Wednesday, July 20, 2022

वैशाली का विशाल यश

वैशाली विरुद्धों का सामंजस्य है। एक तरफ यह समस्त सांसारिक विषयों का त्याग कर कैवल्य प्राप्त करने वाले भगवान महावीर की भूमि है तो वहीं पाषाण ह्रदय में भी आसक्ति के बीज पनपा देने वाली वैशाली की नगरवधू आम्रपाली की भूमि भी है। वैशाली विश्व का पहला गणराज्य तो था ही, यही पर पहली बार सौंदर्य के सम्मान दिए गए। मिस वर्ल्ड और मिस इंडिया जैसे सम्मान सदियों पहले वैशाली में नगरवधू के नाम से दिए गए। अंबापालिका या आम्रपाली पहली विश्वसुंदरी कही जा सकती है।

यहीं पर कपिलवस्तु से निकलकर सिद्धार्थ आए और बुद्ध बनने की राह में अपने ब्राह्मण गुरू अलार कलाम से मिले। वैशाली बुद्ध के भी गुरु की भूमि है जहां युवा सिद्धार्थ ने ध्यान और तप की बुनियादी बातें ग्रहण की। बुद्ध बनने के बाद भी वो बहुधा वैशाली आते रहे। बौद्ध विहारों में महिलाओं के प्रवेश को अनुमति वैशाली में ही मिली थी। बुद्ध बनने की राह पर पहला कदम अगर वैशाली में उठाया गया था तो अपने महापरिनिर्वाण की यात्रा में कुशीनगर के लिए बुद्ध यहीं से निकले थे। वैशाली के लोग बुद्ध के साथ चल पड़े, बुद्ध ने उनसे निवेदन किया कि वो लौट जाएं लेकिन वैशाली के गण माने नहीं। भगवान बुद्ध ने उनको अपना भिक्षा पात्र तक दे दिया लेकिन बुद्ध के पीछे आने का वैशाली वालों का हठ दूर ना हुआ। अंततः केसरिया गांव से वैशाली वाले लोग लौटे और बुद्ध अपनी अंतिम यात्रा पर निकल गए। बाद में सम्राट अशोक ने यहां स्तूप का निर्माण कराया जो आज भी संरक्षित है। 

शिषुनाग वंश के सम्राट कालाशोक ने द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन भी वैशाली में ही किया था। यहीं बौद्ध धर्म स्थापित और महासंघिक दो भागों में विभक्त हुआ। अभिषेक पुष्करिणी वो स्थान है जहां वैशाली गणराज्य के नवनिर्वाचित जन प्रतिनिधि जन कल्याण की शपथ लेते थे जिसे आप आजकल शपथ ग्रहण समारोह के रूप में देख सकते हैं। उसी कुंड में खिले सौंदर्य से सने खिले कमल आपका स्वागत करते हैं। यह वोही कमल हैं जिन्हें बाबर ने पहली बार सासाराम में देखा था और जिसका वर्णन उनसे अपनी आत्मकथा में किया है। यही कमल आपको वैशाली में अशोक स्तंभ में भी शेर की प्रतिमा में दिखेगा लेकिन उल्टा। 

वैशाली का इतिहास बुद्ध और जैन काल से भी पुराना है। राजा विशाल जिनके नाम पर वैशाली इश्वाकु वंश के शासक थे , वोही वंश जिससे पुरुषोत्तम भगवान राम थे। राजा विशाल के नाम पर विशालपुरी नाम कालांतर में वैशाली हो गया। यह वैशाली की प्रसिद्धि ही थी फहयान और ह्वेनसांग दोनो यहां आए और यहां का वर्णन अपने यात्रा वृतांत में किया। और हां, वैशाली में अशोक का वो स्तंभ भी है जिसपर शेर की प्रतिमा है। आज भी पूर्णतः सुरक्षित है महान अशोक का शेर और शेर की वो मुस्कान (!!) । कभी बिहार आएं तो वैशाली के विशाल इतिहास को करीब से महसूस करने का मौका न गवाएं।



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