Thursday, May 7, 2020

बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर

उत्तर वैदिक काल में वेदों का ज्ञान पुराणों के कर्मकांडी आडंबर के सामने कमजोर पड़ने लगा। जनमानस में पूजापाठ की विस्तृत विधियों और उसके साथ जुड़ी बड़े पैमाने पर प्रचलित बलि की प्रथा से आम जनजीवन विशेषतः   कृषक और वैश्य समाज अत्यंत दुखी था। ऐसे में भारतवर्ष के क्षितिज पर भगवान बुद्ध का आगमन हुआ। ध्यान दें कि भगवान बुद्ध के आगमन के समय वैदिक धर्म अत्यंत शक्तिशाली था। पुरोहित वर्ग को इस धर्म का प्रमुख प्रायोजक और प्रयोक्ता था, शासक वर्ग पर गहरा प्रभाव रखता था। नीति निर्धारण और निर्माण में उनका वर्चस्व अतुलनीय था। ऐसे समय में आकर भगवान बुद्ध ने पुरोहित वर्ग, धार्मिक कर्मकांडो, और प्रथाओं पर करारी चोट की, उनके सिद्धांतों और प्रभुत्व को खुली चुनौती दी। परिणाम यह हुआ कि वैदिक धर्म का प्रभाव घटा और बौद्घ धर्म अत्यंत लोकप्रिय होकर भारत वर्ष की सीमाओं से दूर क्षेत्रों में भी जाकर फैल गया।

इस घटना के 500 साल बाद यूरोप में प्रभु येसुमसीह आते हैं। तत्कालीन सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था को चुनौती देते हैं। प्रेम और सद्भाव की बातें करते हैं। कमोबेश वही कार्य जो 5 सदी पूर्व भगवान बुद्ध कर चुके होते हैं।

भगवान बुद्ध और प्रभु यीशु मसीह की कहानी यहां तक मिलती जुलती है। अंतर उसके बाद की कहानी में आता है। भगवान बुद्ध 80 साल की दीर्घ आयु तक अपनी बातों का प्रचार करते हैं, भगवान बुद्ध कहलाते हैं और सामान्य रूप से शांति पूर्वक महापरिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं। इसके उलट प्रभु यीशु को दो चोरों के साथ सलीब पर लटका दिया जाता है। 

प्रभु यीशु के जाने के करीब 15 शताब्दियों के बाद के यूरोप में चलते हैं। यूरोप आधुनिक ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में अपनी पलकें खोल रहा है। कोपरनिकस नामक खगोल शास्त्री यह गवेषणा करते हैं कि चर्च की मान्यताओं के उलट पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है ना कि सूर्य पृथ्वी के। कुछ वर्षों बाद गैलीलियो गलीली अपने खगोल दर्शक दूरबीन से इसे प्रमाणित भी करने का प्रयास करते हैं। कोपरनिकस और गैलीलियो दोनों समाज के वर्चस्वशाली वर्ग की मान्यताओं पर चोट करते हैं। 

लगभग उसी समय भारत में बौद्ध धर्म के बाद आए सबसे बड़े सामाजिक आंदोलन भक्ति आंदोलन का प्रादुर्भव हो रहा है। इस आंदोलन के प्रणेताओं में सर्व अग्रणी है संत कबीर। उन की वाणी में तेज ऐसा है  कि उनकी अनगढ़ भाषा में कही गई वाणी सीधे जनता के ह्रदय में उतरती है। यही वाणी और साखिया समाज के ठेकेदारों की छाती में शूल बन कर चुभते हैं। हिन्दू समाज की कुरीतियां हो या मुस्लिम समाज की कट्टरता, कबीर के सामने सभी बेबस हो पानी मांगते नजर आते हैं।  समाज के शक्तिशाली वर्ग के झूठ और पाखंड को कबीर उसी तरह बेनकाब करते हैं जैसा उनके समकालीन गैलीलियो और कोपरनिकस कर रहे होते हैं।

बुद्ध और यीशु की तरह इस कहानी में भी बदलाव अंत का है। गैलीलियो को उनके विचारों के लिए माफी मांगने के लिए विवश किया जाता है, अंधे होकर गैलीलियो कारावास में अपनी मृत्यु को प्राप्त होते हैं। कोपरनिकस भी अपने विचारों के लिए चर्च का कोपभाजन बनते हैं और क्षमा याचना के लिए विवश कर दिए जाते हैं। वहीं उनके समकालीन कबीर जीवन की आखिरी सांस कर ताल ठोक कर अपने विचारों का प्रचार करते हैं और एक सम्मानित जीवन जीकर दुनिया को अपने विचारों की अमूल्य सौगात देकर जाते हैं। 

कल्पना कीजिए कि बुद्ध भारत में नहीं यूरोप में होते, संभवतः किसी सलीब पर लटका दिए गए होते।कबीर यूरोप की किसी जेल में बैठे अपने कहे की बदले प्राणों की भीख मांगते रहते। विश्व को अगर बुद्ध मिले और कबीर मिले, तो इसमें इसमें भारत की सामसिक प्रकृति का योगदान है। हमने हमेशा विपरीत विचारों का सम्मान किया है और हिंसा को कभी भी सम्मान नहीं दिया। भारत में बौद्ध 0.7 प्रतिशत है और बिलकुल सुरक्षित हैं। भारत के संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ने और भारतीयों को सहिष्णुता का ज्ञान बांचने वाले ना केवल अपना इतिहास नकारते हैं बल्कि भारतीय  जीवन के हर पहलू में सतत प्रवाहित सामासिक धारा के शीतल प्रवाह से अपने आप को वंचित करते हैं।

सभी को, समस्त मानवजाति को बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएं।

No comments: