पुरुष की रचना ही ऐसे हुई है कि वो स्त्री के वात्सल्यमयी, स्नेहसिंचित, प्रेमपूर्ण और सुखद संगिनी रूप के अलावा किसी और रूप में सोच नहीं पाता। इसीलिए जब भी पुरुष स्त्री को इनके अलावा किसी और रूप में पाता है तो अत्यंत ही दयनीय हो जाता है। एक बालक जिसकी माता की असमय मृत्यु हो गई हो , पहली बार अपनी सौतेली मां को भी मां के रूप में देखता है और उससे मातृवत व्यवहार की आशा रखता है। सौतेली मां का रुख व्यवहार बालक के अबोध मन को समझ नहीं आते क्योंकि उसका मन स्त्री को क्रूर रूप में देखने के लिए बना ही नहीं होता। एक युवक भी अपनी पत्नी की समस्त कल्पनाओं से परे जब किसी अपनी जीवन संगिनी के हाथों प्रेम और निष्ठा के सिवा कोई और भाव पाकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। पत्नी के हाथों क्रूरता झेलता पुरुष नितांत अकेला सा पड़ जाता है। बाह्य दुनिया उसकी बातों का विश्वास नहीं करती क्योंकि उसकी सच्चाई के उलट दुनिया स्त्री को एक ममतामयी रूप में तथा पुरुष को एक आक्रामक चरित्र के रूप में देखता है।
यह सच है कि घरेलू हिंसा के अधिकतर मामलों में स्त्री ही पीड़ित होती है लेकिन घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों की संख्या भी कम नहीं है। यह संख्या अपनी वास्तविकता से कम दिखती है क्योंकि पीड़ित पुरुष बहुधा यह सोच कर अपना दर्द नहीं बताता कि पहला कोई उसका विश्वास नहीं करेगा दूसरा उसकी कहानी पुरुषों की "मर्द को दर्द नहीं होता" वाली छवि से मेल नहीं खाती। सौतली मां के हाथों प्रताड़ना झेलता बालक हो या पत्नी द्वारा झूठे दहेज मामले में अदालत के चक्कर लगाता पुरुष या अपनी बहू के हाथों अपमान का दंश सहता एक वृद्ध ससुर। सबकी कहानी अक्सर छुप जाती है या उजागर होने पर भी झुठला दी जाती है , मखौल का विषय बनती हैं।
अमरीकी अभिनेता जॉनी डेप और उनकी तलाकशुदा पत्नी एम्बर हर्ड के चल रहे मुकदमे के दौरान बाहर आ रही जानकरियों ने इस बात को पुख्ता तौर से सामने रखा है कि पीड़ित पुरुषों की समस्या कोई अपवाद या कोई छोटी मोटी घटना नहीं है। महिला उत्पीडन की समस्या सर्वविदित है और उसके लिए पर्याप्त ना सही लेकिन कदम उठाए जा रहे हैं। उसके प्रति जागरूकता भी है। घरेलू हिंसा के पीड़ित पुरुषों के बारे में ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां न जागरूकता है और न ही इस दिशा में कोई भी कदम उठाए गए हैं । इसे झूठी मर्दानगी के जोड़ दिया जाता है जहां पीड़ित पुरुष को शर्मिंदगी का अहसास कराया जाता है । परिवार,समाज , न्याय व्यवस्था, पुलिस थाने में पुरुष को अविश्वास की दृष्टि से देखा जाता है। घरेलू हिंसा से जुड़े कानूनों का महिला के पक्ष में अत्यधिक झुका होना भी न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत की अवहेलना करता दिखता है।