लेकिन स्कूलों में नर्सरी के बच्चे हों, या कॉलेज में नौकरी के लिए साक्षात्कार देते युवा हों, शादी के लिए तैयार दूल्हे हो या जरूरी कानूनी मुकदमे में गवाही देने जाता वरिष्ठ नौकरशाह, बिना टाई के अपूर्ण माने जाते हैं। यह हास्यास्पद तो है ही , कॉमन सेंस पर औपनिवेशिक गुलामी वाली सोच के हावी होने से ज्यादा कुछ नहीं है। वक्त आ गया है कि हम अपने परिधानों पर शर्मिंदा होना और टाई ना पहनने वालों को शर्मसार करना बंद कर दें। गले की फांस की तरह गले से झूलता वो फालतू सा कपड़े का टुकड़ा कम से कम हमारे किसी काम का नहीं है। हां एक काम है उसका, यह याद दिलाना कि 1757 की प्लासी की हार से शुरू हुआ सिलसिला 1947 में बंद नहीं हुआ, 2022 में भी बदस्तूर जारी है।
No comments:
Post a Comment