Sunday, November 28, 2021

टेंपू की पिछली सीट के सुख की क्षणभंगुर माया

टेंपू में पीछे बैठे पुरुष का सुख उतना ही क्षणिक होता है जैसे कमल दल पर पड़े तुहिन कणों का जीवन। सूरज की किरणें आई नहीं कि ओस की बूंदें अपने कमलासन को छोड़ने को विवश हो जाती हैं।

टेंपू की पिछली सीट पर बैठे पुरुष को कब कह दिया जाय कि "भैया आप आगे आ जाओ, लेडीच बैठ जाएगी वहां", महादेव भी नहीं बता सकते। 

राही मनवा आगे वाली सीट की चिंता क्यों सताती है, ड्राइवर ही अपना साथी है।
पिछली सीट तो है एक छांव ढलती, आती है जाती है, 
ड्राइवर ही अपना साथी है।

Friday, November 26, 2021

Fly doves but feed hawks too

26/11 is not an ordinary date. While we cherish one of the most treasured achivements of post independence india if not the most treasured achivement, i.e. our constitution, we also remember that biggest terrorist attack on our civilians post independence.

Today is the day to remember that there should be no compromise on internal and external security. Gone are the days of traditional warfare where armed forces used to declare war and fight in open with integrity and dignity. Now warfare has transformed and expanded into cyber, economic, social, political turfs. Society which fails to recognise these threats proactively is doomed to perish and suffer. 

Our threat centers are not very far, it's across the border and inside our homelands. It's all desirable and perfectly fine to fly the peace doves but equally more important to keep feeding our hawks to pick on any potential threat.

We might have hung one Kasab, but Kasab building mechanism is on as usual. May be with higher vigour than ever. 

 These are very important things relevant to everyone. In case you feel that you are happy in your bunglow with a plum job and kids studing in a nearby school, and hence need not worry about these matters. Please remember that this life and it's amenities are available given the guarantee to a safe and stable nation. If nation is not safe, these things vaporise like water on a hot pan once nation falls to barberians. In case you can't visualize it, image yourself as a women University lecturer from Kabul, who has not got her salary in months, her kids are banned from attending School and her big bunglow in Kabul is not worth a hut anymore.

Let we forget. And yes, when any player  says that sportsmanship has won, most likely he has lost the match. I get the same feeling when I hear the often repeated but irritating phrase that terrorists can't beat the Spirit of Mumbai. Any reference to this 'Spirit of Mumbai'  only means that we have suffered another attack and are nonchalant about yet another bastards putting their feet on our land . 

Jai Hind..

Thursday, November 18, 2021

हिंदू ना होने की दुविधा

आज सुबह उठा तो लघुशंका करने के बाद मन में एक शंका बैठ गई। शंका होने लगी कि आखिर मैं हिंदू हूं कि नहीं। अगर हूं भी तो कितना हिंदू हूं। अगर हिंदू हूं तो कैसे प्रमाणित करूंगा? अगर हिंदू हूं भी तो आखिर किस कैटेगरी का?

मेरे पास रामनामी चादर ओढ़े कोई फोटो नही है और ना ही सोशल मीडिया पर किसी गुफा में बैठे ध्यानमग्न मेरी कोई तस्वीर वायरल हुई है आजतक। महीना सावन का है या अगहन का, मुझे पता नहीं। उतनी ही बात हो तो शायद हिंदू बन भी जाऊं, लेकिन मैं तो यह मानता हूं कि आजादी 1947 में मिली। मैंने आजतक ना ही तेजोमहालय वाली पोस्ट किसी को फॉरवर्ड की है और ना ही मेरे फोन पर सुदर्शन न्यूज़ का ऐप इंस्टॉल्ड है। हां, शाखा मैं गया हूं, काफी बार गया हूं, लेकिन पचासों बार नजदीकी स्टेट बैंक की शाखा में जाने के बाद भी कभी सही समय पर नहीं पहुंच पाया। जब सुबह पहुंचा तो पता चला लंच के बाद आना है और लंच के बाद पहुंचा तो पता चला कि बड़े बाबू लंच के पहले ही फॉर्म जमा लेते हैं। एक बार सही समय पर पहुंच कर कतार में लग भी गया तो काउंटर पर पहुंच कर दो बातें पता चली, पहली यह कि मेरा तो काउंटर ही गलत है और दूसरा होम लोन लेने के लिए सारे डॉक्यूमेंट्स के साथ जो मैंने अपने जन्मपत्री लगाई थी उसमें मेरी कुंडली में मांगलिक दोष निकल आया है, अतः मुझे लोन नहीं मिल सकता। खैर, यह बातें फिर कभी। अब जो व्यक्ति आज तक सिर्फ बैंक की शाखा में गया हो, इतने बड़े अपराध बोध वाला व्यक्ति हिंदू कैसे हो सकता है। यही शंका दूर करते करते वापस से लघु शंका लग आई।

