सज्जनता और महत्वाकांक्षाओं का मिलन बड़ा ही अस्वाभाविक होता है। महत्वाकांक्षा का सीमेंट निष्ठुरता की ईंटो को जोड़ कर एक प्रासाद बना सकता है। सज्जनता की नरम मिट्टी को महत्वाकांक्षा का सीमेंट नही रास आता। सज्जनता की मिट्टी का गोला भले ही धूप में सूख जाए,कठोर हो जाये, दुखी हृदय से निकली आँसू की दो बूँदे उसे नर्म कर फिर से कमजोर कर देने के लिये काफी हैं। महत्वाकांक्षा का सीमेंट आँसुओं की नमी पाकर कुछ और मजबूत ही हो जाता है। सज्जन लोग राजनीति में क्यों नहीं आते या टिकते, शायद इसका कारण भी यही है। निष्ठुरता हमेशा एक अवगुण नहीं है, शायद बड़ा बनने के लिए निष्ठुर होना आवश्यक है।
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