वोही रहती है 
मेरे और खुशियों के बीच।
ज्यादातर वक्त गार्ड के डिब्बे को 
दिखता तक नहीं 
खुशियों का इंजन
कि आखिर दौड़ रहा हूं किनके पीछे? 
बस कभी कभी जिंदगी की रेल में
आता है कोई मोड़
जब धीमी हो जाती है
चाल रेलगाड़ी की,
तब गार्ड के डब्बे को
 दिख पाता है इंजन 
पहले से थोड़ा नजदीक।

लेकिन जानता हूं कि यह भी 
एक छलावा ही है
दूरी उतनी ही है मेरे 
और खुशियों के बीच
निकल जायेगा यह मोड़
और फिर ओझल हो जायेगा
खुशियों का इंजन।

हां अनवरत चलती रहेगी।
यह दौड़ पटरियों पर।
चाह कर भी नहीं रुक सकता
खुशियों का इंजन
 खींचता रहता है मुझे लगातार
और लाचार मैं भागता रहता हूं 
खुशियों के पीछे
इस यकीन के साथ 
मिल ही जाएगी खुशियां
कभी न कभी।

Sunday, May 8, 2022

let's make every mother a happy mother


Sharing mushy quotes and anecdotes on Mother's Day is fine, but often celebrating Mother's Day demands much more than that. 
 
Maternal mortality rate (MMR) stands for the death rate of mothers due to pregnancy-related causes. According to a special bulletin issued by the Registrar General of India, India had 103 deaths per lakh births in 2017–19, which is still quite high. For a BPL family, motherhood means losing wages, facing malnutrition, health issues, and the possibility of a child dying from curable diseases.
Our state governments and central government are running several programmes to target this issue. This strategy has multiple folds. It aims to compensate a mother's wage loss during pregnancy by meeting her nutritional needs during and after pregnancy, providing facilities for an institutional childbirth in a hospital, and ensuring that both mother and child are properly vaccinated. There is a vast network of ASHA workers, Aanganwadi Didi's, and PHCs to ensure that all pregnancies are reported, documented, and given proper care from 1st trimester to childbirth and post-childbirth. 
 
Some of the programmes are either run by the central government under umbrella schemes like Poshan Abhiyaan, ICDS, Pradhan Mantri Matru Vandan Yojna or some stand-alone programmes are run by state governments along with NGOs. 
 
It's very easy to be an armchair critic and say that the system doesn't work, but the truth is that we are part of the system. If the system doesn't work properly, it only means that we are not doing our part properly. Look around yourself. You will see a lot of vulnerable people who can benefit a lot from such initiatives. maids, security guards, househelp, people living in slums. They may be working at your home, at your workshop, or running a small shop outside your office. Make sure that you help them during their pregnancy. Don't deduct salaries while they are on leave. make them aware of the benefits of registering their pregnancies. Let them know about the little care to be taken during pregnancy. Help to get to a nearby primary health centre (PHC) and get a protective cover from state run schemes.

Let's take small steps towards making motherhood a pleasant emotional milestone for the less privileged ones too.. Until every mother feels safe and happy while carrying a life within her, our work is incomplete.

Happy Mother's Day. 

Friday, May 6, 2022

हनुमान और अंगद की कथा के मायने

वीरों का भूषण है क्षमा। हताशा और आवेश का परिणाम है तत्काल बदला लेने की उत्कंठा। रावण शूरों में शूरवीर था, प्रकांड पंडित था, लेकिन अंगद जैसे वानर के पांव पकड़ कर उसे उठाने को तत्पर हो उठा। जिसके पिता बालि को उसने अपनी कांख में दबा कर रखा था, उसके बेटे अंगद की रावण से कोई तुलना ना थी। लेकिन फिर भी रावण अंगद से चिढ़ गया। 

