Friday, July 15, 2022

आर्थिक संकट और स्टार्टअप

2008 की आर्थिक मंदी की यादें अभी ठीक से गई भी नहीं थी कि एक गहरे आर्थिक संकट के पूर्वानुमानों से हम मुखातिब हैं। विविध पूर्वानुमान बता रहे हैं कि आने वाला आर्थिक संकट वर्ष 2008 से भी गहरा हो सकता है। वर्ष 2021 में कोविड से अधिकतम प्रभावित वर्ष 2020 के बाद बाजार में लंबित मांग के कारण काफी उत्साह का माहौल रहा , वर्तमान वर्ष में आकर यह उत्साह ठंडा पड़ता दिख रहा है। वर्ष 2021 जहां भारत में कुल 42 यूनिकॉर्न बने इस साल यूनिकॉर्न स्टार्टअप के बारे में कर्मचारियों की छंटनी की खबरे ज्यादा आ रही हैं।

शायद भारतीय स्टार्टअप का स्वर्णिम दौर कुछ वक्त के लिए थम सा गया है। भारतीय स्टार्टअप के लिए विदेशी फंडिंग में तीव्र कमी आई है। इसके कारणों का विवेचन करने पर हमें सदी के पहले आर्थिक संकट डॉट कॉम बबल संकट की याद आती है। भारतीय मार्केट में निवेश के संकट की छवि और कारणों को बीस साल पहले आए संकट में तलाश सकते हैं। इंटरनेट की पहुंच बढ़ने के साथ ही जहां डॉट कॉम कंपनियों की बाढ़ आ गई थी , उनमें बिना ज्यादा सोच विचार किए निवेश की प्रवृति भी बढ़ गई थी। ऐसा ही कुछ हालिया वर्षों में भी दिखा है। बिजनेस मॉडल और वास्तविक कमाई की जगह वैल्यूएशन पर ज्यादा बातें हो रही हैं। बाजार में इस प्रवृति को ग्रेटर फूल थ्योरी या बड़ा बेवकूफ सिद्धांत कहते हैं। ग्रेटर फूल थ्योरी कहती है कि किसी भी वस्तु की कीमत तब तक बढ़ती है जबतक बाजार को यह यकीन रहता है कि कोई ना कोई मिल जायेगा जो इसको बढ़ी हुई कीमत पर खरीद ले। भारतीय बाजार में कई निवेशक में इसी उम्मीद से निवेश कर रहे हैं कि उनके निवेश लागत के ज्यादा पैसे देकर कोई ना कोई उनकी स्टार्टअप को ज्यादा वैल्यूएशन पर खरीदने को तैयार हो ही जायेगा। इससे बाजार में किसी नई कंपनी के बिजनेस मॉडल, आय स्रोत और ग्राहक नीति को जांचने परखने का धैर्य नहीं रहता। 

भारतीय स्टार्टअप में निवेश की कमी को भी हम चार प्रमुख कारणों में देख सकते हैं। पहला कारण है प्रोडक्ट मार्केट फिट का अभाव। कई ऐसे स्टार्टअप आपको दिख जाएंगे जिनकी सेवाओं की जरूरत कोई खास दिखती नहीं। भला दस मिनट के अंदर आटे की बोरी कितने ग्राहकों को चाहिए , कोई जीवन रक्षक दवा थोड़े ना है। फिर भी ऐसे स्टार्टअप की कतार सी दिखती है।
 दूसरा कारण है मितव्ययिता का घोर अभाव। चूंकि कई स्टार्ट अप को फंडिंग आसानी से मिल गई, उनमें खर्च करने की प्रवृति बहुत ज्यादा देखी जा रही है। बेतहाशा मार्केटिंग व्यय को निवेश को पर्याय मान लिया गया है। ऐसी कम्पनियां जिन्होंने आज तक एक रुपया नहीं कमाया उनके विज्ञापन हर क्रिकेट मैच के हर ब्रेक पर दिखना भला निवेश कैसे हो सकता है।

