Friday, June 24, 2022

नालंदा के सबक

नालंदा के खंडहर केवल हमारा समृद्ध इतिहास याद नहीं दिलाते। नालंदा के खंडहर याद दिलाते हैं कि आध्यात्मिक ज्ञान, साहित्यिक ज्ञान, सभ्यता के साथ साथ बाहुबल और सैन्य शक्ति कितनी आवश्यक है। बिना बाहुबल के ज्ञान नीचे लटके पके आम की तरह है, कोई बच्चा तक तोड़ लेता है। बिना सैन्य बल के समृद्धि उतनी ही क्षण भंगुर है जितना पराजित बंदी बनाए सैनिक का आत्मसम्मान। 

खिलजी की नंगी तलवार के आगे हमारा सैकड़ों सालों का आध्यात्मिक ज्ञान बेबस हो गया और नालंदा का ज्ञान केंद्र खंडहर बन कर रह गया। काश हमारे बौद्ध भिक्षु बुद्ध, संघ, और धम्म की शरण में जाने के साथ साथ शक्ति की शरण में भी गए होते तो कदाचित खिलजी की तलवार का प्रतिरोध किया जा सकता था। वर्षों की समृद्ध रोमन सभ्यता बर्बर गोथों का एक वार नहीं झेल पाई और जमींदोज हो गई। आध्यात्मिक बल और नैतिक बल व्यर्थ है अगर वो बाह्य पाशविक बलों से अपनी रक्षा ना कर सके। 

आत्मो रक्षितो धर्मः। नालंदा के प्राचीन खंडहर जीते जागते सबक हैं कि राजा धर्म का पालन करे , यह उचित है लेकिन राजा धर्मगुरु बन कर प्रवचन करने लगे यह आने वाले संकट का द्योतक है। धम्म को आत्मसात करते सम्राट अशोक भले ही इतिहास के पन्नों में महान बन के दर्ज हों, यह भी सच है कि भविष्य में भारतवर्ष पर आक्रांताओं के निरंतर आक्रमण और विनाश के बीज उन्होंने ही बोए थे। विष्णु के एक हाथ में कमल तो दूसरे में चक्र यूं ही नहीं रहता। 

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