किसी वृक्ष की जीवन आयु इस बार पर निर्भर करती है कि उसमें नए पत्ते आ रहे हैं या नहीं। क्योंकि विकास और वृद्धि नई कोंपलों से ही हो सकती है। भविष्य की संभावनाओं से भरे नए बीज, नई हरी टहनियों से लगे नए फलों के अंदर ही संरक्षित हो सकते हैं।
कोई भी विचारधारा, संस्था तब तक हो जीवन्त बनी रहती है जब तक युवा उसकी ओर आकर्षित हो उसमें शामिल होते रहते हैं। यह युवा ही संस्था में प्राण वायु का संचार करते हैं, विचारधारा के बीजों को संरक्षित करते हैं और दूर दूर तक नई पौध का आधार बनते हैं। हरे पत्तों के बिना मजबूत से मजबूत तना भी ठूंठ बन जाता है और हरे पत्तों के बिना गहरी जड़ें भी बिना श्वास के सूख जाती हैं।
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