अपनी निधि खोने के बाद
उसे बिलखते देखा है।
रोते हुए उसको अपने सालों सहेजे
खजाने को सौपते देखा है।
जश्न मनाती दुनिया के बीच खड़े अपने
कलेजे के टुकड़े को दूर जाते देखा है।
कंधे पर बिठाया गोद में उठाया जिसे
अपनी परी को दूर देश उड़ जाते देखा है।
पलकों पर बिठाया जिसको
उसको पलों में दूर जाते देखा है।
भरे अपनी आखों में आंसू अपनी घर की लक्ष्मी से
किसी पराए का घर बस जाते देखा है।
फूल सी अपनी बच्ची को
दुल्हन के जोड़े में सजते देखा है।
निभाकर क्रूर रीति दुनिया की
फूट फूट कर रोते देखा है।
कई रातों से जागी थकी आखों को बेटी विदा कर आखिरकार बेटी के बाप को सोते देखा है।
हम सबने सुना है दुल्हन का क्रंदन
क्या पिता का धर्म निभाते
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