Monday, September 27, 2021

MSP की कानूनी गारंटी के नाम पर अराजकता

किसानों को msp की कानूनी गारंटी मिलनी चाहिए। 

सही है, लेकिन msp तो इसीलिए शुरू की गई थी की देश में गेहूं और धान की कमी थी और अकाल से जूझने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना था। जाहिर है कि जब से msp का प्रावधान आया, फायदा सिर्फ हरित क्रांति वाले प्रदेश पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को हुआ।

तो अगर, गेंहू और धान के उत्पादकों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी देना सही है तो दूध उत्पादकों को उनके उत्पाद के मूल्य की गारंटी क्यों ने दें? लाह उत्पादक, रेशम उत्पादक, कपास उत्पादक, जूट उत्पादक किसानों का क्या msp का हक नहीं बनता?

किसान ही क्यों? ठेला खींचने वाले, रिक्शा खींचने वाले की प्रति सौ मीटर ढुलाई की न्यूनतम भाड़े की गारंटी भी सरकार को देनी चाहिए। बढई द्वारा बनाए गए हरेक कुर्सी टेबल की न्यूनतम मूल्य की गारंटी सरकार क्यों ना दे? लोहार ने कौन सा गुनाह किया है कि उसके बनाए गए फावड़े की कीमत की गारंटी सरकार नहीं दे रही। 

ट्यूशन पढ़ाने वाले, सिक्योरिटी गार्ड का काम करने वाले, घर में बर्तन धोने वाली काम वाली बाई की सेवाओं का न्यूनतम मूल्य सरकार कानूनी तरीके से तय क्यों न करे?

अरे मैं जो इतनी मेहनत से ब्लॉग लिखता हूं, उसके भी मिनिमम लाइक्स और कमेंट्स की गारंटी सरकार कानूनी रूप से क्यों नहीं देती? ट्विटर और इंस्टाग्राम पर मेकअप और फिल्टर बदल बदल कर वीडियो बनाने वाली जनता भी अपने रील्स के लिए न्यूनतम समर्थन रीट्वीट और लाइक्स के लिए एक कानून की मांग करने का लोकतांत्रिक अधिकार रखती है।

प्रश्न है कि सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही? तो उत्तर यह है कि सरकार का यह काम ही नहीं है। यह काम बाजार की शक्तियों का है। जब सरकार यह काम करने लगती है तो क्या होता है यह देखने के लिए रूस, क्यूबा और वेनेजुएला की हालत देख लीजिए। सरकार सिर्फ अपवाद के रूप में जहां आवश्यक हो ऐसे कदम उठा सकती है, लेकिन अपवाद साधारण नियम नहीं बन सकते।
Msp की कानूनी मांग सरासर गलत है और इसके नाम पर सड़कों को जाम करना सर्वसाधारण के अधिकारों का सर्वथा हनन। ऐसे गुंडों से सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। इन असमाजिक तत्वों को राजनीतिक समर्थन देने वाले आग से खेल रहे हैं , एक दिन आग में उनके अपने आशियाने भी आयेंगे, यह उन्हें याद रखना चाहिए। 

रही बात टिकैत जैसे बिचौलियों के मुखौटे से निपटने की, तो उनके जैसे मौसमी आंदोलनकारियों के सामने झुकने का कोई सवाल ही नहीं है। सरकार का इकबाल बुलंद रहना चाहिए, वोह किसी ऐसे आदमी या संस्था से समझौता नहीं कर सकती जो दस हजार की भीड़ जमा कर अपना शक्ति प्रदर्शन करने का प्रयास करते हैं। अगर टिकैत के पास 5000 लोग हैं तो सरकार तेईस करोड़ लोगों के मतों से बनी है। 

इनके साथ निपटने के लिए सब्र और बातचीत का समय बीत चुका है। क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थो और लक्ष्य से प्रेरित यह बकवास बहुत खिंच चुकी, अब इसको बंद कर,बल प्रयोग से ही सही, आम जनता को राहत देने का समय आ चुका है।

Friday, September 24, 2021

सबसे ऊंची सीढ़ी का सबसे ऊपर का पायदान

हाल में कौन बनेगा करोड़पति के एक एपिसोड में नीरज चोपड़ा को देखा। अमिताभ बच्चन उनसे पूछते हैं कि बचपन में आपको बहुत परेशानियां हुई होंगी क्योंकि सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी। नीरज कहते हैं कि अगर मुझे सारी सुविधाएं मिल गई होती तो शायद यह मेडल आज नहीं मिलता। 

