मसूद अजहर को चीन अगर आतंकवादी नहीं मानता, तो ना माने
। उससे हमारा सरोकार उतना ही होना चाहिए जितनी उसकी आवश्यकता है। चीन की अपनी अलग विदेश नीति है, पाकिस्तान उसका एक सामरिक और व्यापारिक सहयोगी है, वह उसका खुले मंच पर विरोध नहीं करेगा। लेकिन वो ज़माना गया जब किसी देश की विदेश नीति स्थायी मित्र या स्थायी शत्रु वाले सिद्धांत पर चलती थी। आज की विदेश नीति का एक ही सिद्धांत है और वह है स्थायी राष्ट्रीय हित। बालाकोट पर बम गिराने के बाद चीन ने यह कभी नही कहा कि हम भारत को इस होली पर पिचकारी और रंगीन टोपियां नहीं बेचेंगे। और ना ही उसने पाकिस्तान के समर्थन में कुछ कहा। कल को अगर भारत ने एक और सामरिक कदम में ओसामा की तर्ज़ पर मसूद को भी मार गिराया तो भी आपकी दीवाली के झालर, टिमटिम करने वाले बल्ब और लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा भी चीन से ही आएंगे।
मसूद अजहर हमारा गुनाहगार है, उससे कैसे निपटना है वो हम लोगों को सोचना होगा। अमेरिका ने ओसामा को मारने से पहले चीन से नहीं पूछा था कि ओसामा ग्लोबल आतंकवादी है या क्षेत्रीय। आपरेशन थंडर बोल्ट से पहले इज़राइल ने किसी की इजाज़त नहीं ली। चीन से यह आशा रखना कि वो पाकिस्तान का दाना पानी बंद कर दे कुछ ऐसा है कि आप अपने गांव के बनिये को कहें कि भैया फलां आदमी को राशन मत देना क्योंकि उसके मुझे गाली दी है। भाई तुम्हें गाली दी है तो तुम निपटो ना, बनिया न ही दूसरे आदमी को राशन बेचना बंद करेगा और न ही तुम्हारा बनिये का राशन न खरीदना कोई स्थायी समाधान है। याद रखिये कि बालाकोट की बमबारी के कुछ दिन बाद ही समझौता एक्सप्रेस फिर चल पड़ी और उसके कुछ दिनों बाद ही करतारपुर कॉरिडोरके लिये पाकिस्तान और भारत की वार्ता प्रारम्भ हो गई।
हम इज़राइल से भी संबंध रखते हैं और फिलिस्तीन से भी हमारे रिश्ते मित्रवत ही हैं। शीत युद्ध और आयरन कर्टेन के समय चलने वाली नीतियां आज के बहुध्रुवीय विश्व में प्रासंगिक नहीं हैं। चीन से फ़ोन जरूर खरीदिये लेकिन जब डोकलाम में चीन अपनी आँखें तरेरे तो पूरे जोश के साथ उसकी आँखों में आँखें डाल कर बात करिये जब तब वो पीछे न हटे। मसूद अजहर को चीन आतंकी नहीं मानता , दाऊद को लेकर तो उसकी कोई आपत्ति नहीं है।फिर आपने उसको अब तक क्यों नहीं पकड़ा। मसूद अजहर वाले मामले में चीन को बेवजह तूल दिया जा रहा है। चीन को बार बार कोसना हमारी कूटनीतिक विफलता है और चीनी सामान के बहिष्कार की धमकी एक बन्दरघुड़की से ज्यादा कुछ नहीं। समय है कि हम अपनी लड़ाई खुद लड़ें और दूसरों से अनपेक्षित आशा न रखें। हाँ अगर कोई देश हमारा पक्ष मानता है तो उसका स्वागत होना चाहिये, लेकिन सिर्फ इस चीज़ के मुद्दे पर किसी देश से कूटनीतिक रिश्ते को बंधक नहीं बनाया जा सकता। चीन से आप प्यार कर सकते हैं या नफरत, पर उसे दरकिनार नहीं कर सकते। नाटक चंद्रगुप्त में चाणक्य के माध्यम से जयशंकर प्रसाद लिखते हैं कि हे सेल्युकस । हम आर्यावर्त्त के लोग युद्ध लड़ना जानते हैं द्वेष रखना नहीं।
चीन से अगर युद्ध लड़ना है तो हजारों ( वर्गमील का) कारण मौजूद हैं। चलिये पहले उस वजह का निपटारा करते हैं। अगर नहीं तो फिर मसूद का बहाना बना कर कोप भवन में बैठना बन्द करिये। राम के वंशज हैं तो वीरोचित और बुद्धिमत्ता पूर्ण व्यवहार करिये, कैकेयी बन कर रूठना और श्राप देना बंद करिये।
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