बिहारी चाहे दुनिया जीत लें, स श और ष का सही उच्चारण करना उनके लिए गौरीशंकर की चोटी ही है। चुनावी यात्रा में जबसे से सैकड़ों न्यूज चैनल और हजारों यूट्यूब चैनल वाले आम लोगों को पकड़ पकड़ कर माइक उनके चेहरे पर घुसेड़ रहे हैं, सुद्ध बोलने वालों पर शुद्ध बोलने का प्रेसर बढ़ गया है।
यही दवाब है कि तेजस्वी ' तेजश्वी' हो जाते हैं तो चिराग पासवान भैया चिराग ' पश्वान ' बन गए हैं। नीतीश कुमार ' नीतिसे कुमार ' से लेकर नितीश और नीतिष तक बुलाए जा रहे हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत आती है सुशील मोदी का नाम लेने में। माइक नहीं हो सामने तो सुसील हैं, कैमरा के सामने शुशील सुषील शुसील क्या बोला जा रहा है, महादेव भी नहीं बता पा रहे। शामाष्या इतनी बढ़ गई है कि शड़क पर बातचीत सुनें या शमाचार पत्रों में पढ़ें , समझ नहीं आता कि स ष श का गठबंधन है , मेल हो गया है कि यह शब एक दूषरे के खिलाफ लड़ रहे हैं।
अब ष श वाली समस्या कम नहीं थी कि दिल्ली वाले पत्रकारों के खड़ी बोली सुनकर लोग अपनी भाषा के लिंग प्रयोग को लेकर सजग हो गए हैं। जो ट्रेन हमेशा लेट आता था , उसको ' ट्रेन लेट आती है ' कहना पड़ रहा है। कहा जाता है कि बिहारी सब जगह पुल्लिंग का प्रयोग करते हैं तो इसकी भरपाई के चक्कर में ' मेरा लड़का बंगलौर में पढ़ती है ' हो जा रहा है। ' आपकी काम हो गई का ' बोल कर भाषा बोली और व्याकरण सबका एक मिक्स वेज बन गया है। मैंने कहा की जगह ' हम कहा ' से लेकर 'मैं कहे ' सब बोले जा रहे हैं।
ऐसे ही कंफ्यूजन इतना ज्यादे है कि नीतीश को भाजपा सपोर्ट कर रही है कि नहीं, चिराग एनडीए में हैं कि नहीं, मुकेश सहनी धर्मनिरपेक्ष हैं कि नहीं , पते नय चल रहा है। तेज प्रताप अगर कृष्ण हैं तो कायदे से उनको तो सोलह हजार पत्नियां संभाल लेना चाहिए, एक नहीं संभल रही उनसे। तेजस्वी अगर उनके अर्जुन हैं तो वे तीर धनुष की जगह भीम बनकर सेल्फी वालों को काहे पटक रहे हैं। कोरोना , चुनाव, छठ पूजा और 10 लाख नौकरी वाला लड़का मार्केट में आ जाने से कहीं बेटा का दहेज घट नहीं जाय, वाला चिंता कम था कि व्याकरण की शुद्धता बनाये रखने का दवाब एक्स्ट्रा उपर से आ गया है। अब इ सब के बारे में सोचें कि स और श के बीच उलझे रहें। कशम से
No comments:
Post a Comment