Monday, June 27, 2022

बिना फिकर अंजामों का

बाजारों से गुजरते पता चला
कि आया है मौसम आमों का
वरना इस बेमुरव्वत दौड़ में
पता ना चलता सुबह ओ शामों का

जिंदगी कट रही थी बेतकल्लुफ सी
कि वक्त आ गया झूठे एहतरामों का
जिंदगी की महफिल से गायब है साकी
और न ठिकाना है सुकून भरे जामों का।

तेरी यादों के सहारे ज़माना ए यारी
बोझा उठा रखा है इन फालतू कामों का
मिलेंगे तो बांटेंगे राज दिल के ए दोस्त
कुछ लम्हें कटेंगे बिना फिकर अंजामों का।

Friday, June 24, 2022

नालंदा के सबक

नालंदा के खंडहर केवल हमारा समृद्ध इतिहास याद नहीं दिलाते। नालंदा के खंडहर याद दिलाते हैं कि आध्यात्मिक ज्ञान, साहित्यिक ज्ञान, सभ्यता के साथ साथ बाहुबल और सैन्य शक्ति कितनी आवश्यक है। बिना बाहुबल के ज्ञान नीचे लटके पके आम की तरह है, कोई बच्चा तक तोड़ लेता है। बिना सैन्य बल के समृद्धि उतनी ही क्षण भंगुर है जितना पराजित बंदी बनाए सैनिक का आत्मसम्मान। 

खिलजी की नंगी तलवार के आगे हमारा सैकड़ों सालों का आध्यात्मिक ज्ञान बेबस हो गया और नालंदा का ज्ञान केंद्र खंडहर बन कर रह गया। काश हमारे बौद्ध भिक्षु बुद्ध, संघ, और धम्म की शरण में जाने के साथ साथ शक्ति की शरण में भी गए होते तो कदाचित खिलजी की तलवार का प्रतिरोध किया जा सकता था। वर्षों की समृद्ध रोमन सभ्यता बर्बर गोथों का एक वार नहीं झेल पाई और जमींदोज हो गई। आध्यात्मिक बल और नैतिक बल व्यर्थ है अगर वो बाह्य पाशविक बलों से अपनी रक्षा ना कर सके। 

आत्मो रक्षितो धर्मः। नालंदा के प्राचीन खंडहर जीते जागते सबक हैं कि राजा धर्म का पालन करे , यह उचित है लेकिन राजा धर्मगुरु बन कर प्रवचन करने लगे यह आने वाले संकट का द्योतक है। धम्म को आत्मसात करते सम्राट अशोक भले ही इतिहास के पन्नों में महान बन के दर्ज हों, यह भी सच है कि भविष्य में भारतवर्ष पर आक्रांताओं के निरंतर आक्रमण और विनाश के बीज उन्होंने ही बोए थे। विष्णु के एक हाथ में कमल तो दूसरे में चक्र यूं ही नहीं रहता। 

Thursday, June 23, 2022

सिराज: एक त्रासद हीरो

मेरे गांव का नाम नवाबगंज है। कारण यह कि नवाब सिराजुदौल्ला की सेना की एक टुकड़ी हमारे गांव में रहती थी। वो ही नवाब सिराजुदौला जिसको हरा कर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर कब्जा किया। जिसकी लाश पर क्लाइव, जाफर, मीरान और जगत सेठ जैसों ने तांडव किया। हम नहीं जानते कि अगर प्लासी की लड़ाई में नवाब सिराजुद्दौला नहीं हारते तो हिंदुस्तान की तस्वीर और तकदीर क्या होती। सिराज बहुत कुशल प्रशासक नहीं माने जाते, लेकिन फिर भी अगर सिराज बने रहते तो बंगाल सबसे समृद्ध राज्य से दुर्भिक्ष का केंद्र शायद ना बनता। सिराज हीरो नहीं थे लेकिन जाफर ने उनको दगा देखकर ट्रैजिक हीरो अवश्य बना दिया। इसीलिए आज से 265 साल पहले जब सिराज क्लाइव के छल से प्लासी में पराजित होकर भी इतिहास में हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो गए। जब सिराज मार दिए गए तो सिर्फ पच्चीस साल के थे। उनके बाद उनकी सारी पत्नियों सहित उनके नाना अलीवर्दी खान के खानदान की सारी औरतें मीर जाफर के बेटे मीरान के आदेश पर मार दी गई। नवाब जाफर के बेटे मीरान के कहने पर करीब 70 मासूम बेग़मों को एक नाव में बैठा कर हुगली नदी के बीचो-बीच ले जाया गया और वहीं नाव डुबो दी गई. सिराजुद्दौला ख़ानदान की बाकी औरतों को ज़हर दे कर मार दिया गया। 

