नैमिषारण्य में मंद मंद प्रवाहित समीर और पुष्पों की सुवासित संगति में बैठे होने के बाद भी शिष्य के ललाट पर पड़े हुए बल देख गुरु का भी चिंतित होना स्वाभाविक था। पूछ बैठे, क्या हुआ वत्स? किस दुविधा में पड़े हो? मन में ऐसी कौन से गुत्थी है जिसको सुलझाने में तुम्हारे चेहरे की मांसपेशियां उलझ गई हैं। मन में कोई जिज्ञासा हो तो निस्संकोच होकर पूछो।
शिष्य ने कहा गुरु आप तो अंतर्यामी हैं, हर समस्या , उसके कारण और निवारण सबका ज्ञान रखते हैं। मैं जानता हूँ कि अगर मेरे प्रश्न का उत्तर है तो सिर्फ आपके पास है। लेकिन सोचता हूँ कि यह प्रश्न पूछ कर कोई विवाद ना उत्पन्न हो जाये।
देखो पुत्र,चित्त को भयमुक्त करो और प्रश्न करो। जिज्ञासा मानव विकास का मूल है और विवाद की चिंता जिज्ञासा का सबसे बड़ा शत्रु है। शिष्य का प्रश्न जितना कठिन हो गुरु का उत्तर उतना ही गूढ़ होता है। परंतु ऐसा कौन सा प्रश्न हो सकता है जिसके बारे में सवाल तक पूछने पर विवाद हो सकता है?
गुरुदेव, यह नारीवाद क्या है? इस शब्द के अर्थ को वर्तमान परिपेक्ष्य में परिभाषित करिये। और नारीवाद नारीकल्याण के कैसे भिन्न है?
गुरु की मुस्कान प्रश्न सुन कर ही कुम्हला गई। फिर अपने आप को संभालते हुए धीरे से बोलने लगे। सुनो वत्स। नारीवाद दो शब्दों से मिलकर बना है। नारी और वाद। पहले नारी शब्द को लो। नारी शब्द नर शब्द में ई मात्रा के युग्म से बना है। ई ईश का प्रतीक है, इष्ट का प्रतीक है। नर में जब इष्ट का तत्व मिलता है तो नारी का परिनिर्माण होता है। नारी नर का वह संवर्धित रूप है जो इष्ट के निकट है। नारी नर से हमेशा उत्तम है इसीलिये नर जब अपने सर्वोत्तम को प्राप्त कर लेता है तो नारी के समकक्ष हो जाता है।
आपको बीच में रोकूंगा गुरुदेव। नर अपने सर्वोत्तम अवस्था को प्राप्त होने पर नारी के समकक्ष हो जाता है?? यह बात उदाहरण देकर समझायें। ऐसा कैसे हो सकता है? और दूसरा मेरा प्रश्न? अगर नारी इतनी ही महान और पूज्य है तो मेरा प्रश्न सुन आपका मुख ऐसे क्यों कुम्हला गया जैसे सूदख़ोर महाजन को देख किसान की मुस्कुराहट गायब हो जाती है।
वत्स। मृत्यु को काल कहते हैं, उससे भी बड़े हैं भगवान महाकाल। और जो उनकी छाती पर सवार हो जाये उसको वह शक्ति महाकाली कहलाती है। भारत वर्ष में कोई कुश्ती में अच्छा करे तो उसे कहते हैं वाह क्या पहलवान है। वही पहलवान जब किसी से पराजित न हो तो लोग कहने लगते हैं कि यह अब दारा सिंह जैसे हो गया। दारा का मतलब जानते हो ना? दारा का अर्थ है स्त्री। उदहारण अनेक हैं, हर क्षेत्र में हैं। थोड़ा अध्ययन और थोड़ा सा चिंतन करो स्वतः समझ जाओगे।
गुरुदेव। आपके दिये उदाहरण सटीक है लेकिन मेरा मूल प्रश्न और दूसरा प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है। मेरा ध्यान भटकाने का प्रयास न करें, उसके लिये तो समसामयिक मीडिया है। आप मेरी जिज्ञासा शांत करें बस।
