बस सिराज की सबसे पसंदीदा बेगम लुफ्त उन निसा को जिंदा रखा गया। उन्हें जाफर और उसके बेटे दोनो ने निकाह का पैगाम भेजा। बेगम ने निकाह ठुकराते हुए वापस पैगाम भेजा कि मैं पहले हाथी की सवारी कर चुकी मैं अब गधे की सवारी नहीं करूंगी। you either die a hero aur you live long enough to be the villain. नवाब सिराजुदौल्ला एक नायक की मौत मरे और उनकी बेगम ने भी जाफर के सामने सर नहीं झुकाया। आज की तारीख ले जाती है वापस प्लासी के मैदान पर जहां भारत की तकदीर लुट रही थी और सिराज उन खुशकिस्मतों में से थे जिन्होंने ब्रिटिश लूट का नंगा नाच देखने के पहले ही अपनी आंखें मूंद ली। फिर भी जब भी अपने गांव का नाम पढ़ता हूं एक बार नवाब सिराजुद्दौला और प्लासी के मैदान तक ध्यान चला ही जाता है।
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Thursday, June 23, 2022
सिराज: एक त्रासद हीरो
मेरे गांव का नाम नवाबगंज है। कारण यह कि नवाब सिराजुदौल्ला की सेना की एक टुकड़ी हमारे गांव में रहती थी। वो ही नवाब सिराजुदौला जिसको हरा कर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर कब्जा किया। जिसकी लाश पर क्लाइव, जाफर, मीरान और जगत सेठ जैसों ने तांडव किया। हम नहीं जानते कि अगर प्लासी की लड़ाई में नवाब सिराजुद्दौला नहीं हारते तो हिंदुस्तान की तस्वीर और तकदीर क्या होती। सिराज बहुत कुशल प्रशासक नहीं माने जाते, लेकिन फिर भी अगर सिराज बने रहते तो बंगाल सबसे समृद्ध राज्य से दुर्भिक्ष का केंद्र शायद ना बनता। सिराज हीरो नहीं थे लेकिन जाफर ने उनको दगा देखकर ट्रैजिक हीरो अवश्य बना दिया। इसीलिए आज से 265 साल पहले जब सिराज क्लाइव के छल से प्लासी में पराजित होकर भी इतिहास में हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो गए। जब सिराज मार दिए गए तो सिर्फ पच्चीस साल के थे। उनके बाद उनकी सारी पत्नियों सहित उनके नाना अलीवर्दी खान के खानदान की सारी औरतें मीर जाफर के बेटे मीरान के आदेश पर मार दी गई। नवाब जाफर के बेटे मीरान के कहने पर करीब 70 मासूम बेग़मों को एक नाव में बैठा कर हुगली नदी के बीचो-बीच ले जाया गया और वहीं नाव डुबो दी गई. सिराजुद्दौला ख़ानदान की बाकी औरतों को ज़हर दे कर मार दिया गया।
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