Monday, June 27, 2022

बिना फिकर अंजामों का

बाजारों से गुजरते पता चला
कि आया है मौसम आमों का
वरना इस बेमुरव्वत दौड़ में
पता ना चलता सुबह ओ शामों का

जिंदगी कट रही थी बेतकल्लुफ सी
कि वक्त आ गया झूठे एहतरामों का
जिंदगी की महफिल से गायब है साकी
और न ठिकाना है सुकून भरे जामों का।

तेरी यादों के सहारे ज़माना ए यारी
बोझा उठा रखा है इन फालतू कामों का
मिलेंगे तो बांटेंगे राज दिल के ए दोस्त
कुछ लम्हें कटेंगे बिना फिकर अंजामों का।

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