Thursday, April 28, 2022

हमें सभ्य बनाने वाले का स्मारक

भागलपुर शहर का सबसे व्यस्त चौराहा है तिलकामांझी चौक। वहां से गुजरते समय ट्रैफिक जाम में आपको कुछ न कुछ देर रुकना ही पड़ता है। व्यस्त चौराहे के बीच में ही तीर धनुष ताने जबरा पहाड़िया बाबा उर्फ तिलका मांझी की एक प्रतिमा लगी है। तिलका मांझी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद माने जाते हैं जिन्हें वर्ष 1785 में ही अंग्रेजी कंपनी के खिलाफ विद्रोह करने के लिए सरेआम फांसी दे दी गई थी। आज जहां बाबा मांझी की प्रतिमा लगी है वहीं कभी एक बरगद का पेड़ था जिससे लटका कर बाबा तिलका मांझी को फांसी दी गई थी।

सामान्यता भागलपुर में आने जाने वाले लोगों को तिलका मांझी के बारे में इतना जरूर पता होता है कि वो कोई स्वतंत्रता सेनानी थे। आप तिलका मांझी चौक से थोड़ा कचहरी की तरफ तो बांए तरफ आपको एक शिला तोरण द्वार दिखेगा जिस पर लिखा है क्लीवलैंड मेमोरियल। अंदर सफेद पत्थर से बना एक स्मारक है जिसे क्लीवलैंड मेमोरियल कहते हैं। शायद आपका ध्यान भी न जाए तो आपकी गलती नहीं है। लेकिन तिलका मांझी और इस क्लीवलैंड मेमोरियल में गहरा संबंध है। क्लीवलैंड मेमोरियल एक ब्रिटिश अधिकारी अगस्तास क्लीवलैंड की याद में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाया गया। अगस्तास क्लीवलैंड भागलपुर, मुंगेर और राजमहल जिलों का कलक्टर था।वर्ष 1770 में आए अकाल के दौरान भी कर उगाही और लगान वसूली में क्लीवलैंड के द्वारा काफी सख्ती बरती गई। इसका सबसे बुरा प्रभाव पहाड़िया जनजातियों पर पड़ा। इसके खिलाफ ही जबरा पहाड़िया बाबा के नेतृत्व में एक सशस्त्र विद्रोह हुआ। बाबा ने कंपनी के अत्याचारों का बदला लेने के लिए ही कलेक्टर क्लीवलैंड पर तीर और गुलेल से हमला किया। कहा जाता है कि बाबा की जहरीली गुलेल से घायल होकर ही क्लीवलैंड की मौत हुई। इसके बाद कंपनी के एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाया, तिलका मांझी को पकड़ने के लिए। बाबा करीब साल भर बाद पकड़े गए और कंपनी द्वारा एक क्रूर बर्बर तरीके से मृत्यु के घाट उतार दिए गए।ईस्ट इंडिया कंपनी ने क्लीवलैंड की याद में दो स्मारक बनाए। एक कोलकाता में और दूसरा भागलपुर में। जिस जगह पर बाबा तिलका मांझी को फांसी दी गई उससे चंद कदम दूर पर ही। 

क्लीवलैंड को कोलकाता के पार्क स्ट्रीट कब्रगाह में दफनाया गया और उसकी कब्र पर अंग्रेजी में लिखा है " He civilized a Savage Race of Mountaineers who for Ages had existed in a state of Barbarism And eluded every Exertion that had been practised against them To Suppress their Depredations, and reduce them to obedience. "

एक विडंबना ही देखिए कि जिस अधिकारी को पहाड़ी जनजातियों को "सभ्य" बनाने और "आज्ञाकारी" बनाने के लिए महिमामंडित किया गया है, उसी की सरकार ने तिलका मांझी को चार घोड़े की टांग में बांध कर राजमहल से भागलपुर तक घसीटा और फिर सरेआम फांसी देने का "सभ्य तरीका" अपनाया। 

कभी कभी सोचता हूं कि इन विडंबनाओं के सम्मिश्रित इतिहास का क्या किया जा सकता है। तिलका मांझी और क्लीवलैंड दोनो हमारे इतिहास का हिस्सा हैं। किसी को भुला देना या मिटा देना समाधान नहीं है। हां ,लेकिन क्या क्लीवलैंड मेमोरियल के बाहर यह लिखा जाना चाहिए कि बाबा और उनके समाज पर क्लीवलैंड ने क्या जुल्म ढाए थे। पूरा सच सबको पता चलना ही चाहिए। इतिहास के पुनर्लेखन की नहीं तो कम से कम पुनर्विवेचन की आवश्यकता तो बनती ही है। जब तक ऐसा नहीं होगा बाबा तिलका मांझी की प्रतिमा एक चौराहे पर खड़े धूल फांकती रहेगी और उसी से कुछ दूर पर क्लीवलैंड स्मारक हम लोगों को सभ्य बनाने का दंभ भरता रहेगा। 

No comments: