पहले जितने ही हैं लोग गिन के बहत्तर
लेकिन लगता है जैसे युगों का हो अंतर
सब एक दूसरे से खिंचे खिंचे से हैं
मानो किसी बात पर रूठे रूठे से हैं
ना इंतजार है प्लास्टिक ट्रे वाली चाय का
ना मिलेगा जायका दातून जैसे ब्रेड स्टिक
के साथ वाले सूप का
पहले खाना था मानो गपशप की
मीठी गर्म चाशनी में सना है
अब मानो है सन्नाटे वाली
चुप सी बर्फ का बना है
जो रेल डब्बा होता था एक बागीचा
अब बस एक सूखता ठूंठ तना है
पहले जितने ही हैं लोग गिन के बहत्तर
पर लोगों के दरम्यान दूरियां कई गुणा है।
नजर नहीं आते अब
सहेज कर रखे गए लिहाफ
और वो सलेटी लिफाफे में
झक्क सफेद चादर का जोड़ा
ना मयस्सर है वह
खुरदरा छोटा सा तौलिया
जिसको देख शायद एक बार
हर किसी का दिल
मचल ही जाता था कि
साथ के चलें अपने घर
लालच से नहीं बल्कि शायद प्यार से
शायद कुछ यादगार अपने
साथ रखने की चाह से।
लेकिन अब ना कोई देता दुआएं
चादर समेटने वक़्त
ना चाय नाश्ते की बख्शीश मांगता
दिखता कोई जना है
जो रेल डब्बा होता था एक बागीचा
अब बस एक सूखता ठूंठ तना है
पूछा जब उससे कि हुए क्या है तुझे
कहा उसने मैं तो हूं वैसा ही
तुम्ही कहते हो कि कोरॉना है।
छोटे बच्चे जो दौड़ते थे पूरे डब्बे में
मचाते धमा चौकड़ी
मानो पुरबा बह रही
हो अरहर के खेतों से
आज बंधे है अपनी अपनी सीटों से
किसी भी दूसरी सीट पर जाना मना है
बगल की सीट पर बैठे बुजुर्ग
गोद में दादा दादा कह
बैठ जाना मना है
चहचहाते पंछी अब ना बैठते डालियों पर
सारे बैठे ऐसे सहम कर
जैसे कबूतरों ने किसी अदृश्य चील
के पंखों को फड़फड़ाते सुना है
जो रेल डब्बा होता था एक बागीचा
अब बस एक सूखता ठूंठ तना है
पहले जितने ही हैं लोग गिन के बहत्तर
पर लोगों के दरम्यान दूरियां कई गुणा है।
सोचा सफर खत्म होते ही
बदलेंगी ये मायूस सूरतें
लपक कर उतरा स्टेशन पर
पर दिखा कि यह सन्नाटा तो
स्टेशन पर और भी घना है
दिखे वो भी जो उठाते हैं
सारी दुनिया का बोझ
एक कोने में खड़े दुबके से
जैसे कठोर मास्टर जी ने
होमवर्क ना करने की सजा दी हो
लाल कपड़े पहनने वालों की
अखें भी अब हो गई है लाल
मानो किसी ने उनके बोझिल
कंधों पर डाला बोझा तिगुना है
खो गई वह सामान को गिन कर
मोलभाव करने की वह अदा है
जो भी हो दे देना साहिब
क्योंकि अब बेगारी भी लगती भली
' ऐ कुली ' की आवाज़ सुनना भी हो
गई दूभर ,
स्टेशन आज है एक सुनसान गली
कैसे कहूं कई महीनों से घर में ठीक से
खाना तक नहीं बना है
जो रेल डब्बा होता था एक बागीचा
अब बस एक सूखता ठूंठ तना है
दुनिया का बोझा उठाना था आसान
अब अपनी ज़िन्दगी का वज़न कई गुणा है।
जो रेल डब्बा होता था एक बागीचा
अब बस एक सूखता ठूंठ तना है
पूछा जब उससे कि हुए क्या है तुझे
कहा उसने मैं तो हूं वैसा ही
तुम्ही कहते हो कि कोरॉना है।
No comments:
Post a Comment