विज्ञान कहता है कि नींद के दौरान भी सपने आप तभी देखते हैं जब आप गहरी नींद में नहीं होते। इसे रैपिड आई मूवमेंट स्टेज कहा जाता है जिसमें मानसिक क्रियाओं का स्तर जागे हुए मस्तिष्क के बराबर होता है। मतलब सपने भी वोही देखता है जो सोते वक्त भी जगा हुआ सा हो। 

बिहार के सीमांचल क्षेत्र में अधखुली नींद में अलसाया हुआ सा एक जिला है कटिहार। मेरा गृह जिला। जब बिहार से निकला तो बिरले ही कोई मिलता जिसने कटिहार का नाम सुना हो। सब पूछते पटना के पास है? मैं कहता कि पटना से भी रात भर का सफर है कटिहार का। फिर मैं कहता कि आपने शायद भागलपुर सुना हो, कटिहार उसके आस पास ही है। विकास वो दौड़ है जिसमें कटिहार ने आज तक हिस्सा ही नहीं लिया, आगे पीछे होना तो दौड़ में शामिल होने के बाद की अवस्था है। मैं जब बाहर आईआईटी में पढ़ने पहुंचा तो अपने एक लखनऊ के मित्र को शिकायत करते सुना कि उनके लखनऊ में आजकल लोड शेडिंग बहुत हो रही है। मैंने पूछा यह लोड शेडिंग क्या होती है? उसने कहा कि लोड शेडिंग का मतलब है जब बिजली विभाग आपको पूर्व सूचना देकर बिजली काट देता है। बड़े भारी मन से उसने बताया कि आजकल चार घंटे तक लोड शेडिंग हो रही है। मैंने कहा चार घंटे लोड शेडिंग हो रही है मतलब तुम्हारे यहां बीस घंटे बिजली आती है, हमने आजतक दो घंटे से ज्यादा बिजली नहीं देखी। उसकी शक्ल देखने लायक थी। 

बाढ़ जहां सालाना मेहमान हो, और सोलह सत्रह साल होने का मतलब या तो पटना 'तैयारी करने' जाने का समय है या 'दिल्ली पंजाब खटने ' के लिए जाने के लिए महानंदा एक्सप्रेस की जनरल क्लास में अपने लिए जगह ढूंढने की जद्दोजहद में लगना। कटिहार की अर्थव्यवस्था मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था कही जा सकती है जहां खेती से पेट भरता है लेकिन बदन पर कपड़ा दिल्ली की कमाई से ही आ पाता है। 

गरीबी और पिछड़ेपन का लोमहर्षक वर्णन करना मेरा मकसद बिल्कुल नहीं है, यह भी सच है कि हाल के वर्षों में कटिहार में विकास की सुगबुगाहट सुनाई पड़ने लगी है। अब कटिहार वासी भी लोड शेडिंग की शिकायत करते सुने जा सकते हैं लेकिन देश के दूसरे हिस्सों से कटिहार का आनुपातिक संबंध सुदामा और कृष्ण जैसा ही है। कहने के लिए दोनों भले ही दोस्त हों, भौतिक सुविधाओं की कोई भी तुलना दूसरे के साथ एक भद्दा मजाक सरीखा प्रतीत होता है।

लेकिन जैसा कि अंग्रेजी में एक कहावत है कि tough times make tough men. कटिहार की भाषा में कहें तो अभावे म स्वभाव बनै छै। मतलब यह कि अभाव में ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है, सुख सुविधाओं की प्रचुरता शायद श्रम की जगह विलास की पौध को ज्यादा पोषण देती है। शायद इसी ओर नीरज चोपड़ा भी इशारा कर रहे थे जब उन्होंने बचपन में सुविधाओं के अभाव को मेडल जीतने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक बताया। और ऐसा ही कुछ उदाहरण हैं कटिहार के निवासी शुभम कुमार जिन्होंने कटिहार से निकल कर भारत के सर्वश्रेष्ठ परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है।

