जनसंख्या का एक
क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र
में बेहतर अवसरों की तलाश में
जाने की सामान्य
मानवीय प्रक्रिया समस्या तब बन जाती
है जब इसकी दर इतनी अधिक
हो जाय कि यह सामाजिक
आर्थिक अवसंरचना के लिए दुष्कर
हो जाए । भारत
में पलायन की समस्या कोई
नई नहीं है। विभाजन
, बांग्लादेश युद्ध के समय भी
अत्यधिक पलायन हुआ था, लेकिन
वर्तमान कोरोना संकट के दौरान
शहरों से गांवों की
ओर होता उत्क्रमित पलायन
का गंभीर संकट हमारे सामने
है।
वर्तमान पलायन समस्या एतिहासिक दृष्टांतो से अग्रलिखित संदर्भों
में अलग है।
क) पलायन की दिशा : सामान्यता: कृषि के उत्तरोत्तर
अलाभकारी होने और जनसंख्या
के अत्यधिक दवाब कारण ग्रामीण
युवा जनसंख्या का शहरी क्षेत्रों
में पलायन निरंतर होता रहा है।
इस प्रवासी जनसंख्या के पूर्ण आकार
की एकाध झलक हमें
हर साल दीवाली और
छठ के दौरान पूर्वी
भारत की ओर जाती
ठसाठस भरी रेलगाड़ियों को
देख कर मिलती है लेकिन उस
जनसंख्या का पूरा अंदाजा
हमें अब लगा है।
प्रवासी कामगारों का एक निश्चित
डाटाबेस उपलब्ध नहीं है |
ख) पलायन का कारण : विभाजन और 71 के बांग्लादेश युद्ध
के दौरान भले ही राजनीतिक
कारण प्रमुख रहे हों, अन्तर्देशीय
पलायन का कारक मुख्यतः
आर्थिक ही रहा है।
ऐसा पहली बार हो
रहा है कि स्वास्थ्य
कारणों और उससे जनित
आर्थिक कारणों से पलायन हो
रहा है।
ग) पलायन की गति: विभाजन और 1971 के युद्ध को
छोड़ दें तो शायद
वर्तमान पलायन की गति और
मात्रा का कोई सानी
हमारे इतिहास में नहीं मिलता।
आलेख लिखे जाने तक
करीब 8 लाख प्रवासी कामगार
बिहार लौट चुके थे।
यूपी, ओडिशा, बंगाल और झारखंड को
जोड़ लें तो यह
संख्या 2 करोड़ से
भी ज्यादा हो सकती है।
यह एक अभूतपूर्व स्थिति
है जिससे निपटने के लिए सारी
पुरानी रणनीति अपर्याप्त सिद्ध है।
पलायन के कारण:
यद्यपि लाकडाउन के कारण ठप
पड़ी आर्थिक गतिविधियों के कारण रोजगार
छिनने और स्वास्थ्य सम्बन्धी
चिंताओं को उपरी रूप
से पलायन का मुख्य कारण
माना जा सकता है,
लेकिन गहरी छानबीन अन्य
कारणों को सामने लाती
है। पहला कारण है
केंद्र और राज्य सरकार की संवाद हीनता : लॉक डाउन के
दौरान केंद्र और रांज्य सरकारों
का मजदूरों के प्रति संवाद
हीनता की स्थिति दिखी
है। प्रवासी मजदूरों में यह विश्वास
बहाली नहीं हो पाई कि वे जहां
है सुरक्षित हैं। धरातल पर
कामगारों को राशन मुहैया,
किराया माफी, नकद अंतरण तथा
वेतन सुनिश्चित करने का कार्य
अक्षम तरीके से हुआ। सरकारी
आधिकारिक घोषणाओं
के अभाव में अफवाहों ने डर का
माहौल उत्पन्न किया। कोरोना को प्लेग की
तरह जानलेवा महामारी मान बैठने की
जनश्रुति सी फैल गई।
आनंदविहार, गाजीपुर बॉर्डर और बांद्रा स्टेशन
पर जमा भीड़ यही
दिखाती है अफवाहों ने
कितनी गहरी पैठ बना
रखी थी। असंगठित क्षेत्र
में कार्यरत कामगार पहले से ही
रोजगार अनिश्चितता से ग्रसित थे, वहीँ कोरोना
संकट जीवन
मरण का प्रश्न बन
गया । प्रवासी
कामगारों की सही संख्या का कोई विश्वसनीय आंकड़ा उपलब्ध नहीं होने के कारण
प्रशासन समस्या के प्रभावी समाधान
ढूंढ़ने में विफल रहा।
केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों
के बीच समन्वय के
अभाव ने इस विकराल
समस्या को जन्म दिया।
पलायन समस्या का समाधान भी समस्या के
अनुरूप विस्तृत होना आवश्यक है
जिसमें तात्कालिक और दीर्घकालिक उपायों के मेल होना चाहिये|
लघु कालिक उपाय:
रेलवे , राज्य परिवहन निगम , निजी वाहन चालकों
तथा स्वयंसेवी संस्थाओं के संयुक्त प्रयास
से पैदल चलकर घर जाने
को मजबूत कामगारों को सबसे पहले
यातायात के साधन उपलब्ध करवाना पहली प्राथमिकता होनी
चाहिए|
विस्थापितों की तात्कालिक
सहायता के लिए जन
धन खातों में सीधा नकद अंतरण तथा उनके गंतव्य पर क्वारांटाइन की समुचित व्यवस्था करनी होगी ।
मनरेगा के अन्तर्गत आने
वाले कार्यक्षेत्र का विस्तार कर
घरेलू कार्यों, आंगनबाड़ी, सेवा क्षेत्र को
शामिल करना आवश्यक है।
बजट में मनरेगा हेतु आवंटित
60000 करोड़ और अतिरिक्त आवंटित
40000 करोड़ की राशि में
और बढ़ोतरी करने की आवश्यकता
पड़ेगी। 'एक देश एक राशन कार्ड'
के साथ साथ जन वितरण प्राणी द्वारा न्यूनतम खाद्य सुरक्षा प्रदान करने का कार्य त्वरित गति से पूरा होना चाहिए.
