के पन्नो के बीच मिला सहेज कर
रखा एक सूखा फूल गुलाब का।
जो गिर गया था तुम्हारे जूड़े से
लाइब्रेरी की कतार में
और मैंने रख लिया था उसको सहेज कर
अपनी किताब छुपा पन्नों के दरम्यान।
याद है किताबों में उलझी तुम बैठी तुम
और बगल वाली बेंच पर बैठा मैं।
निहारता तुमको किताबों की ओट से
आस पास किताबों की भरी आलमारियां
लेकिन मुझे पढ़नी थी तुम्हारे दिल की किताब।
जो चंद पन्ने पढ़े थे तुम्हारे मैंने चोरी छुप के
लगा जैसे मिल गए हों
मेरी किताब के चंद फटे पन्ने
और पूरी हो गई हो मेरी जिंदगी की किताब
चाहता था तुम्हारी मुस्कुराहट की जिल्द
अपनी जिंदगी की किताब पर ।
लेकिन तुम्हारी नज़र कभी हटी ही नहीं
किताबों से और मेरी तुमसे।
आज भी यह सूखा बदरंग फूल
झांकता किताबों के बीच से
जैसे भर गया हो वापस से
सारे रंग मेरी जिंदगी में।
और किताब के पन्नों में
सिमटी इसकी खुशबू
ले गई है वापस मुझे लाइब्रेरी की कतार में
जहां खड़ा मैं तुम्हारे पीछे
और तुम उलझी किताबों में।
जमाना बदल जाता है
किताबें नहीं बदलती
संजो कर रखती है सब कुछ
और याद दिलाती हैं बीच बीच में
वो सब कुछ।
नहीं जानता मैं कि क्या है यह सब
लेकिन ए किताब, तुम तो जरूर जानती होगी
इन सब का मतलब।
कभी वो पन्ना भी दिखा जहां लिखा हो
किताबों में कि मुकम्मल इश्क क्या है?
सूखे फूल रखने वाली किताब है
इश्क की किताब
या कि बस इश्क हो गया है अब इस किताब से
या कि हर पन्ने पर नई इबारत छुपा कर
रखी किताब को ही कहते हैं जिंदगी।
जो भी हो, वापस बंद कर रहा हूं
किताब को और हल्के से चूम कर
इस सूखे फूल को।
संभाल के रखना इसे मेरी अमानत की तरह
ताकि अगली बार मुझे ऐसे भी मिले
मेरा छुपा सा गुमनाम इश्क।
गर हो सके तो दिखाना अगली बार
वो पन्ना मेरी किताब
जहां लिखा हो कि क्या होता है
वो मुकम्मल इश्क ।
और कैसे अलग है
वो किताबों के पन्नों में छुपे
महबूब के जूड़े से गिरे गुलाब से।
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