 बिहार में आइएएस की परीक्षा का क्या महत्व है इसके लिए अलग से बात करनी पड़ेगी, बस इतना समझ लीजिए कि जितनी बड़ी बात आप समझते हैं उससे दस गुना बड़ी बात है यह। चलिए एक निजी अनुभव ही सुना देता हूं। स्कूल में कक्षा नौ में हमारे गणित के एक शिक्षक थे। नाम जानना महत्वपूर्ण नहीं है, बस इतना जान लीजिए कि शांत स्वभाव के शिक्षक थे, युवा थे और अपना काम चुपचाप से करते थे। अन्य शिक्षकों के बीच रहकर भी कुछ अलग से दिखते थे मानो उनके चारों तरफ से आवरण सा बना हुआ हो, भीड़ में रहकर भी अलग। लेकिन बच्चे तो बच्चे हैं, जो शिक्षक डांटे नहीं, फेल करने की धमकी ना दे, होमवर्क ना करने पर सजा न दे उससे डरना कैसा। तो हुआ यह कि हमारे मैथ्स सर बोर्ड पर कुछ पढ़ा रहे थे और बच्चे पीछे शोर मचाने लगे। गणित वैसे भी बहुत लोकप्रिय विषय कभी नहीं रहा उपर से एक सरल शांत शिक्षक गणित पढ़ा रहा हो तो बच्चे ध्यान कहां देने वाले थे। लेकिन उस दिन शायद बच्चों का शोर और शरारत कुछ ज्यादा हो गया। हमारे मैथ्स टीचर ब्लैक बोर्ड छोड़ हमारी तरफ मुड़े और कहा। आपलोगों ने जिंदगी को मजाक समझ रखा है, आपको क्या लगता है कि जिंदगी इतनी आसान है जितनी आपको अभी लग रही है। मेरे पीठ पीछे आप शोर मचा रहे हैं। याद रखिए कि देश की सबसे ऊंची सीढ़ी के सबसे ऊपरी पायदान से मैं तीन बार नीचे गिरा हूं। इसीलिए आपसे कहता हूं कि अब आप अपने जीवन और करियर के प्रति कुछ गंभीर हो जाइए। इतना कहकर वो वापस पढाने लगे। हमें समझ नहीं आया कि हुआ क्या। सबसे ऊंची सीढ़ी, सबसे ऊपरी पायदान और वहां से गिरने का मतलब क्या था। बाद में कुछ बच्चे उनसे क्लास के बाद माफी मांगने पहुंचे तो उन्होंने सीढ़ी, पायदान और गिरने का मतलब बताया। सर तीन बार आइएएस की परीक्षा के इंटरव्यू तक पहुंच कर सफल न हो सके थे। यह सब बताते हुए उनकी आंखों में और आवाज में जो दर्द दिखा  वो आजतक मैं महसूस करता हूं।

शुभम न केवल उस सीढ़ी के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे बल्कि वहां सबसे बेहतर रूप से पहुंचे। शुभम का समाचार सुनता हूं तो मैथ्स सर याद आते हैं और फिर याद आता है कटिहार। कटिहार में रहकर किसी ने अगर यह सपना देखा तो शायद कटिहार का भी इसमें हाथ है। जैसा कि हमने पहले कहा कि सपने अर्धजागृत अवस्था में ही देखे जा सकते हैं । कटिहार सुविधाओं से रहित वो सख्त बिछौना है जहां सोते समय भी वो गहरी नींद नहीं आ सकती जो मलमल के नर्म बिछौने पर आ सकती है। इसी कठोर बिछावन पर लेट कर कच्ची नींद में देखे गए सपने हैं जिन्हें शुभम ने पूरा किया और मैथ्स सर पूरा नहीं कर पाए। 

एक पूरा सपना हजारों टूटे सपनो की भरपाई कर देता है। कटिहार का सपना आपने पूरा किया। शुभम को इसके लिए साधुवाद और बहुत बहुत बधाइयां। 

Saturday, September 18, 2021

भर जाने का भाव और स्लीपर क्लास

,रेल में स्लीपर का सफर तो कुछ ऐसा है जो आपको खाली नहीं छोड़ता, हर तरीके से भर देता है। डब्बे में हरेक पांच मिनट पर आने वाले खोमचे वाले , चायवाले , समोसे वाले, मौसमी फल वाले, पेप्सी पन्नी कुरकुरे वाले ना चाहते हुए भी आपका पेट भर देते हैं। डब्बे में हरेक तीन मिनट पर आने वाले हर तरीके के भिखारी, भड़काऊ कपड़े और मेकअप पहने किन्नर , परदेशी परदेशी गाना गाकर आपको अपनी सीट पे प्रायवेट कॉन्सर्ट की फील दिलाने वाले बच्चे, लोहे से एक छोटे से छल्ले से अपने धड़ को फंसाकर करतब दिखाते छोटे बच्चे आपका दिल भर देते हैं।

