जिन लोगों को बालाकोट पर हमले के सबूत चाहिए वो मांगते रहें। कुछ बुध्दिजीवियों का कारुणिक विधवा विलाप ही सबसे बड़ा सबूत है। अश्रु धारा नखविच्छेद की परिणीति नहीं होती बल्कि हृदय पर लगे चोट और इसी हृदय से जुड़ी शिराओं में प्रवाहित रुधिर के दृष्टिगत होने पर होती है। सौरभ कालिया के साथ अमानवीय और बर्बर व्यवहार करने वाले अगर कमांडर अभिनन्दन को बिना शर्त ससम्मान रिहा करते हैं तो यह शत्रु की भलमनसाहत से ज्यादा उनकी विवशता परिलक्षित करती है। पापी मनुष्य अगर ईश्वर को याद करने लगे तो उसके सद्पुरुष बनने की जगह उसके भयाक्रांत होने की आशंका ज्यादा होती है। मसूद अजहर की मृत्यु आपको असामयिक लग सकती है तो हो सकता है कि वर्तमान समय और कालक्रम के कई पहले आपकी दृष्टि के छूट गए हैं। आँखें खोलिये, शत्रु के हताहत होने के प्रमाण आपको दिखने लगेंगे।
रही बात तस्वीरों की और डिजिटल प्रमाणों की, एक बात का स्मरण रखिये कि चोट मारना कूटनीति नहीं है, कूटनीति है सही समय पर चोट करना। राजनीति और कूटनीति में ताश के खेल की तरह अपने पत्ते तब खोले जाते हैं जब सामने वाला अपने सारे पत्ते खोल चुका हो। कभी कभी अपने कमजोर पत्तों को भी छुपा कर विरोधी के मजबूत पत्तों के किले को एक हड़बड़ाहट का भाव पैदा कर ढहाया जाता है। क्या कारण है कि धोनी खेल को अधिकतर आखिरी ओवरों तक ले जाता है। ताकि मानसिक दवाब से विरोधी भूल करे और उसका लाभ आखिरी वार करने की योजना में मिले। जो लड़ाकू विमान रात्रि के अंधेरे में वार कर सकते हैं, उसमें एक तस्वीर लेने की तकनीक तो होगी ही। आखिरी वार आखिरी ओवर में किया जाता है और किया भी जाएगा। आखिरी गेंद पर लगा हुआ छक्का सिर्फ खेल में नहीं बाकी विरोधी की मानसिकता पर भी विजय दिलाता है। आखिरी ओवरों का इंतज़ार करिये, आपकी जीत का रोमांच और विरोधियों का रुदन दोनों ही ज्यादा होंगे।
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