दीर्घकालिक उपाय-
पलायन समस्या ने भारत के
समावेशी विकास के समस्त दावों
को निर्मूल सिद्ध किया है। देश
के पूर्वी और पश्चिमी राज्यों
के बीच आ चुके गहरे
आर्थिक विभाजन की खाई को पाटने के लिए दूरगामी और दीर्घकालिक उपायों की आवश्यकता होगी।
जीएसटी लागू
होने के बाद राज्यों
के स्वतंत्र कर लगाने की
क्षमता में कमी आई
है. उत्क्रमित पलायन की मार झेल
रहे राज्यों की आर्थिक दशा
वैसे ही
बुरी थी , कोरोना संकट
में राज्यों की अर्थव्यवस्था पर
बोझ काफी बढ़ गया
है| आरबीआई और केंद्र सरकार
की नीतियों की
तरह राज्यों
को बांड जारी कर अतिरिक्त वित्त मुहैया करवाने की दिशा में
कदम उठाये गए हैं| श्रम
मंत्रालय के अंतर्गत प्रवासी
मज़दूर कल्याण फण्ड बनाने का
सुझाव अपनाने के साथ एक
व्यापक राष्ट्रीय रोजगार नीति अप्रवासी कामगारों के लिए बनाये
जाने की आवश्यकता है।
आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के
तहत श्रम गहन एमएसएमई क्षेत्र को दी गई तीन लाख करोड़ की प्रतिभूति रहित साख एमएसएमई क्षेत्र को पुनर्जीवित करने
में मदद करेगी ।
श्रम कानूनों में वर्षों से
पड़े लंबित सुधारों को लागू करने
का इससे बेहतर अवसर
शायद ही मिले। उत्तरप्रदेश,
राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश
की राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव इस दिशा में
पहले कदम हैं। श्रम
कानूनों में दीर्घकालिक और
सुसंगत बदलाव के साथ सुभेद्य महिलाओं कामगारों और सीमांत कामगारों
के हितों और छोटे व्यवसायियों
के हितों के बीच सूक्ष्म
संतुलन एमएसएमई क्षेत्र में साख बहाली
कर सकते हैं।
पूर्वी क्षेत्र में आर्थिक अवसंरचना का कार्य त्वरित गति से करना और इस
कार्य में राज्य सरकारों
को विश्व बैंक, न्यू डेवलपमेंट बैंक
जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से भी मदद
लेना आवश्यक होगा | जन -धन, आधार
और मोबाइल आधारित सुदृढ़ सामाजिक सुरक्षा का तंत्र निर्माण
जिसके
तहत कामगारों की सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में गृह ऋण सहायता , सामूहिक बीमा , मातृत्व
लाभ को शामिल करना होगा | भारत कौशल विकास
कार्यक्रम, व्यावसायिक शिक्षा कार्यक्रमों को युद्ध स्तर
पर लागू करने का
सबसे बेहतर समय अब है|
स्पष्टतया यह समस्या अब तक अपनाई
गई विकास नीति का साइड
इफेक्ट है। हमारी भविष्योन्मुखी
नीति ग्राम स्वराज की परिकल्पना, PURA ( ग्रामीण क्षेत्र
में शहरी सुविधाओं की
उपलब्धता) पर आधारित होनी
चाहिए। कृषि के सहायक
गतिविधियों का विकास कर
कृषि पर जनसंख्या दवाब
कम करना आवश्यक है,
वहीं शहरी क्षेत्रों में
मलिन बस्ती विकास करना होगा।