तस्याहतस्य बहुधा शक्तिशूलादिभिर्भुवि।
पपात यो वै रक्तौघस्तेनासञ्छतशोऽसुराः॥ ~ दुर्गासप्तशती अष्टम अध्याय , रक्त बीज वध
अर्थात शक्ति और शूल आदि से,अनेक बार घायल होने पर,जो उसके शरीर से रक्त की धारा धरती पर गिरी, उससे भी निश्चय ही सैकड़ों असुर उत्पन्न हुए।
दुर्गासप्तशती के आठवें अध्याय में रक्तबीज वध का वर्णन आता है। रक्तबीज जिसके रक्त से दूसरा असुर उत्पन्न हो जाता था। देवी दुर्गा ने महा काली का रूप धारण कर रक्तबीज का संहार किया। दुर्गासप्तशती के आठवें अध्याय में वर्णित यह प्रसंग प्रथम दृष्टया काल्पनिक, और अवास्तविक लगता है। किसी के रक्त की एक बूंद से दूसरा असुर पैदा हो रहा है, युद्ध क्षेत्र में असंख्य असुर पैदा होकर देवी पर समवेत प्रहार कर रहे हैं। और फिर देवी अपने विकराल रूप में अपने मुख का आकार बढ़ा कर रक्तबीज के सारे रक्त का पान कर लेती हैं और रक्तबीज क्षीणकाय होकर मर जाता है।
शब्द शक्ति तीन प्रकार की होती है। अभिधा, लक्षणा और व्यंजना। अभिधा का अर्थ होता है जहां शब्दार्थ और भावार्थ समान हो।
लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्ति वह है जहां शब्द प्रतीक रूप में प्रयुक्त होकर अपने शब्दार्थ से भिन्न भाव प्रकट करते हैं। साहित्य उतना ही उच्च कोटि का माना जाता है जो अपने शिल्प की प्रकृति में लाक्षणिक हो या जिसमें अनेक भावों की व्यंजना हुई हो। अभिधात्मक रचनाओं की प्रासंगिकता और उपयोगिता कम समय तक होती है, लक्षणा एवं व्यंजना शब्दशक्ति वाले काव्य सदियों तक प्रासंगिक और प्रचलन में बने रहते हैं। हमारे पौराणिक कथाएं और मिथकीय कहानियां चूंकि सदियों से प्रासंगिक है , जनचेतना का हिस्सा बने हुए हैं, इसीलिए यह मानना स्वाभाविक है कि हमारे पौराणिक ग्रंथों का कथ्य अभिधात्मक न होकर लाक्षणिक है। तो कहीं चंद्रकांता संतति की तरह काल्पनिक और अविश्वनीय लगती इन कहानियों का भावार्थ कुछ और हो सकता है क्या।
रक्तबीज का कथा का भावार्थ कदाचित विचारधारा के संबंध में है। एक व्यक्ति के अनेक प्रतिरूप उत्पन्न होने का अर्थ विचारधारा के प्रसार से है। विचारधारा का प्रसार उर्ध्वाधर दिशा में होता है। कोई एक व्यक्ति जिसके विचारों से उसके अनुगामी प्रभावित होते हैं और विचारधारा का प्रवाह ऊपरी नेतृत्व से मध्यवर्ती और फिर निचले स्तर के नेतृत्व पर होता है। विचारधारा से प्रभावित व्यक्ति स्वयंसेवक बनता है और इसके क्षैतिज विस्तार से संगठन का निर्माण होता है। इस प्रकार किसी भी संगठन को आप एक वृक्ष के रूप में देख सकते हैं। वृक्ष के अंदर शिराओं में प्रवाहित जल और पोषक तत्व विचारधारा के समान है। नई फूटती कोपलें और टहनियां नए स्वयंसेवक हैं और पूरा वृक्ष एक संगठन है। जब तक वृक्ष के अंदर शिराओं में जल रूपी विचारधारा प्रवाहित है, पेड़ जीवित है। उसकी कुछ टहनियां कट जाएं या पत्ते गिर भी जाए तो पेड़ जीवित रहता है। लेकिन जिस प्रकार से शिराओं में जल प्रवाह रुक जाने पर पेड़ मर जाता है, विचारधारा के समाप्त या निष्प्रभावी हो जाने पर संगठन मृतप्राय हो जाता है।
राम का साथ देने वाली वानर सेना पर विचार करें। वह कोई वेतनभोगी सैनिकों की सेना नहीं थी, ना ही राम रावण युद्ध के परिणाम से उनको कोई व्यक्तिगत लाभ होना था। फिर भी वे राम के साथ लड़े। गांधी के एक आव्हान पर पूरे देश में आंदोलन खड़े करने वाली जनता भी उस विचारधारा से प्रभावित थी। राजनैतिक दलों को भी उस कसौटी पर कस कर देखें तो आप देखेंगे कि किसी भी राजनैतिक दल के एक संगठन के रूप में सफलता और दीर्घ जीविता उसकी विचारधारा पर निर्भर करती है।
कोई भी संगठन जो क्षणिक स्वार्थों और लघु लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बना है, उन स्वार्थों को पाने के बाद की सफलता के बाद या तो दिशाहीन हो जाता है या असफलता के बाद निराश होकर टूट जाता है। यह विचारधारा ही है, जो संगठन को निरंतर दिशा और लक्ष्य प्रदान करती रहती है और उसका विकास करती रहती है।
इसलिए एक व्यक्ति के मर जाने, कुछ लक्ष्य में असफलता या मिली सफलता के बाद भी विचारधारा के बल पर संगठन चलता रहता है। विचारधारा इतनी सशक्त होती है कि यह संगठन के बिना भी जीवित रहती है। इस्लामिक एस्टेट को ही लें, यह कोई निश्चित संगठन नहीं है, बस एक सशक्त विचारधारा है जो अपने बल पर पूरी दुनिया में अपने लिए स्वयंसेवक उत्पन्न कर लेती है जिसे आप ' लोन वुल्फ अटैक ' के रूप में देखते हैं। समाजवाद या मार्क्सवाद भले ही संगठन के तौर पर पूरी दुनिया में मृतप्राय हो चुका हो, लेकिन यह इतनी मजबूत विचारधारा है कि हर वैचारिक विमर्श और जीवन दर्शन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। व्यक्ति की हत्या हो सकती है, विचारधारा को समाप्त करना कठिन होता है।
यह एक दोधारी तलवार है, यह रक्तबीज भी बनाती है और स्वतंत्रता आंदोलन भी चलाती है, ' मैं भी अन्ना ' को ट्विटर पर ट्रेंड करा सकती है और पूरे विश्व को शीत युद्ध में धकेल सकती है । फिर भी यह किसी भी संगठन की प्राणवायु है। एक संगठन जिसकी विचारधारा बुरी है, उस संगठन से बेहतर है जिसकी कोई विचारधारा नहीं। रक्तबीज वध प्रसंग सीधे रूप में आपको एक पौराणिक कथा भले लगे, यह लाक्षणिक रूप में विचारधारा की अवधारणा का एक सरलीकरण है।
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