पहली बारिश की बूंदें
झर झर।
लगती हैं ऐसे जैसे
शरारती तुमने सुबह सुबह जगाने
की कोशिश की हो पानी छिड़क कर
आसमान के छाए हों काले बादल
मानो मेरा चेहरा छू रहे हों
जैसे तुम्हारे खुले गीले बाल
और रिस रही हो उनसे बूंदें
अंजुली भर ।
पहली बारिश की बूंदें
झर झर।
काले बादलों के बीच चमकती
बिजली लगती है जैसे
बीच बीच में दिखता हो
सफेद तौलिया जो बमुश्किल बांधे हुए है
तुम्हारी भीगी केशराशि को।
है फैली चारों तरफ
पहली बारिश की महक
जैसे अभी अभी तुम
बाहर निकली हो गुसलखाने से
और महक उठा हो कमरा तुम्हारे
संदली साबुन की खुशबू से।
और मैं निहारता तुम्हें
जी भर।
पहली बारिश की बूंदें
झर झर।
बिस्तर पर अलसाया पड़ा मैं
गर्मी से बेजान हो रहे पत्ते की तरह
और बारिश की बूंदें पड़कर
धुलने लगी हो पत्ते पर जमी
धूल की परत
और दुबारा दिखने लगी हो
पत्ते की छुपी हरियाली
पाकर ठंडक भरी दुपहरी में
खुशी में झूम सा गया हो
शीतल बूंदें की गुलाबी चोट
से कांप रहा हो
थर थर ।
पहली बारिश की बूंदें
झर झर।
पहली बारिश की बूंदें
जगा जाती हैं पहले प्यार की
सोचता हूं कि कब सिखाई
तुमने बारिश को अपनी शरारतें
और कैसे है बादलों में
तुम्हारी अदाओं का
जैसा असर
जब भी देखता हूं
पहली बारिश की बूंदें
झर झर।