शांत वत्स शांत। तुम्हारे प्रश्न का ही उत्तर दे रहा हूँ। तुम तो वैसे उत्तेजित ही जाते हो जैसे राहुल गांधी का एक ठीक ठाक भाषण सुन कर सुरजेवाला हो जाता है । तुमने पूछा था कि यह नारीवाद क्या है। मैने तुम्हें नारी का अर्थ समझाया। जब तक नारी का प्रश्न है , वो तो पूज्य है, श्रेष्ठ है। समस्या नारी शब्द से नही है। समस्या है यह शब्द वाद। वाद का मतलब है विवाद, वाद का अर्थ है बातें। तो नारीवाद का अर्थ क्या हुआ? नारीवाद का अर्थ हुआ, नारी को लेकर विवाद करना,नारी को लेकर बातें करना। मतलब जो नारी को लेकर ऐसे बातें करे जिससे विवाद हो तो वह व्यक्ति नारीवादी कहलायेगा और यह विवाद उत्पन्न करने की प्रवृत्ति नारी वाद कहलायेगी।
गुरुदेव। यह बात सुपाच्य नहीं लगती। नारीवाद का अर्थ है नारी को लेकर विवाद करने वाला। आप तो बिल्कुल एक पुरुषवादी पितृसत्तात्मक वराह की तरह बात कर रहे हैं।
वत्स। मैं एक मेल शौविनिस्टिक पिग या पुरुषवादी पितृसत्तात्मक वराह हूँ या नहीं यह तो नहीं पता लेकिन तुम एक आधुनिक नारीवादी अवश्य बन चुके हो। देखो तुमने नारी शब्द सुनते ही विवाद कर दिया। यह कहते ही गुरु के मुखारविन्द पर एक सरल मुस्कुराहट तैर गई।
क्षमा गुरुदेव। मैं दिग्भ्रमित से ही गया था। लेकिन आप ही मुझे आधुनिक नारीवाद के इस अंधकूप से बाहर निकालें।
देखो वत्स। अपने आप को संभालो। राजा राम मोहन रॉय जिन्होंने सती प्रथा का उन्मूलन करबे में अहम भूमिका निभायी, आज के पैमानों पर नारीवादी नहीं थे। उन्होंने सती प्रथा को बंद करवाया लेकिन क्या उससे पहले उन्होंने नारियों की सहमति ली। आ हेल्प ऑफर्ड विदाउट कंसेंट इस प्लेन हर्रासमेन्ट।। उनका नाम ही देख लो। राजा राम मोहन और रॉय। एक ही नाम में चार चार पुरुषवादी नाम रखने वाले नारीवादी कैसे हो सकते हैं।
गुरु।। यह क्या बोल रहे हो। आपके संवाद से मुझे व्यंग्य की बू आ रही है। क्या आप भी विवाद पैदा कर वादी और फिर नारीवादी बनना चाहते हैं??
न वत्स। में नारीवादी नहीं बन सकता। यह दाढ़ी बढ़ा कर कोई नारी वादी नहीं हो सकता क्योंकि मैं वैक्सिंग और थ्रेडिंग के दर्द से अनजान हूँ। वो दर्द समझे बिना आधुनिक नारीवादी कोई नहीं बन सकता। वैसे भी विश्व में इतना नारीवादी हैं कि अब ज्यादा नारीवादियों की आवश्यकता बिल्कुल भी नहीं है।
क्या गुरुदेव। अगर दुनिया में इतने ही नारीवादी हैं तो नारियों का कल्याण क्यों नहीं हुआ? पाकिस्तान में अगवा की गई किशोर लड़कियों के जबरन धर्मपरिवर्तन पर नारीवादी लोग क्यों चुप हैं?
वत्स।। वो चुप नहीं है, वे व्यस्त हैं सोशल मीडिया पर लड़ने और लोगों को नारीवाद सिखाने में। जब यह कार्य सम्पन्न हो जाएगा तो उन लड़कियों के बारे में भी सोचा जायेगा।।
गुरुदेव आप धन्य हो। यह व्याख्यान देकर जो आपने मुसीबत मोल ली है, उससे आप ही निपटो। मैं चला। प्रणाम गुरुदेव।
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