Saturday, August 23, 2025

परदा है... परदा है परदा...

परदा भी बड़ा दिलचस्प आविष्कार है। किसी ने कपड़ा लिया, डोरी पर टांगा, और अचानक ही ज़िंदगी रहस्यमयी हो गई। नाटक हो या हकीकत — परदा उठते ही अभिनय शुरू, परदा गिरते ही असली चेहरे वापस।

पर्दाफ़ाश करने वालों को बड़ा शौक़ है। उन्हें लगता है कि हर परदे के पीछे कोई गुप्त साज़िश पक रही है — जैसे बिरयानी के भगोने में मसाला। असल में वे चाहते हैं कि सब नाटक करें। जब तक परदा गिरा है, लोग अपनी पुरानी चप्पल पहनकर घूमते हैं; जैसे ही परदा उठता है, वे चमचमाते जूते में सजधजकर बाहर आ जाते हैं।

और फिर हैं पर्दानशी लोग। जो कहते हैं, “हम परदे के पीछे हैं… मगर हमें मत देखो, लेकिन परदे के पीछे से हम आपको जरूर देखेंगे ।” यह वैसा ही है  कि चचा ट्रंप कहें कि हम पुतिन से तेल खरीदेंगे लेकिन अगर तुम खरीदो तो तुम्हारा तेल निकाल देंगे।

फैशन जगत का भी अपना नज़रिया है। Devil Wears Prada जैसी फिल्म साफ़ बताती है — शैतान भी अगर फैशन में आए, तो परदा पहन लेता है। प्राडा का परदा तो ऐसा होता है कि उसमें झाँकने के लिए वीज़ा और आधार दोनों चाहिए। सोचिए, अगर आम घरों में ऐसे परदे लग जाएँ, तो पड़ोसी भी यह तय नहीं कर पाएंगे कि आप चाय पी रहे हैं या दुनिया की अर्थव्यवस्था हिला रहे हैं।
राजनीति में तो परदा कभी छुट्टी पर नहीं जाता। कोई बोले तो कहा जाता है — “देखो, पर्दे के पीछे कुछ है।” कोई चुप रहे तो कहा जाता है — “देखो, पर्दे के पीछे बहुत कुछ पक रहा है।” लोकतंत्र में परदा एक तरह से रिमोट कंट्रोल है — बस चैनल बदलते रहिए, शो चलता रहेगा।

और अब आते हैं उस पुराने गीत पर —
“पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ…”
शायद गीतकार ने जनता को चेतावनी दी थी — “देखो, अगर पर्दा उठाया, तो नाटक शुरू हो जाएगा, और टिकट भी खुद खरीदनी पड़ेगी।”

लेकिन याद आता है एक और गीत कि "पर्दानशी को बेपर्दा न कर दूं तो अकबर मेरा नाम नहीं है"। जहां एक तरफ दूसरे के परदा हटा देने के दंभ भरने वाले अपने आप को अकबर कहते रहे हैं वहीं हालिया सुर्खियां बताती हैं कि अकबर महान के ऊपर भी पड़े परदे को खींच डालने की सारी तैयारी कर ली गई है।

तो जनाब, परदा गिरा रहने दीजिये या उठा दीजिए। कुछ भी करिए, परदा है तो कुछ न कुछ मनोरंजन होता ही रहेगा। क्योंकि परदा है तो जिंदगी गर्दा है। 

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