विचारों का मुक्ताकाश | कुछ अट्टहास और ढेर सारी बकवास ||
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Sunday, August 31, 2025
अब क्या बेच कर सोएं?
कहते हैं पुराने ज़माने में लोग घोड़े बेचकर सो जाते थे। मुहावरे की उत्पत्ति का सही ज्ञान तो नहीं है , लेकिन ऐसा लगता है कि मध्यकाल में जब युद्ध से लौटे अपना सैनिक घोड़ा बेच देते, मतलब वापस युद्ध में जाने का बुलावा नहीं आएगा। फिर तो बस चैन की नींद, आराम की सांस।
आज के नौकरीपेशा मिडिल क्लास आदमी के पास बेचने के लिए घोड़ा तो क्या, एक ढंग की नींद तक नहीं बची।
सुबह की शुरुआत कभी राग भैरव से हुआ करती होगी , आज कल मोबाइल के अलार्म की भारी आवाज से होती है। मोबाइल को तो चुप करवा भी दें, बीवी को कौन चुप करा सका है आज तक।
"उठो! देर हो रही है!" — पत्नी की आवाज़।
"हाँ हाँ… उठ गया," आदमी आँखें मलता है।
पर असली अलार्म तो मोबाइल में पड़ी वो मैसेज टोन है।
"Morning team, zoom meeting at 9 AM! मोबाइल खोलते ही 3 मिस्ड कॉल और 20 नए मैसेज। आदमी मैसेज खोलने से वैसे ही डरता है जैसे बम निष्क्रिय करने वाला डर डर के लावारिस सूटकेस खोल रहा हो।
हर नया मैसेज दिन भर का प्लान , अगले हफ्ते का प्लान या अगले एक महीने का प्लान खराब कर देता है।
आदमी बड़बड़ाता है, कोई बात नहीं। अगले के अगले महीने छुट्टी पर जाऊंगा।
ऑफिस जाते वक्त भी आराम रहे ऐसी गुंजाइश भी कम ही रहती है। ट्रैफिक जाम में फँसा है। एक हाथ में स्टीयरिंग, दूसरे में मोबाइल।
बॉस का कॉल:
"आज वाला रिपोर्ट रेडी है न? जो चेंजेज बताए थे उसको करके जल्दी भेजो, मुझे अपने ऊपर भी भेजना है।" आदमी सोचता है यह रिपोर्ट ऊपर भेजने के चक्कर में मैं खुद ऊपर न चला जाऊं। फिर भी बेचारा दम साधकर सधी हुई आवाज में शांति से बोलता है। "हाँ सर, गाड़ी के बोनट पर ही बना रहा हूँ, 15 मिनट में भेजता हूं।…"
ऑफिस में पहुंचते ही डेस्क पर बैठते ही फाइलें ऐसे झपटती हैं जैसे पुरानी प्रेमिका और झल्लाई बीवी एक साथ उससे लड़ रही हों।—"मुझे भूल गए? मेरे लिए वक्त कब निकालोगे। क्या सोचते हो मुझसे भागकर कहाँ जाओगे? तुमसे निकम्मा आदमी हमने आज तक नहीं देखा।"
शाम को घर लौटते वक्त मोबाइल की बैटरी 2%, आदमी की बैटरी 0%। घर पहुँचते ही बच्चों की फीस, बिजली का बिल और पत्नी का डायलॉग—
"तुम्हें घर के लिए टाइम ही कहाँ मिलता है?"
आदमी सोचता है—"ऑफिस वालों के लिए घर पर हूँ, घर वालों के लिए ऑफिस में। और सच्चाई में कहीं का नहीं! धोबी का कुत्ता तो फिर भी ठीक होगा, यहां तो कुत्तों का धोबी वाली हालत हो रही है।
देर रात जब आदमी बिस्तर पर गिरता है। तभी मोबाइल में व्हाट्सएप पिंग करता है—"Just a small update required tonight! VERY URGENT!!!"
वो झल्लाकर कहता है—"युद्ध में भी 'सीज़फ़ायर' होता था… यहाँ तो सोने तक की छुट्टी नहीं!"
पत्नी हँसकर बोलती है—"घोड़ा बेचकर सो जाओ!"
वो करवट बदलते हुए बुदबुदाता है—"अपने पास घोड़ा होता तो बेचता… अब तो गधा बन चुका हूँ और गधे भला क्या घोड़े बेचेंगे।
अब सवाल यही है कि जब आदमी अपनी नींद, चैन, आत्म-सम्मान और अगली तनख्वाह तक बेच चुका हो, तो आखिर क्या बेचकर सोए?
शायद नई कहावत बनानी पड़े—
"आदमी बेच कर सो जाओ।"
पर मुसीबत ये है कि आज आदमी बिकता भी है तो किस्तों पर। और ईएमआई चुकाते-चुकाते आदमी खुद भले चुक जाय, लोन नहीं चुकता।
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