Tuesday, May 25, 2021

बौद्ध धर्म और इसके उद्भव के आर्थिक कारक

उत्तर वैदिक काल तक आते आते सभ्यता प्रारंभिक वैदिक काल की उलट कृषि व्यवस्था आधारित हो गई थी। प्रारंभिक काल में जहां कृषि व्यवस्था पशुपालन और गोचारण आधारित थी, लोहे के आविष्कार के बाद गंगा यमुना के मैदान में फैले घने जंगलों को साफ कर कृषि योग्य बनाना आसान हो गया इसीलिए समाज की आर्थिक क्रियाएं कृषि के आसपास केंद्रित हो गई। 

कृषि के विकास के साथ साथ ही सामाजिक ढांचे में परिवर्तन आ रहा था। कृषि में उत्पादन करने वाले वैश्य और शूद्र वर्ग के पास धन का अधिशेष अधिक होने लगा। पुरोहित वर्ग और शासक वर्ग के पास इस अधिशेष को हथियाने के लिए संघर्ष बढ़ा। शासक वर्ग ने जहां करों के रूप में कृषक वर्ग से बाह्य आक्रमण से सुरक्षा के आश्वासन के बदले सशस्त्र सेना का गठन किया, वहीं पुरोहित वर्ग ने पारलौकिक मुक्ति और मोक्ष के बदले शासक और कृषि समुदाय से पूजा और अनुष्ठानों के रूप में अपना कर लेना शुरू किया।

शुरू शुरू में तो यह अनुष्ठान छोटे स्तर पर होते थे लेकिन उत्तरोत्तर अनुष्ठानों के आकार और संख्या में वृद्धि होने लगी। यज्ञ अब सामान्य यज्ञ न होकर अश्वमेध यज्ञ और पुत्रेष्टि यज्ञ और अनंत प्रकार के होने लगे। इन यज्ञों में पशु बलि की प्रथा ने विकराल रूप ले लिया। चूंकि कृषि की समस्त क्रियाएं पशुबल के बिना संभव नहीं थी, अत्यधिक पशुबलि के कारण कृषि क्रियाओं पर प्रभाव पड़ने लगा। एक तो वो पहले ही करों के बोझ से दबी थे, कृषि के लिए उपलब्ध पशुओं की संख्या में कमी ने उनकी समस्या दुगुनी कर दी। ऐसी वक्त में ही अनेक संप्रदायों का उद्भव हुआ जिन्होंने पशुबलि के नाम पर होने वाली हिंसा को अनुचित माना। इस बलि की प्रथा से सर्वाधिक प्रभावित कृषक और उत्पादक वर्ग था, इन संप्रदायों की लोकप्रियता कृषक और वैश्य समाज में बढ़ी। चूंकि यह वर्ग समाज में बहुमत में था, इसपर वर्चस्व बनाए रखने के लिए इन संप्रदायों का पुरोहित वर्ग से संघर्ष प्रारंभ हुआ। आगे चल कर कर शासक वर्गों जैसे मौर्य, हरयंक, नंद और शिशुनाग वंश के शासकों ने इन समुदायों को या तो वैचारिक समर्थन दे सुरक्षा प्रदान की या वे स्वयं इसके अनुयायी बने।

ऐसी मान्यता है कि उस काल में कुल पच्चीस से ज्यादा ऐसे संप्रदाय थे, जिनमें जैन संप्रदाय और बौद्ध संप्रदाय सर्वाधिक लोकप्रिय हुए। यद्यपि बौद्ध धर्म और जैन धर्मों के उदय और प्रसार को आप वैदिक धर्म के विरुद्ध एक आध्यात्मिक आन्दोलन के रूप में देख सकते हैं, लेकिन मूल में इन आंदोलनों के कारण आर्थिक थे। कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था और पशुबलि के नकारात्मक आर्थिक प्रभावों ने हमें भगवान बुद्ध और महावीर जैन जैसे संत दिए।

बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएं। 

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