ऐसा नहीं है कि सारे स्टार्ट अप अपनी वजह से ही असफल हो रहे हैं या फंडिंग के लिए तरस रहे हैं। सरकार द्वारा समय समय पर लगाए गए टैक्स कानून और अन्य कानून भी एक महत्वपूर्ण पहलू हैं। क्रिप्टो करेंसी और स्टार्टअप पर टीडीएस कानून इसकी बानगी हैं। इनसे भी निवेशकों का उत्साह ठंडा पड़ा है।
 चौथे कारक के रूप में हम उन स्टार्ट अप को देख सकते हैं तो समय से थोड़ा आगे हैं। एआई और मशीन लर्निंग पर आधारित स्टार्ट अप जो निश्चित रूप से भविष्य में अपना एक स्थान बना सकते हैं आज की जरूरतों से थोड़ा कटे से दिखते हैं। लेकिन यह कारक उतना भी महत्वपूर्ण नहीं है , अगर आइडिया में दम हो तो समय को भी बदला जा सकता है। शादी डॉट कॉम जैसे स्टार्ट अप भारत में तब शुरू हुए जब इंटरनेट की पहुंच नगण्य ही थी।

प्रश्न है कि आगे की राह क्या हो? इसका उत्तर भी प्रश्न में ही छुपा है। यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं कि बिना बिजनेस मॉडल और आय के निरंतर स्रोत वाले स्टार्ट अप को फंडिंग मिलने का वक्त चला गया। जिन्हे फंडिंग मिली भी है उन्हें भी अब वैल्यूएशन के खेल से बाहर निकल लाभ कमा कर दिखाना होगा। मार्केटिंग पर अंधाधुंध खर्च करने के बजाय सप्लाई चेन मजबूत करना और अपनी सेवा और उत्पाद की गुणवत्ता में उत्तरोत्तर सुधार लाना होगा। सरकार की नीतियों के कारण कई स्टार्ट अप दुबई जैसे देशों का रुख कर रहे हैं। हमें उन्हें भारत में भी व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन देना जारी रखना होगा। और हम अपने स्टार्ट अप के लिए केवल बाहरी निवेशकों का मुंह नहीं ताक सकते। इसके अलावा सिर्फ न्यू जनरेशन और आईटी टेक्नोलॉजी आधारित स्टार्ट अप को प्रोत्साहित करने की जरूरत नहीं है। ऐसे स्टार्ट अप जो सामाजिक सरोकार जैसे कचरा प्रबंधन, सीवर ट्रीटमेंट जैसे क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं उनको भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है। कोई जरूरी नहीं कि हर नया स्टार्ट अप ड्रोन टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर ही काम करे, गोबर और इथेनॉल से ऊर्जा निकालने वाले स्टार्ट अप या एमएसएमई सेक्टर के छोटे स्टार्टअप जो शायद यूनिकॉर्न कभी न बन पाएं, हमारी निवेश योजना में शामिल होने चाहिए।

अगर भारत से अगला गूगल, फेसबुक या टेस्ला आयेगा तो किसी नए स्टार्ट अप से ही आएगा। अपने आइडिया पर पूर्ण विश्वास और एक सॉलिड बिजनेस प्लान पर आधारित स्टार्टअप न केवल निवेश को आकर्षित करेगा बल्कि इस खेल में लंबे समय तक टिकेगा भी। अमेजन, गूगल जैसी कम्पनियां भी डॉट कॉम युग में ही बनी थी। उन्होंने वो गलतियां नहीं की जो इनके साथी स्टार्ट अप ने की थी। हमारे वर्तमान के स्टार्ट अप इनसे सीख ले सकते हैं कि सिर्फ वैल्यूएशन और फंडिंग जूता लेना सफलता का सूत्र नहीं है। ऐसा उत्पाद बनाना और ऐसी सेवा देना जिसके लिए उपभोक्ता खुद से पैसे देने को तैयार हो। सिर्फ कूपन, डिस्काउंट और मुफ्त ऑफर के आधार पर जुटाया गया उपभोक्ता टिकाऊ नहीं हो सकता। सही उत्पाद की सही कीमत वसूलना कोई बुरी बात नहीं। फिल्म द डार्क नाइट में जोकर का चरित्र एक बहुत महत्वपूर्ण बात कहता है कि अगर आप किसी काम में निपुण हो तो वो काम कभी भी मुफ्त में मत करो। डिस्काउंट और कूपन के बल पर अगला गूगल बनने की चाहत रखने वाले स्टार्टअप इससे सीख ले सकते हैं।


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