तुक्कों पर घमंड करना छोड़िए। गर्व तो उस बात का होना चाहिए जिसके लिये आपने प्रयास किया हो। जो तीर तुक्के से लग जाय, उसके बल पर अपने को गांडीव धारी अर्जुन समझना बेवकूफी है।
मैं मर्द हूं। अब इसी बात का घमंड करने वाले शायद यह नहीं जानते कि बस क्रोमोसोम में एक वाई का एक्स हो गया होता तो आज आप डोले दिखाने की जगह पानी पूरी वाले से एक्स्ट्रा तीखा और खट्टा पानी मांग रहे होते। और मैं स्त्री हूं, दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज। अगर ऐसा कोई अल्ट्रा फेमिनिस्ट भाव आपके मन में आ रहा हो तो ध्यान से सुनिए | अगर आपने अपना सेक्स चेंज ऑपरेशन करवा कर अपने आप को स्त्री बनाया है तो आपका गर्व करना कुछ जायज भी है वरना वही एक्स का वाई हो गया होता तो आपका निक नेम अलीशा की जगह आलसी राम भी हो सकता था। फिर फेसबुक पर आपकी एक फोटो को हजार लाइक नहीं, बीस फोटो के एल्बम पर कुल जमा तेरह लाइक मिलते, जिसमें पांच लाइक आपकी माँ के होते और तीन लाइक दूर के चाचा जी के, जो हर चीज़ पर लाइक बटन दबाना अपना अधिकार और कर्त्तव्य दोनों समझते हैं | । और आप अकेले में गूगल सर्च करते कि हाउ टू इंप्रेस ए गर्ल : एन इडियट्स गाइड।
लड़का लड़की ही क्यों? मैं गोरी हूं, सुन्दर हूं, लम्बा हूं, मेरी आंखें नीली हैं, मैं छह फीट का हूं और वह तीन फीट का, वगैरह वगैरह। सब तुक्के हैं, महज तुक्के। और तुक्के का क्या है कि हमेशा नहीं लगता। इस तुक्केवाद को छोड़ दें तो कितनी समस्या का समाधान चुटकी में हो जाय।
यही बात देश, धर्म, जाति, संप्रदाय, क्षेत्र, भाषा सब पर लागू होती है। आपका अपने देश पर गर्व करना वहीं तक जायज है जब तक आप दूसरे देश का सम्मान करें और इस बात तो मान कर चलें कि आपका आपके देश में जन्म सिर्फ एक रैंडम इवेंट या तुक्का है | आपका जन्म उस देश में भी हो सकता था जिसे आप निकृष्ट और पिछड़ा मानते हैं। फिर क्या उस देश के प्रति आपके वही विचार होते जो आज हैं।
यह तुक्कावाद की कसौटी उन तमाम स्थितियों पर मददगार हो सकती है जहां यह निर्धारित करना हो कि आपके विचारों का आधार सुदृढ़ है या नहीं। भाषा को ही लें। आपको अपनी भाषा पर गर्व हो सकता है लेकिन दूसरी भाषा से अपनी भाषा को श्रेष्ठ मानना महज तुक्केबाजी है। यकीन मानिए कि संसार का हर जीव अपनी भाषा को श्रेष्ठ मानता है। चाहे आपकी भाषा कितनी ही साहित्यिक ही, माधुर्य रस से सराबोर हो, एक वानर के प्रणय निवेदन के लिए किसी काम नहीं आ सकती । अब जो भाषा एक वानर के काम की नहीं, आप उस पर वानर को गर्व करने और उसकी अपनी भाषा को आपकी भाषा से कमतर मानने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। यह महज तुक्का है कि आपने उस क्षेत्र में जन्म लिया जहां आपकी भाषा बोली जाती है। अगर आप वानर होते तो आपको अपनी वानर वाली भाषा अच्छी लगती। अपनी भाषा पर गर्व करते समय यह तुक्का याद रख कर आप अनावश्यक गर्व या अन्य भाषा के प्रति अपमान के भाव से बच सकते हैं।
बाकी बची वह चीजें जो आपने अपनी योग्यता और मेहनत से प्राप्त की है। उस पर गर्व किया जाय या नहीं। सालों की मेहनत के बाद प्राप्त गुण संपत्ति बहुधा विनम्रता ही लाती है, गर्व नहीं। वाल्मीकि और कालिदास अपने संस्कृत ज्ञान पर गर्वित ना होकर विनम्र होंगे। ना ही अमेज़न के मालिक जेफ बेजोज किसी को अपना बैंक बैलेंस बताते होंगे | अल्बर्ट आइंस्टाइन शायद ही किसी को कहते होंगे कि जानते नहीं हो कि मैं कितना बड़ा वैज्ञानिक हूं। बाद सोच कर भी हंसी आ जाती है। हां उनकी दिए हुए सिद्धांतों को आधा अधूरा समझने के बाद आपमें गर्व जरूर आ सकता है।
लब्बोलुआब यह कि आपके अंदर का गर्व या तो एक तुक्कावाद है या आपकी अधूरी सफलता का द्योतक। आवश्यक है कि आप दोनों स्थितियों से बचें। नहीं तो आपकी स्थिति उसी व्यक्ति की तरह होगी जो लूडो के पासे में छह आने पर उसैन बोल्ट की तरह खुश हो रहा हो |
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