नब्बे के दशक आते आते पंचम दा को काम मिलना करीब करीब बंद हो चुका था। ना किसी नई फिल्म में काम मिलता था और न ही पुराने किसी दोस्त से कोई खास संपर्क बचा था। ऐसे वक्त में उनके हाथ में एक फिल्म आई, 1942 ए लव स्टोरी। ऐसे बुरे वक्त में उन्होंने "यह सफर बहुत है कठिन मगर " ,कुछ ना कहो" जैसे गीत बनाए। जिंदगी के ऐसे वक्त पर जब उनके लिए सब कुछ करीब करीब समाप्त हो चुका था, उनके लिए बहुत आसान था, हार मान के गुमनामी की मौत मरना। लेकिन उन्होंने अपने आप को इस गुमनामी की जेल से बाहर निकाला और जाते जाते खुद को अमरत्व प्रदान करने वाली धुनें बना कर चले गए।
यह सुरंग किसी भी रूप में हो सकता है। पंचम दा के लिए यह उनके अमर संगीत के रूप में था।
हम में हर कोई कभी न कभी किसी ऐसी स्थिति में होता है जब परिस्थितियों की ऊंची ऊंची दीवारों के बीच आपको लगता है कि अब कोई रास्ता नहीं बचा। ऐसे वक्त पर ही सुरंग बनाने का कार्य आपको लड़ने का साहस देता है । यही अदम्य विश्वास कि सारे रास्ते तब तक बंद नहीं होते जब तक आप रास्ता बनाने का साहस रखते हैं। यही अदम्य विश्वास है जिसने दशरथ मांझी के एक छोटे से हथौड़े से पूरा पहाड़ खोद दिया या एंडी डूफ्रेन ने साशंक की जेल से बाहर निकल कर जीहुतनेहो तक की दुर्गम यात्रा की। पांडव भी अगर लाक्षागृह में सुरंग न बनाते तो महाभारत का निर्णायक युद्ध लड़ने से पहले ही हार गए होते। सौरव गांगुली ने कोच ग्रेग चैपल से अपने मतभेद के बाद टीम में वापसी के लिए जो संघर्ष किया वो भी जेल में सुरंग बनाने जैसा ही है।
मतलब यह कि हिम्मत हारना दुनिया का सबसे आसान विकल्प है। कठिन से कठिन असंभव सी परिस्थितियों में भी यह विश्वास बनाए रखना है कि स्थितियों में अब भी परिवर्तन संभव है। सुरंग पर काम जारी रखना है।
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