Friday, July 29, 2022

निंदक को नियरे राखिए, मन में नहीं।

खाना खाना आसान है, बनाना नहीं। फिल्म देखना आसान है , बनाना नहीं। खेल देखना आसान है, खेलना नहीं। परीक्षा की तैयारी के लिए निर्देश देना आसान है, परीक्षा पास करना नहीं।बच्चों को कम अंक आने पर डांटना आसान है, बच्चों को पढ़ाना मुश्किल। इसलिए फूड ब्लॉगर ज्यादा हैं शेफ कम। फिल्म क्रिटिक्स ज्यादा हैं फिल्मकार कम। खिलाड़ी कम हैं कॉमेंटेटर ज्यादा। कोचिंग चलाने वाले ज्यादा हैं , आईएएस अधिकारी कम। डांटने वाले ज्यादा तो शिक्षक कम। 
अगर आप हर क्षेत्र में टिप्पणीकार की भूमिका में हैं तो आवश्यक है कि कम से कम एक क्षेत्र में आप रचनाकार बनें, कर्ता बनें। फिर आप अपनी टिप्पणी को रचनात्मक बना पाएंगे, कर्ता के प्रति सहानुभूति रखेंगे और अपमान करने की प्रवृति से बचेंगे । जिसने लिखा ही नहीं उसकी वर्तनी की गलती तो होगी नहीं ।यह भी संभव है कि आप रचनाकार और कर्ता की भूमिका में हैं और टिप्पणीकारों से परेशान हो गए हों, तो याद रखें कि कबीर दास ने निंदक को नजदीक रखने कहा है न कि अपने मन मस्तिष्क में उनको बसा लेने के लिए। अपने मन मस्तिष्क को अपनी रचनात्मकता के लिए खाली रखिए वहां निंदक को घर बनाने ना दें। निंदक का योगदान जरूरी है लेकिन बस स्वच्छ करने के लिए साबुन की तरह ही। साबुन बाहर लगाया जाता है, खाया नहीं जाता। 

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