बाथरूम में जाकर बैठा तो देखा मेरा तो टॉयलेट तक हिंदू रीति से नहीं बना बल्कि अंग्रेजों के द्वारा बनाया गया है। मैं निराशा के अंधकार में डूबता सा चला गया। आगे खयाल आया कि हनुमान चालीसा के नाम पर "भूत पिशाच निकट नहीं आवै" वाली लाइन के अलावा कुछ खास याद नहीं। एक बार ऑफिस में झल्लाए हुए बॉस को अपनी ओर आते देख कर यह लाइन मुंह से निकल गई थी तो बड़ी आफत आ गई थी। उसके बाद तो सार्वजनिक मंचों या सार्वजनिक सभाओं को छोड़िए, अपने बेडरूम में भी यह लाइन पढ़ने से डरता हूं। हिंदू बनने के लिए एक सांस में हनुमान चालीसा बांच जाने वाले तो कतई मुझे हिंदू नहीं मानेंगे।

इसके बाद शौचालय से निकल कर बाहर आया तो अर्धांगिनी ने पूछा कि ऐसे मुंह क्यों लटकाए हुए हो। मैने कहा कि मैं अपनी पहचान को लेकर परेशान हूं। हिंदू होने के लिए आपको अपना गोत्र न केवल याद होना चाहिए बल्कि आपको सबको बताना भी चाहिए। मुझे तो शादी के वक्त पहली बार मुझे अपना गोत्र का पता चला था, जो अब वापस से भूल भी गया हूं। बचपन में कराए गए उपनयन संस्कार में मिले पवित्र धागे को बाथरूम जाने वक्त ना कान के ऊपर स्थान देना याद रख पाता हूं और ना बाहर आने के बाद अपने जैकेट के ऊपर उसे कभी स्थान दिया। आखिर मैं कैसा हिंदू हूं? 

आखिर कोई निकृष्ट हिंदू ही होगा जिसने आज तक" विष्णु माता की जय का जयकारा " नहीं लगाया। विष्णु माता की जय तो छोड़िए। अब जब ऊपर के सारे प्रकार के हिंदुओं में अपने को शामिल नहीं पाया तो बड़ी आशा से मैंने अपने आप को अगली कैटेगरी में फिट करने की कोशिश की। फिर हाथ में निराशा ही हाथ लगी। ना ही मैंने आजतक I am ashamed as a hindu वाले ट्वीट किए हैं, और ना ही आजतक दिन में कन्या पूजन और रात में छी छी वाला काम किया है। अगर दिन में कन्या पूजन करने लगा तो या तो जोरू का गुलाम कहलाऊंगा या सड़क पर एक और पापा की परी की संख्या बढ़ाऊंगा। दोनों ही स्थिति मुझे नागवार गुजरती है। जिंदगी भर ब्वॉयज स्कूल, बॉयज होस्टल और इंजीनियरिंग कॉलेज की जिंदगी जीने के बाद लड़कियों के सामने मेरा कॉन्फिडेंस तब तक ही रहता है जब तक लड़की 2D में हो। 3D कन्याओं के सामने मेरी ऐसे ही फटी रहती है। इसीलिए इस वाली हिंदू कैटेगरी में भी सम्मिलित होना संभव नहीं लग रहा।