गंदे टॉयलेट देख कर आपकी आंखें भर आती हैं।वेटलिस्ट वाले पैसेंजर, 'बस दो स्टेशन जाने वाले हैं' कहकर आपकी सीट पर जम जाने वाले पैसेंजर आपकी सीट को भर देते हैं।  पूरे खानदानी मिल्कियत को अपने साथ लगेज बनाकर चलने वाले खवातीन ओ हजरात आपकी सीट के नीचे वाली जगह को भर देते हैं। रात के खाली सन्नाटे को सहयात्रियों के खर्राटों की सन्न कर देने वाली सनसनी भर देती है। आप थोड़ी मेहरबानी दिखाएं तो आपके सूटकेस में बची खाली जगह को भरने के लिए सौ प्रतिशत शुद्ध सूती, बनारसी, रेशमी, खादी चादर, साड़ी, चादर बेचने वाले मौजूद होते हैं। बच्चों के खाली हाथ चाइनीज खिलौने, रेल के डिब्बों पर स्पाइडर मैन वाले गोंद वाले खिलौने वाले भर देते हैं। 

आपके ज्ञान की कमी और सामान्य अध्ययन की कमी के खालीपन को डब्बे में चल रहा अनवरत चल रहे राजनैतिक विमर्श की तेज आवाज भर देती है। आप इस राजनीति विमर्श को सुनते सुनते अपने आप को मैकियावेली और चाणक्य समझने ही लगते हो कि एक इंसान आकर आपके जूतों को काली चमक से भर देने की फरमाइश कर देता है। इसके कोई फरक नहीं पड़ता कि आपने चमड़े के जूते नहीं पहने, चेन वाले बैग लेकर तो चल होगे। यह खुदा का बंदा आपके बैग की टूटी चेन ठीक कर देता है, बैग में सब ठीक भी हो तो भी उसमें एक्स्ट्रा पहिए लगाकर आपके बैग को माने पंख लगा कर उड़ने के भाव से भर देता है।

यह भरने का सिलसिला सिर्फ डब्बे के अंदर वाकया नहीं है। डब्बे के बाहर चलती गाड़ी का नजारा भी आपको आत्मग्लानि के भाव से भर देता है। आप अपनी खिड़की से बाहर ताक रहे हैं , मन में सोच रहे हैं कि यह जिंदगी भी रेल की कितनी तेज भाग रही है और मैं भी इसके साथ भागा जा रहा हूं, तभी आपको सुकून से बैठे लोगों की एक पंक्ति दिखाई देती है जिन्हें ना सम्मान की आशा है और न अपमान का भय। अपनी हया को उन्होंने पानी बना कर अपने साथ बिसलेरी के एक पुराने प्लास्टिक की बोतल में डाल रखा है, जिससे वो अपनी बाकी बची हया भी धो डालते हैं। जिनके जीवन का गीत है कि परदा नहीं जब कोई खुदा से,  बंदों से परदा करना क्या। आप सोचते हैं कि आपने आर्ट ऑफ लिविंग कोर्स करके भी यह बेतकल्लुफी और सुकून नहीं पाया जो सामने बैठी जमात ने पुरानी पटरियों के सानिध्य में बैठ कर पा लिया । ऐसा विश्राम का भाव जो शायद सूफी संतों को हाल की अवस्था में भी बिरले ही नसीब होता था।
स्लीपर बॉगी का सफर इन सबसे ऊपर आपके जेहन को यादों से भर देता है। वो यादें जिनके बनने के बाद यह महसूस होता है कि इनके बिना आप कितने खालीनुमा थे। 

Friday, September 17, 2021

याद रखियेगा कि कोई था

सवा दो करोड़ लोग की बांह में आज तेज चुभन हुई। आधे से ज्यादा लोगों की तो चीख निकल गई। वे ना ना करते रहे, लेकिन उनकी एक न सुनी गई। 2 करोड़ का मतलब समझते हैं, 130 करोड़ में सिर्फ दो करोड़। जब दो करोड़ लोग चुभन महसूस कर रहे हैं, तो बाकी का बहुसंख्यक 128 करोड़ मुस्कुरा रहा है। 

फासीवाद यही तो है। याद रखियेगा कि जब गोदी मीडिया सरकार के सामने नतमस्तक था,कोई आपको सच से रूबरू करवा रहा था। आशा है कि कम से कम आप उन दो करोड़ लोगों की चुभन पर मुस्कुरा नहीं रहे होंगे। ऐसे में इससे अश्लील और क्या हो सकता है? अगर आप फिर भी मुस्कुरा रहे हैं तो आपकी इस मुस्कुराहटों को मैं हजार लानतें भेज रहा हूं। शायद हजार लानतें कम पड़ जाएं इसलिए गिन कर दो करोड़ लानतें भेज रहा हूं। दो करोड़ लोग चुभन का अनुभव कर रहे हों और प्रधान सेवक अपना जन्मदिन मना रहे हैं। केक काटे जा रहे हैं, शायद काले दिन के लिए काला चॉकलेट केक। भारत के लोकतंत्र में आज एक काला दिन है। याद रखियेगा कि कोई था जो अपनी स्क्रीन काली करके आपको सच का उजाला दिखा रहा था।