बस सिराज की सबसे पसंदीदा बेगम लुफ्त उन निसा को जिंदा रखा गया। उन्हें जाफर और उसके बेटे दोनो ने निकाह का पैगाम भेजा। बेगम ने निकाह ठुकराते हुए वापस पैगाम भेजा कि मैं पहले हाथी की सवारी कर चुकी मैं अब गधे की सवारी नहीं करूंगी। you either die a hero aur you live long enough to be the villain. नवाब सिराजुदौल्ला एक नायक की मौत मरे और उनकी बेगम ने भी जाफर के सामने सर नहीं झुकाया। आज की तारीख ले जाती है वापस प्लासी के मैदान पर जहां भारत की तकदीर लुट रही थी और सिराज उन खुशकिस्मतों में से थे जिन्होंने ब्रिटिश लूट का नंगा नाच देखने के पहले ही अपनी आंखें मूंद ली। फिर भी जब भी अपने गांव का नाम पढ़ता हूं एक बार नवाब सिराजुद्दौला और प्लासी के मैदान तक ध्यान चला ही जाता है। 

Monday, June 13, 2022

टाई को बोलो बाय।।

भारत जैसे गर्म और आर्द्र देश में टाई बांधने को लेकर जो जुनून दिखता है वो समझ के परे है। भारत में खास कर गर्मियों में परिधान ऐसा होना चाहिए जो पसीने को सोखे और हवा का पारगमन संभव रखे। इसीलिए भारतीय परंपरा में पुरुषों के लिए धोती और महिलाओं के लिए साड़ी जैसे परिधान विकसित हुए। चुस्त कमीज जिसे गले तक बंद रखना पड़े, ऊपर से उसपर एक टाई बांधनी पड़े और सबके ऊपर से एक मोटा सा कोट पहनना पड़े, भारतीय गर्मी के मौसम के लिए बिल्कुल अनुपयुक्त ही है। 

लेकिन स्कूलों में नर्सरी के बच्चे हों, या कॉलेज में नौकरी के लिए साक्षात्कार देते युवा हों, शादी के लिए तैयार दूल्हे हो या जरूरी कानूनी मुकदमे में गवाही देने जाता वरिष्ठ नौकरशाह, बिना टाई के अपूर्ण माने जाते हैं। यह हास्यास्पद तो है ही , कॉमन सेंस पर औपनिवेशिक गुलामी वाली सोच के हावी होने से ज्यादा कुछ नहीं है। वक्त आ गया है कि हम अपने परिधानों पर शर्मिंदा होना और टाई ना पहनने वालों को शर्मसार करना बंद कर दें। गले की फांस की तरह गले से झूलता वो फालतू सा कपड़े का टुकड़ा कम से कम हमारे किसी काम का नहीं है। हां एक काम है उसका, यह याद दिलाना कि 1757 की प्लासी की हार से शुरू हुआ सिलसिला 1947 में बंद नहीं हुआ, 2022 में भी बदस्तूर जारी है। 

Monday, June 6, 2022

पहली बारिश की बूंदें

पहली बारिश की बूंदें
झर झर।

लगती हैं ऐसे जैसे 
शरारती तुमने सुबह सुबह जगाने
की कोशिश की हो पानी छिड़क कर
आसमान के छाए हों काले बादल 
मानो मेरा चेहरा छू रहे हों 
जैसे तुम्हारे खुले गीले बाल
और रिस रही हो उनसे बूंदें
अंजुली भर ।
पहली बारिश की बूंदें
झर झर।

काले बादलों के बीच चमकती
बिजली लगती है जैसे
बीच बीच में दिखता हो 
सफेद तौलिया जो बमुश्किल बांधे हुए है 
तुम्हारी भीगी केशराशि को।

है फैली चारों तरफ
पहली बारिश की महक 
जैसे अभी अभी तुम 
बाहर निकली हो गुसलखाने से
और महक उठा हो कमरा तुम्हारे
संदली साबुन की खुशबू से।
और मैं निहारता तुम्हें
जी भर।
पहली बारिश की बूंदें
झर झर।

बिस्तर पर अलसाया पड़ा मैं 
गर्मी से बेजान हो रहे पत्ते की तरह
और बारिश की बूंदें पड़कर
धुलने लगी हो पत्ते पर जमी
धूल की परत
और दुबारा दिखने लगी हो 
पत्ते की छुपी हरियाली 
पाकर ठंडक भरी दुपहरी में
खुशी में झूम सा गया हो 
शीतल बूंदें की गुलाबी चोट 
से कांप रहा हो
थर थर ।
पहली बारिश की बूंदें
झर झर।