जिस रावण ने महाकाल शिव तक को अपने कंधे पर उठा लिया था, उसको हनुमान को लेकर अधीर होने की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन उसका समस्त ज्ञान और बल और नीति किसी काम न आए जब उसने एक वानर की पूंछ जला देने का आदेश दिया। एक वानर जो दूत की तरह आया था, रावण के कोप का भागी बनने लायक नहीं था। अंगद और हनुमान की कथा सिर्फ यह दर्शाती है कि जब कोई बड़ा अपने कद से छोटे व्यक्ति पर खीझ उठे तो उसके निर्णय बहुधा गलत ही होते हैं। जो रावण समस्त अनिष्ट के कारक शनिदेव को अपने पांव के नीचे दबा कर रखा था, वो भी अपनी स्वर्ण नगरी को भस्मीभूत होने से नहीं बचा सका। 

एक खीझे हुए महा बलशाली राक्षस पर एक वानर भारी पड़ता है।

Tuesday, May 3, 2022

क्षय का अक्षय चक्र

क्षय और निर्माण प्रकृति की संपूरक प्रक्रिया द्वय हैं। बिना क्षय निर्माण संभव नहीं और निर्माण होता ही इसीलिए है कि उसका क्षय हो। आपकी काया का निर्माण उन असंख्य अणु परमाणुओं से हुआ है जो अनादि काल से प्रकृति में मौजूद हैं और आपके जाने के बाद भी इसी प्रकृति में उपस्थित रहेंगे ।आपका अपना शरीर भी उन अनंत कणों की अनवरत यात्रा में एक क्षणिक संयोग ही है जब वे सारे कण मिलकर आपके शरीर का निर्माण कर रहे हैं। किंतु क्षय और निर्माण की प्रक्रिया भी अनवरत जारी है और इन कणों का आपके शरीर से जुड़ना और अलग होना भी। आपके शरीर से निकलता एक एक स्वेद कण, हर श्वास  आपसे कुछ अलग करती है और आपका हर निवाला आपमें नए कणों को जोड़ रहा है। हर पल आप पिछले पल से अलग हैं और प्रतिक्षण में आप नए रूप में हैं। कोई भी दो क्षण आप बिल्कुल एक से नहीं होते। 

यही बात प्रकृति के हर जड़ चेतन के साथ सही है। आप एक नदी में दो बार नहीं नहा सकते। आपके अगले स्नान के समय आप अपने पिछले स्नान से अलग शरीर लेकर एक अलग नदी में प्रवेश करते हैं। यह सब क्षय और निर्माण की शक्तियों का खेल है। 

मनुष्य जरूर नियमों से लड़ने का प्रयास करता रहता है। वो अक्षय बनना चाहता है, चिरयुवा बना रहना चाहता है। ऐसे स्मारकों, ऐसे भवनों ऐसी प्रतिमाओं का निर्माण करना चाहता है जो उसकी कीर्ति को क्षय से अक्षुण्ण रख सकें। अमृत, स्वर्ग , अमरत्व जैसी अवधारणाएं, ऋषि च्यवन की कथा और ऐसी अनेक कथाएं मानव इच्छा और फैंटेसी की उपज हैं जहां वो क्षय पर विजय पाने की कल्पना भर कर सकता है।
वास्तविकता में क्षय ही जीवन है। हमारी पृथ्वी पर जीवन का एक मात्र स्रोत सूर्य भी पल पल क्षरित हो रहा है। तो समस्त जीवन सूर्य के क्षय पर ही निर्भर है, जिस दिन यह क्षय रूक गया, समस्त निर्माण, जीवन, चेतन ,चेतना सब रुक जाएगी। क्षय का अर्थ विनाश नहीं है। क्षय का अर्थ , एक मात्र अर्थ है रूपांतरण।दुनिया में ,प्रकृति में जो भी है क्षरित होता है। जो क्षरित नहीं होता वो प्रकृति से दूर अवश्य ही कल्पनालोक में अवस्थित है। अक्षय तृतीया भी उसी दिन मनाते हैं जिस दिन मानते हैं कि गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थी। स्वर्ग क्षय के नियमों से परे है इसीलिए स्वर्ग से अवतरित मां गंगा की धारा को धरती में आने को अक्षय तृतीया कहा गया। अनवरत क्षय के सिद्धांत के सिवा और कुछ भी अक्षय नहीं है।