Wednesday, September 15, 2021

बदलता वक्त और उसके साथ बदलना

बहुत दुखद होता है अपने बीते हुए वक्त का गुलाम बन के रहना। अपने आज को बीते हुए कल की यादों के पीले पड़ते पन्नों की किताब को उलट पलट कर देखने में बिताना। ऐसे किताब जिसका नया संस्करण निकालने का जुनून आपके अंदर नहीं रहा। ऐसी जिंदगी जीना मानो बासी अखबार के पन्नो को पलट पर उसकी सुर्खियों में अपना जिक्र ढूंढने के जैसा है क्योंकि आज का अखबार पलटने की हिम्मत शायद नहीं बचती है बीते हुए कल के गुलामों में। 

आज के अखबार की सुर्खियां जो सच्चाई बयां करती है जिसे वो ही झेल सकता है जिसने अपनी कहानी लिखनी बंद नहीं की।जिसका सफर जारी है, जिसके सफर के चर्चे जारी हैं, जिसके जिंदगी का फलसफा एक जिंदा दस्तावेज है जो हर पल बदल रहा है बदलते वक्त के साथ। 
कहते हैं वक्त सबसे बलवान होता है, और वक्त हमेशा बदलता रहता है। मतलब यह कि बलवान वही है जो बदलना जानता है। रुक जाना ही मर जाना है, निर्झर यह झर कर कहता है। बहता पानी जो जीवन का रूप माना जाता है , रुक जाय तो सड़ जाता है। रूके सड़ते पानी से उठती बास वैसे ही लगती है जैसे अपने बीते स्वर्णिम कल को याद कर अपने खंडहर हवेली में बैठा जमींदार, अपनी तीस साल पुरानी धुनों पर जबरदस्ती से नाचता और खुद अपनी मिमिक्री करता बूढ़ा फिल्मस्टार। 

 बुरा वक्त बदल जाता है, अच्छा वक्त जल्दी बदल जाता है। इसीलिए आदमी अच्छा वक्त हमेशा पकड़े रहना चाहता है। शायद बीते वक्त का गुलाम बनने की शुरुआत यहीं से होती है। लेकिन यह कुछ ऐसा ही है जैसे किसी खूबसूरत तितली को मुठ्ठी में पकड़ लेना, किसी उड़ती चिड़िया को पकड़ कर पिंजड़े में कैद कर लेना और यह आशा करना कि तितली और पंछी का सौंदर्य बना रहेगा। नहीं, मुट्ठी में कैद तितली के पंख टूट जाते हैं, उसके पंखों का रंग विन्यास बिखर जाता है। कहने को वो आज भी तितली है लेकिन टूटे पंखों वाली मृतप्राय तितली का विद्रूप सौंदर्य कभी भी जीवंत तितली का सौंदर्य नहीं कहला सकता।

तितली और पंछी का सौंदर्य अगर अनवरत देखना है तो उस उपवन को हरा भरा बनाए रखना होता है जिसके कारण वो तितलियों का झुंड वहां आया था। उन फलदार पेड़ों की रखवाली करनी होती है जिसके पके अधपके फलों और फूलों के लिए विहंगो का कलरव गान हुआ करता है। बागीचे की मिट्टी पर कुदाल चला कर और उसको लगातार पानी से सींचने में मेहनत लगती है, जो हाथों में मिट्टी लगती है और चेहरे से धूप में चमकती पसीने की बूंदें टपकती हैं, वो ही बागीचे में तितलियों और पंछियों के रूप में दिखती है। 

बीच बीच में खुद को जांचना जरूरी हो जाता है कि कहीं हम भी तो क्यारियां सींचने वाले मेहनतकश काम को छोड़ तितलियों को कैद तो नहीं लगे, यह सोच कर कि एक बार तितलियां पकड़ ली तो हमेशा मेरे बाग में रौनक रहेगी। जब भी ऐसा लगे तो समझ जाना कि ठहराव, क्षरण और पतन की शुरुआत होने ही वाली है। क्योंकि वक्त खुद कभी नहीं रुकता और रुकने वालों को अपने साथ भी नहीं रखता। क्योंकि वक्त बलवान होता है और वो बदलता रहता है। 