बालकनी में बैठा बैठा सोच ही रहा था कि सामने से एक अर्थी जाती दिखाई दी। बरबस ही हाथ प्रणाम की मुद्रा में चले गए। फिर देखा कि तुलसी पिंडे की मिट्टी सख्त हो गई है , पिछले हफ्ते बाहर रहने के कारण उसमें खुरपी नहीं चला पाया था। जल्दी से घर से खुरपी लेकर आया तुलसी के आस पास की मिट्टी पलट दी। फिर पास ही रखे मिट्टी के बर्तन को पानी से भरा ताकि बालकनी में रहने वाली हमारी सबसे नज़दीकी पड़ोसन गौरेया को पानी की दिक्कत ना हो। इतने में देखा कि मौसम सुहाना हो रहा है। बारिश शुरू हुई, देवी जी को आवाज लगाई कि थोड़े प्याज के पकोड़े बना दो, कितना अच्छा मौसम हो रहा है। अंदर से आवाज आई, पापी कहीं के !! आज एकादशी है तो कोई लहसुन प्याज नहीं बनेगा। और यह पूजाघर का टेबल उठा कर बाहर कर दो, मुझे अल्पना बनानी है। पूजा घर का भारी टेबल और उसपर रखे सामान को उठा के जो पसीना निकला उसके साथ ही नासपीटे न्यूज़ चैनल्स की वजह से पैदा हुई हिंदू ना होने की शंका भी कहीं मुझसे कहीं दूर निकल गई।

Tuesday, November 16, 2021

चोर और उससे जुड़े अन्य विशेषण

‌एक विशेषण है चोर। चोर वो है जो दूसरे का सामान उठा ले वो भी बिना पूछे। दूसरे की कॉपी से नकल कर ले नजर बचा के। रात के अंधेरे में आपकी कार ले उड़े या आपकी साइकिल का ताला तोड़ उठा ले जाय। लेकिन चोर एक अच्छा विशेषण है। चोर सामान्यता तब कहलाता है जब वो या तो चोरी करता हुआ पकड़ा जाय या चोरी किया हुआ सामान उसके यहां बरामद हो। मतलब यह कि चोर प्रकृति से एक रिस्क टेकर होता है। एक गैंबलर, दूसरों का माल़ उड़ा ले जाने के लिए प्लानिंग करता है, हर खतरे को भांपता है और उसके लिए काट ढूंढता है। लेकिन चोर की बुरी हालत होती है उसके पकड़े जाने पर। जब दुनिया जान जाती है कि वो चोर है।
पकड़ा गया चोर दुनिया का सबसे दयनीय इंसान है। उसके चेहरे पर जो भाव आते हैं उसी भाव से एक विशेषण बनता है चोट्टा। चोट्टा मतलब जो देखने में ही पकड़ा गया चोर टाइप दिखे। कहीं जा रहा हो तो लगे कि चोरी करने जा रहा हो। दूसरों के सामान को ऐसे निहारे जैसे उड़ाने की योजना बना रहा हो। चोट्टा चोर जैसा दिखता है , उसका व्यवहार चोर जैसा होता है लेकिन कोई जरूरी नहीं कि वो चोर ही हो। सामान्यतः चोर कुछ चोरियां करने के बाद पकड़ा जाता है, पकड़े जाने के बाद अपने पिछले गुनाह कबूल करता है। अपनी चोरी के कारनामों और नए नवेले तरीकों की वजह से कुछ वाहवाही भी पाता है, चोट्टा ऐसा कुछ नहीं कर पाता। बेचारा सिर्फ गाली खाता है, लेकिन चोर बनने के बाद जो फायदे होते हैं उनसे वंचित रहता है। 
चोट्टा से नीचे भी एक कैटेगरी है। उसको चोरकट कहते हैं। अब चोरकट वो है जो चोर बनने के कोशिश करे लेकिन हर बार पकड़ा जाय। चोट्टा जैसी शक्ल लेकर घूमता फिरे और यह सोचे कि लोग उसको न चोर समझें और न चोट्टा कहें। ऐसे वेवकूफों को ही चोरकट कहा जाता है जो चोरी पकड़े जाने पर भी अपनी सफाई देते रहें और समझें कि सारी दुनिया तो बस उसकी सफाई सुनते ही कहेगी कि बेटा तुम चोर नहीं हो सकते। चोट्टा सब ही है जो तुमको चोर कहता है। बताओ इतना बड़ा आदमी हो तुम, चोर कैसे होगे। 