Monday, May 2, 2022

भगवान राम की बड़ी बहन शांता और अंग प्रदेश

रामायण में भगवान राम की कथा का एक बहुत कम लोगों को ज्ञात पहलू है उनकी बहन शांता का। महाराज दशरथ और रानी कौशल्या की पुत्री थी शांता। अर्थात् राम भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न की बड़ी बहन। शांता की कथा के अलग अलग रूप अलग अलग ग्रंथो में उपलब्ध हैं। एक कथा के अनुसार अयोध्या में एक बार भयंकर सूखा पड़ा। सूखे की समस्या से निपटने में जन समस्त उपाय व्यर्थ गए तब आपदमुक्ति और दैवीय प्रकोप निवारण के लिए राजा दशरथ ने ऋषि ऋष्यश्रृंग को बुलाया। यज्ञ के सफल संपन्न होने के बाद जब खूब वृष्टि हुई तो राजा दशरथ ने ऋषि ऋष्यश्रृंग को दक्षिणा मांगने को कहा। ऋषि ऋष्यश्रृंग ने राजा दशरथ से उनकी पुत्री शांता का हाथ मांग लिया। रघुकुल रीत निभाते हुए राजा दशरथ ने शांता का विवाह ऋषि ऋष्यश्रृंग के साथ किया।

दूसरी कथा ने अनुसार , रानी कौशल्या की बड़ी बहन वर्षिणी का विवाह अंग प्रदेश के शासक महाराज रोमपद से हुआ था। रोमपद और वर्षिणी की कोई संतान ना थी इसलिए उन्होंने रानी कौशल्या और दशरथ से उनकी पुत्री शांता को मांग लिया था। शांता को गोद लेने के बाद राजा रोमपद और रानी वर्षिणी ने उसका अच्छे से लालन पालन किया और इस प्रकार शांता अंग प्रदेश की राजकुमारी बन गई। इस कथा के अनुसार अंग प्रदेश में सूखा पड़ने के बाद हुए यज्ञ को पूर्ण कराने की दक्षिणा में रोमपद ने ऋषि ऋष्यश्रृंग का विवाह अपनी दत्तक पुत्री शांता के साथ किया था।

यह ऋषि ऋष्यश्रृंग वोही है जो आगे चलकर राजा दशरथ के यहां पुत्रेष्टि यज्ञ करते हैं जिसके फल स्वरूप राम भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म होता है। इस प्रकार अंग प्रदेश ना केवल महाभारत में बल्कि रामायण के एक अत्यंत महत्वपूर्ण रूप में उल्लेखित है। जहां राजा दशरथ अपने पुत्रों का विवाह मिथिला में करते हैं वहीं उनकी एक मात्र पुत्री का लालन पालन और विवाह अंग क्षेत्र में होता है। 

अंग प्रदेश यानि वर्तमान भागलपुर और मुंगेर पर आधारित आलेखों की श्रृंखला में यह तीसरा आलेख है।
इससे पहले के दो आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं। 
http://sumanblogs8.blogspot.com/2022/04/blog-post_28.html

http://sumanblogs8.blogspot.com/2022/04/blog-post_11.html



Sunday, May 1, 2022

Detox to our carbon addiction

Most of us have already bought our last internal combustion engine automobile. The Electric vehicle or EV wave will hit us sooner than we think. Somebody asked Elon Musk about at how many places in UK we can charge this car? Musk answers anywhere with an electric outlet. The charger is inbuilt within the car so any motel, roadside restaurant or a private residence is your potential fuel station. Apart from that Tesla will build supercharger points across the country where you can charge your car for free. So effectively it will be possible to travel across country for free. It won't take much time for such times to come in India given we have the highest hydrocarbons dependency and our motivation for moving to EVs will be among the highest.

EVs are the best detox for humans who are currently addicted to hydrocarbons. Hopefully soon we will remember and tell anecdotes about high fuel prices and costly travels in same way as today we talk about mobile tarriffs and slower internet speed in India in pre-jio era. Many will remember the times we used to pay 16 rs per minute for incoming calls, roaming charges outside your circle and boast about 100 kbps internet speed. Remember these high petroleum prices to tell your kids stories about them and amaze them. EVs are coming and they are coming fast..