Monday, September 13, 2021

कुछ खास है हिंदी में

भारत में आर्थिक सुधारों का दौर शुरू हो चुका था। वर्ष 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार के द्वारा मजबूरी में ही सही लेकिन उठाए गए क्रांतिकारी कदमों की वजह से भारतीय बाजार बाहरी निवेशकों और कंपनियों के लिए खुल चुका था। इसी के साथ भारतीय उपभोक्ता सबके लिए चहेता सा बन बैठा था लेकिन लाइसेंस राज में जीने को आदी भारतीय उपभोक्ता की मुट्ठियां अभी भी कस कर बंद थी। भारतीय मध्यवर्ग अब तक अभी इच्छाओं को लकड़ी के पुराने संदूक में बंद कर उसपर आत्म संयम और संतोष का ताला लगा कर बैठा था। विदेशी कंपनियों को समझ नहीं आ रहा था कि भारतीय समाज,  बचत जिनकी जीवन शैली है, उनको उपभोग की ओर कैसे खींचा जाय।

ऐसी ही समस्या से रुबरू थी इंग्लैंड की चॉकलेट कंपनी कैडबरी। कैडबरी डेयरी मिल्क भारत के बाजार में अपनी स्थिर बिक्री से परेशान था। कारण यह कि भारतीय जनमानस चॉकलेट को बच्चों की चीज मानता था, चॉकलेट तो बच्चे खाते हैं वाली मानसिकता को जब तक ना तोड़ा जाय, चॉकलेट का बाजार बढ़ना असंभव ही था। ऐसे में कैडबरी का एक विज्ञापन आया जो आज भी सबकी जुबान पर है। कुछ खास है हम सभी में, कुछ बात है हम सभी में, क्या स्वाद है जिंदगी में। 

इस विज्ञापन में एक महिला को चॉकलेट खाते दिखाया गया, और उसके बाद चॉकलेट बच्चों तक कभी सीमित नहीं रहा। अब तो कुछ मीठा हो जाए के विज्ञापन में अमिताभ बूढ़े होकर भी चॉकलेट खाते दिखते हैं और एक विज्ञापन ने यह उमर की दीवार, हिचक और सभी मान्यताओं को तोड़ दिया। 

क्या खास था उस विज्ञापन में जिसने भारतीय जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव डाला। महिला की वेशभूषा विदेशी थी, लड़का भी विदेशी खेल क्रिकेट खेल रहा था, उत्पाद भी विदेशी, बस विज्ञापन की भाषा हिंदी थी। आप भारतीयों से या किसी भी व्यक्ति से उनकी भाषा में बात करो तो व्यक्ति आपने सारे संकोच उतार कर आपसे खुल कर संवाद करता है। भाषा में वो शक्ति है जो धर्म, जाति, संप्रदाय, रंग, क्षेत्र आदि सबकी दीवारें गिरा देता है। भाषा की यह शक्ति अन्य किसी मानव जनित संकल्पना में नहीं है। जहां तक हिंदी का प्रश्न है, अपनी सरलता और सर्व समावेशी गुण के कारण हिंदी की क्षमता कहीं अधिक है।

हिंदी की इसी शक्ति को आज आभास करने का दिवस है। खुल कर हिंदी को अपनाएं। आत्मसम्मान और समृद्धि की सिमसिम को खोलने की चाबी का मंत्र हिंदी भाषा में ही लिखा हुआ है।

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं। 

Friday, September 10, 2021

Oracle Neo ko kya batati hai?

Year 2002.. somewhere in the common room of Rajendra Bhawan, IIT Roorkee.. HBO channel is on.. I am standing there after my early dinner.. The room is fuller than usual, that's why I stop to see what's the matter. Someone says, Aaj HBO per matrix aa rahi hai.. though I hadn't seen the movie but definitely heard about it.. I had seen posters of this movie in Patna but never went to watch the movie. It was because movie was running only in 'morning shows'. In case you know in Bihar l, morning show has a brand image entirely different from rest of the country. Being a shareef ladka, I never gathered courage to watch a 'morning show' film.

Coming back to story, I again heard about this movie from one of my Delhi classmate.. who said.. abe tune matrix dekhi hai.. mast movie hai BC.. aisa action hai ki poocho mat.. Neo ne sabki maa c@##d ke rakh di hai.. dekhna jaroor..