तो बात ये है कि हर चोरकट चोरी करना चाहता है लेकिन पकड़ा कर चोट्टा वाली शकल बनाकर अपने आप को चोर घोषित होने से बचाने से कोशिश करता है। पर चोरी वाले धंधे में यही तो दिक्कत है कि कब बुरा वक्त आ जाए पता ही नहीं चलता। चाहे पांच करोड़ की घड़ी पहन लो, चोर को चोट्टा बन कर चोरकट वाली हरकत आज ना कल करनी ही पड़ती है। 

Wednesday, November 10, 2021

छठ का महापर्व

याद आता है गंगा किनारे बसा साइंस कॉलेज का होस्टल केवेंडिश। होस्टल से बगल की जगमग सड़क और उससे गुजरता छठ व्रतियों का हुजूम। साउंड सिस्टम पर बजती छठ लोक गीतों का अनवरत सिलसिला। उस समय हम लोग आईआईटी की तैयारी कर रहे थे, इसलिए घर नहीं गए छठ पूजा में। छठ के पास आते ही पता चला कि होस्टल का मेस बंद रहेगा क्योंकि महराज जी छठ के लिए घर गए हुआ हैं। मेस चलाने वाले को हम महराज कहा करते थे। 

दो तीन दिन तक तो हम मैगी खाकर किसी तरह काम चलाते रहे। एक सीनियर से पूछा कि भैया ऐसे मैगी खाकर कैसे काम चलेगा। उसने कहा कि आज शाम की अर्घ्य है, कल सुबह इतनी व्यवस्था हो जाएगी कि पूछो मत। मैं समझ नहीं पाया। अगली सुबह वाली अर्घ्य के साथ ही छठ का समापन होने वाला था। केवेंडिश होस्टल के बगल वाली सड़क पर सुबह से ही रौनक थी। हमने भी उस सुबह एचसी वर्मा और केसी सिन्हा की किताबों को छठ की छुट्टी दी और सड़क पर खड़े होकर वो अनुपम नजारा देखते रहे। 

हमारे सीनियर भी साथ ही खड़े थे। हमने कहा कि भैया कल वाली बात याद है या नहीं। कि आज भी मैगी का ही कलेवा चलेगा। उसने कहा एक मिनट रुको। और वो अंदर जाकर एक साफ बेडशीट ले आया। और चादर को होस्टल के सामने बिछा कर खड़ा हो गया। सुबह की अर्घ्य देकर लौट रहे छठ व्रतियों का हुजूम केवेंडिस होस्टल के सामने से गुजरने लगा। बिना किसी से कुछ कहे हर बांस के सूप और दौरे से छठ का प्रसाद हमारे बिछाए हुए बेडशीट पर हरेक परिवार की तरफ से हमारे लिए छठ का प्रसाद दिया जाने लगा। मिनटों में ही हमारे लिए ठेकुआ , केतारी, सिंघाड़ा, नारियल, मूली का ढेर लग गया। हमने सीनियर की तरफ देखा, सीनियर के चेहरे पर मुस्कान थी। उसकी बात सच हो गई थी। छठ मैया की कृपा से हमें मैगी की एकरस जिंदगी से सीधे ठेकुआ की मीठी बयार मिली थी। 

छठ का महापर्व जिसके प्रसाद के लिए हाथ फैलाने में भी कोई शर्म नहीं, हर कोई मानो एक।बराबर हो जाता है। जिसके दावरे और सूप को सर पर उठा कर चलने में गर्व महसूस हो। छठ का पर्व जिसके लिए छठ व्रतियों के लिए सड़कों पर झाड़ू लगाना पुण्य समझा जाता है। एक अनूठा पर्व जिसकी कोई मिसाल नहीं।

सबको छठ की शुभकामनाएं।।