Sunday, June 5, 2022

कुरुक्षेत्र में मान सम्मान के लिए लड़ता पक्ष

द्रौपदी के पांच पति थे, पांचों वीर थे, ज्ञानी थे, क्षात्र धर्म के अनुपालक थे लेकिन उन्होंने द्रौपदी को दांव पर लगाने से परहेज़ नहीं किया। आधा राज्य पाने के लिए उन्होंने ऐसा किया। युद्ध भी हस्तिनापुर के सिंहासन के लिए हुआ था, द्रौपदी के मान सम्मान के लिए नहीं। पांडव पांच गांव पाकर सब भूलने को तैयार थे। धन्यवाद करना चाहिए दुर्योधन का जिसने बिना युद्ध के सूई की नोंक के बराबर भूमि देने से मना कर दिया और भीम की दुःशासन की छाती फाड़ने वाली प्रतिज्ञा की लाज रह गई। हां दुर्योधन अवश्य अपने पिता को अंधा कहने वालों को क्षमा करने को तैयार कभी नहीं हुआ। अपने पिता के सम्मान के लिए वो अवश्य लड़ा। कुरुक्षेत्र के रण में सिर्फ एक पक्ष मान सम्मान के लिए लड़ रहा था और वो पक्ष पांडवों का नहीं था। जहां पांडव अपनी पत्नी तक के चीरहरण के मूक दर्शक बने रहे , दुर्योधन ने कभी भी अपने मित्र कर्ण को सूत पुत्र तक कहना सहन नहीं किया।

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