Such filled room, obviously excited atomosphere , I decided to lose my virginity of English film & HBO. I found myself a seat on back row of chairs and started watching the film. Those days HBO didn't have subtitles for the movies, so watching a Chinese film or and English film gave almost same experience. Movie was good, action was superb but didn't understand what why whom when of the movie plot due to obvious reasons.. Still I watched full movie and returned to my room. 

Met the same Delhi guy in the lobby, abe kidhar tha, he asked.. I said that I was watching movie the matrix  in the common room. Abe sahi.. dekh li tune . Kaisi lagi bata.. maza aaya na??

I said Haan maza to aaya, but couldn't understand one thing.. Actually I couldn't understand 80% of plot but didn't want to expose myself like that.. I asked.. abe sab to samajh gaya, bas ek baat samajh nahin paaya ki Oracle Neo ko kya batati hai? Bata de yaar..  Delhi wala friend looks blankly into my face and says.. Abe yaar maine bhi English mein hi dekhi thi..

Aaj chal ke civil lines se hindi dubbed wali cd laate hain phir dono saath mein dekhenge..maza aayega BC..

19 years later Matrix 4 is going to get released, though I am excited to watch this one too, two question still bother me..
  a. Oracle Neo ko kya batati hai..
 b. Matrix 4 ka hindi dub bhi release hogi kya saath mein?


Thursday, September 9, 2021

Be like Ganesh..

Ganesha is far from being perfect.. He misses his natural head, has one teeth missing and by body structure he is no where near his competitors Greek gods . Yet he is God , infact he is the considered the first among Gods. He is the lucky charm and brings auspiciousness.

 He tells us that you need not be perfect but just be comfortable in your skin and be happy in whatever you have. He has a mouse as his ride yet considered superior to Indra who has elephant Eravat as his ride. He tells us to have simple tastes, he is happy having a simple Modak while other gods need chhappan bhog. He is polite and wins everyone with his politeness Unlike other gods who carry weapons. Don't be fooled by his awkward looks, simplistic lifestyle and harmless aura, there is a scholar in him who helped vedvyas write all puran shashtras.

Vinayak is simple, Ganpati is great.. Be like Ganpati.. Shubh Ganesh chaturthi..

Wednesday, September 8, 2021

Working from home is not that pleasant as it sounds

Calling it work from home is just tip of iceberg. It is actually work from your kitchen, toilets, bedrooms and gym. It is working when your kid is crying for your attention. It is also working when wife is in romantic mood due to some galactic aberrations and rare events but you have a meeting to attend. It is also working from sasural when your food is served and New york wali saali is waiting at the dinner table. 

It is working when you have just paid bribe to traffic police because he caught you talking over phone while driving. It is also working when you have not even changed your whites for two days and haven't used cologne for a week. Work from home is also working with a smile because you just broke a shaadi wala crockery set while trying to wash dishes and attending a concall together. Working from home is also continue working without a fuss while you can't even complain about the tea because it is made by angry wife. Working from home is complicated situation because now your bedroom is your workplace and any inappropriate behavior might be categorized as harrassment at workplace. So you keep working and working in your jammies and undies having a blind faith that your video is not accidently on and mute button is properly functioning. Because being famous is a good thing and being famous because you forgot to mute your Mike or switch off your camera is rarely pleasant.

So though work and home may be two great words, working from home is certainly not that great. 

Saturday, September 4, 2021

वो शिक्षक जिसे शायद आप शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं नहीं देते

 सामान्यतः शिक्षक शब्द सुन कर मन में आदर सम्मान और अनुग्रह का भाव आता है। इसीलिए शिक्षक दिवस के अवसर पर गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु  जैसे मैसेज से सोशल मीडिया भर सा जाता है। लेकिन क्या आपका शिक्षक हमेशा वैसा ही होता है  जिसका स्मरण कर आपके मन में आदर और सम्मान का भाव प्रकट हो। थोड़ी पड़ताल करते हैं।