पहली बारिश की बूंदें
जगा जाती हैं पहले प्यार की
 सोचता हूं कि कब सिखाई
तुमने बारिश को अपनी शरारतें
और कैसे है बादलों में 
तुम्हारी अदाओं का 
 जैसा असर
जब भी देखता हूं
पहली बारिश की बूंदें
झर झर।




Sunday, June 5, 2022

कुरुक्षेत्र में मान सम्मान के लिए लड़ता पक्ष

द्रौपदी के पांच पति थे, पांचों वीर थे, ज्ञानी थे, क्षात्र धर्म के अनुपालक थे लेकिन उन्होंने द्रौपदी को दांव पर लगाने से परहेज़ नहीं किया। आधा राज्य पाने के लिए उन्होंने ऐसा किया। युद्ध भी हस्तिनापुर के सिंहासन के लिए हुआ था, द्रौपदी के मान सम्मान के लिए नहीं। पांडव पांच गांव पाकर सब भूलने को तैयार थे। धन्यवाद करना चाहिए दुर्योधन का जिसने बिना युद्ध के सूई की नोंक के बराबर भूमि देने से मना कर दिया और भीम की दुःशासन की छाती फाड़ने वाली प्रतिज्ञा की लाज रह गई। हां दुर्योधन अवश्य अपने पिता को अंधा कहने वालों को क्षमा करने को तैयार कभी नहीं हुआ। अपने पिता के सम्मान के लिए वो अवश्य लड़ा। कुरुक्षेत्र के रण में सिर्फ एक पक्ष मान सम्मान के लिए लड़ रहा था और वो पक्ष पांडवों का नहीं था। जहां पांडव अपनी पत्नी तक के चीरहरण के मूक दर्शक बने रहे , दुर्योधन ने कभी भी अपने मित्र कर्ण को सूत पुत्र तक कहना सहन नहीं किया।

Wednesday, June 1, 2022

परहित भाव की महत्ता

समस्त सृष्टि में मनुष्य ही है जो कवि है, प्रेमी है , चित्रकार है, लोकहित में कार्य करने वाला प्रशासक है, अधिकारों के लिए लड़ने वाला मजदूर संघ का नेता है, गरीब वंचितों की सेवा करने वाला डाक्टर है। बाकी सब जीव तो जीवन, मृत्यु, भोजन और वंशवृद्धि के चक्र से आगे नहीं जा सकते। मनुष्य और अन्य जीवों में यह मूल अंतर इसीलिए है कि मानव अपने निज आवश्यकताओं पूर्ति के परे सोच सकता है। कल्पना करिए, क्या कोई कवि हो सकता है अगर कोई सुनने वाला कविता पढ़ने वाला न हो। प्रेम तो वैसे भी दूसरे मनुष्य से ही किया जा सकता है। कहा भी गया है कि वियोगी होगा पहला कवि। बिना दूसरों के वियोग भी संभव नहीं और संयोग भी नहीं। पहली चित्रकारी भी दूसरों को देख कर दूसरों के देखने के लिए बनी होगी। 
दूसरों के अधिकारों के लिए लड़ने वाला नेल्सन मंडेला भी अगर विश्व में अकेला होता तो मंडेला नहीं बनता। अगर दूसरे ना हों तो कोई डाक्टर भी नहीं होगा । सेवा भी दूसरों की ही की जा सकती है। 

कोई भी व्यापार , कोई भी मानवीय गतिविधि इस मूल तथ्य पर आधारित है कि करने वाला अपने सिवा दूसरों के लिए भी कर रहा है। मनुष्य के सामाजिक संबंधों की नींव पर ही मानव सभ्यता का निर्माण हुआ है। चूंकि अन्य जीव अपने सिवा कुछ खास कर नहीं पाते उनके विकास का स्तर निज आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उद्यम तक सीमित है। कोई शेर अगर जान भी जाय कि जंगल के खास क्षेत्र में शिकारी जाल बिछा कर बैठे हैं और जाल से कैसे बचा जा सकता है, वो शेर अपने इस ज्ञान को दूसरों के साथ साझा नहीं करता । परिणाम यह कि सैकड़ों सालों से वोही जाल शेरों का शिकार कर पाने में सक्षम हैं क्योंकि शेर अपने पूर्वजों से कुछ नहीं सीख सकते, क्योंकि जो शेर शिकार से बचना भी जानते हैं वो दूसरों को नहीं बताते।

मानव अपने अर्जित ज्ञान को दूसरों तक पहुंचाता है, इससे मानवता अपने पूर्वजों के संचित ज्ञान से आगे का सोचती है और उसका उत्तरोत्तर विकास होता है। इन सबके पीछे परहित का मूल भाव समाहित है। बिना दूसरों की उपस्थिति और बिना दूसरों के हित के भाव के मानव सभ्यता का अस्तित्व संभव नहीं। अकेला चना सचमुच कोई भाड़ नहीं फोड़ता।