Saturday, April 9, 2022

सोना उगलती धरती

पीली पीली सरसों से भरे खेत जहां वसंत के आगमन और भविष्य में होने वाली फसल की आशा से किसान का मन भरता है तो वहीं पकी गेहूं की फसल वाले सुनहले कालीन का मतलब है कि तपस्या पूर्ण हो गई है।


किसान के ललाट पर पसीने के चमकीले हीरे से सींचे जाने से लेकर हरी बालियों के झूमते सौंदर्य और फिर जड़ से तने और फुनगी तक एकाश्म सुनहरा रंग प्राप्त करने तक का सफर गेंहू करीब करीब तय कर चुका है।  


पकी गेंहू की फसल वाले खेत का सौंदर्य सिर्फ किसान के मन को उल्लासित नहीं करता। छोटी छोटी चिड़िया को पके दानों को अपने चोंच में भर भर कर ले जाते देख ऐसा लगता है किसी बच्चे को खिलौने की एक अकूत निधि मिल गई है और वो अपने नन्हे नन्हे हाथों से एक एक खिलौना उठा उठा कर के जा रहा हो। और साथ में उसकी प्रसन्नता का उद्घोष बीच बीच में अनायास ही उठ रही किलकारी कर रही हो। रात में खेत के पास से गुजारिए तो झींगुर का शोर शोर सुनाई पड़ता है । लाजिमी है कि एक स्वर्ण भंडार की सुरक्षा का भार झींगुर सेना ने उठा रखा है जो खेत के चारों तरफ से जागते रहो जागते रहो वाली आवाजें निकालते रहते हैं। बीच बीच में चूहों के बिल दिखेंगे जिसने लिए भी नवान्न उत्सव पूरे जोरों पर है। आखिर वे भी प्रकृति की उतने ही प्रिय संतान हैं और गणपति का भार उठाने का पारिश्रमिक उनका भी बनता है। 


अपने कंधों के बल पर हल खींचने वाले बैल भी अपने लिए चोकर और भूसे की नई आमद देख प्रसन्न हो उठते हैं। समस्त गऊ वंश बारिश के मौसम में चारागाह डूब जाने की स्थिति में गेंहू के भूसे पर ही गुजारा करता है। यह स्वर्ण भंडार उनके लिए भी एक सुखद भविष्य का एक आश्वासन है। दूर से गुजरती रेलगाड़ी के डब्बे में परदेश कमाने जा रहे हर पथिक रास्ते के की पूरी और लिट्टी भी इन्ही कांचन कोश से आएगा।


यही खेतों में पसरा सोना आगे चल कर दो जून की रोटी बनेगा तो ठाकुरबाड़ी का छप्पन भोग का हलवा भी यहीं से आएगा। ईद की सेवई भी यहीं से आयेगी और लंगर भी इन्ही से छका जायेगा। यह प्रकृति का सबसे सुखद रूप है, अगर यह देख कर भी कोई ईश्वर को नकारता है या प्रकृति से परे भी किसी अन्य सत्ता का कृतज्ञ बनता है तो उससे बड़ा मूर्ख कोई नही । और हां , मेरे देश की धरती सोना उगले वाले गाने में कोई अतिशयोक्ति अलंकार नहीं है, वो पूर्ण यथार्थ है। 

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