शिक्षक का अर्थ होता है शिक्षा देने वाला। शिक्षा तत्सम शब्द है जिसका तद्भव रूप है सीख।अब अगर शिक्षक शब्द को स्कूलों में मिलने वाली औपचारिक शिक्षा और घर परिवार में मां द्वारा दी जाने वाली प्रारंभिक शिक्षा तक सीमित रखा जाय तो शायद शिक्षक का कमोबेश वही रुप आपके मन में आएगा जो शिक्षक दिवस पर हर तरफ छाया रहता है। एक निस्वार्थ ज्ञानी जो आपको हमेशा अंधेरे से उजाले और अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाता है। लेकिन शायद यह शिक्षा का धनात्मक रूप है, सीख देने का एक दूसरा रूप है जो ऋणात्मक है। ऐसी सीख आपको ऐसा व्यक्ति देता है जो आपके उत्साह को निराशा में बदलने को आतुर हो, आपको अज्ञान के अंधेरे में धकेलने के लिए अपनी शक्ति लगा दे और जिसे आपका अहित देख कर संतोष मिलता हो। यह सही है कि वो व्यक्ति जो आपका उत्साहवर्धन करे , आपको अपनी क्षमताओं का विश्वास करने को कहे, उसे आप अपना शिक्षक कहते हैं, अपना गुरु मानते हैं, लेकिन आपकी सफलता में उन लोगों का योगदान भी कम नहीं है जिन्होंने आपको दुत्कारा, आपको नीचा दिखाया और आपकी क्षमताओं का सरेआम मजाक उड़ाया। ऐसी परिस्थितियों में आपमें सामने वाले को गलत प्रमाणित करके का जो जोश जगता है वो उत्साहवर्धन करने वाले शिक्षक के कमतर नहीं होता। इतिहास गवाह है कि ऐसे अवसरों पर अपमानित होने के बाद मानवों ने ऐसे ऐसे कार्य कर दिखाए हैं जो उनके आशीर्वचन देने वाले शिक्षकों की प्रेरणा से संभव नहीं थे। बहुधा अंदर की आग जलाने में एक कड़वा वचन या दुत्कार या अपमान जनक बात एक भोले आशीर्वचन से ज्यादा कारगर होती है।

अगर  मैं कहूं कि चाणक्य को मौर्य वंश की स्थापना करने को उत्प्रेरित करने में धनानंद की जितनी भूमिका थी उतनी उसके गुरुओं की नहीं थी, तो शायद अनुचित न होगा। व्हाट्सएप के संस्थापक को फेसबुक में नौकरी तक न मिलने से जो प्रेरणा मिली होगी वो वाह वाह करने वाले उनकी मित्र मंडली से शायद ही मिल सकती थी। शायद यही कारण थी कि मरणासन्न रावण से शिक्षा लेने को भगवान राम ने लक्ष्मण को भेजा। अगर कारगिल युद्ध के समय अमेरिका अगर अपने जीपीएस सिस्टम का प्रयोग करने से हमें माना नहीं करता तोनाज नाविक के रूप में हमारे पास हमारा अपना और जीपीएस से बेहतर नेविगेशन सिस्टम ना होता। मेरे एक मित्र ने अपना आम का एक पूरा बागीचा लगा लिया क्योंकि उनके एक रिश्तेदार ने बचपन में उनसे बागीचे में चुने हुए आम छीन लिए थे।


सीख देने वाला अगर शिक्षक है तो जीवन की पाठशाला में शिक्षक के अनेक रूप हैं। हर वो व्यक्ति जिसने आपकी क्षमताओं पर शक किया, आपको दुत्कारा, आपके सपनों का मजाक उड़ाया और आपसे यह कहा कि तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता, आपका शिक्षक है। आपकी बातों में गलतियां निकाल कर आपको नीचा दिखाने वाला आपको सबसे ज्यादा सीख दे सकता है। शायद आपका सबसे बड़ा शत्रु आपका सबसे बड़ा शिक्षक हो सकता है।

शिक्षक दिवस पर अपने दोनो प्रकार के शिक्षकों के योगदान को याद करें और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें। ऋणात्मक शिक्षकों को अपनी उपलब्धियां दिखाने का जो सुख है उसकी मिसाल दुनिया में कम ही है। 

उपहास और आशीर्वाद देने वाले मेरे सभी शिक्षकों को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं। 

Thursday, September 2, 2021

Kabul is nearer than you think

Some people think why should we be worried about events unfolding at Afghanistan. That's hardly our concern. That's happening in a far far land. We should be worried about our domestic issues.

Well, let us address the distance logic. If you are sitting in Delhi, Kabul is nearer to you, Mumbai is located at a larger distance. So it's not happening very far. 

And for those who feel that we should be worried about our domestic issues only, sorry to break your bubble. When your neighborhood house is on fire, you can't be at ease because your house is not on fire. It's not on fire yet.. it's just matter of time.

Remember, when whole America was busy in discussing Clinton-Leweinsky scandle and bringing down its own president, somewhere in the hills of Tora Bora Osama Bin Laden was planning 9/11 attacks. 

I sincerely wish we, an island of democracy and sanity in a deep blue sea of sheer madness and non democratic failing states, don't fall into any such trap and are fully aware what we are dealing with here. Lest we forget.