Friday, April 5, 2019

ढोल और शिकार

शिकार के शौकीन राजा रजवाड़े पाने साथ एक पूरी टोली लेकर चलते थे। ढोल नगाड़े बज कर जानवरों को डरा जंगल में एक और इकट्ठा किया जाता था। वन्य जीव ढोल से डर जाते और दूसरी ओर जहां से आवाज़ न आ रही हो, पूरी शांति का माहौल हो राजा साब अपनी दुनाली में कारतूस भरे बैठे रहते यगे। जानवर ढोल के शोर से डरता था जबकि असली खतरा शोर की दिशा में नहीं शांत दिखने वाली दिशा में होता था। जानवर हमेशा इस व्यूह रचना को समझने में नाकाम रहते और राजा साब का काम आसान हो जाता। जिसदिन जानवर को यह समझ में आ जाये कि ढोल बजा कर उसे डराने वाले उसके हितैषी नहीं हैं और एक बार इस झूठ का प्रपंच फैलाने वालों को हूल देने की जरूरत है, उनका शिकार ही बंद हो जाये। अब राजा साब में इतनी हिम्मत कहाँ कि सामने आयें और खुल कर शिकार करें। इससे जान का खतरा भी है और मेहनत भी ज्यादा है। शिकार करने से पहले जानवरों को डराना जरूरी है इससे शिकार में सहूलियत रहती है।

जब भी बिना मौसम के शोर मचे और एक दिशा से ढोल बजने लगे तो समझ जाएं कि शिकारी बाबा को शिकार जुटाने वाला पारिस्थितिकी तंत्र सक्रिय ही चुका है। अब शोर भी इतना तेज है आप बेजुबानों को समझा भी नहीं सकते। उनके कान तो भागो,बचो और आसमान गिरा की आवाजों से भर दिए गए हैं। बेजुबान भले पूछे भी कैसे कि भैया हर बर्फ आसमान गिरनेकी बात करते जो आज तक आसमान गिरा तो नहीं। फिर बीच बीच में डराने क्यों आ जाते हो? और जिन जीवों ने तुम्हारी चेतावनी मान कर दूसरी दिशा का रुख किया वो कहाँ हैं कैसे हैं ?

जानवर पूछते नहीं, ढोल वाला  शोर कम होता नहीं और इसी की आड़ में शिकार रुकता नहीं,अनवरत चलता रहता है। अभी भी चल रहा है,लेकिन शिकार होते जानवर की चीख भी नगाड़ों की आवाज में दब गई है। शिकार के बाद जितना ज्यादा शिकार होगा, राजा साब की जूठन चाटने इन ढोल वालों की किस्मत में उतना ही भोजन बचा होगा। शिकार हो जाने दीजिए, सबको शिकार में हिस्सा मिलेगा। #महापर्व

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