अठारहवीं शताब्दी का पांचवा दशक चल रहा था । अलसाई सी दुपहरी में अपनी मां को खाना बनाते देखता एक बालक की कौतूहल भरी दृष्टि चूल्हे पर चढ़ी पतीले पर पड़ी। उबलते हुए पानी के पतीले का ढक्कन बार बार उठता और गिरता था। बालक के मन में एक विचार आया कि यह जलवाष्प क्या इतना शक्तिशाली है कि पतीले के ढक्कन को उठा सकता है। क्या भाप की इस शक्ति का प्रयोग किसी अन्य कार्य के लिए किया जा सकता है? अगर हां तो कैसे।
इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में भी कोलकाता के शोभाबाजार मेट्रो से उतर कर चहलकदमी करके आप पहुंच सकते हैं सोनागाछी । वही सोनागाछी जिस के मकान की खिड़कियों से झांकती आखें आपको बुलाती हैं इशारे करती हैं और बंद दरवाजों के पीछे चंद रुपयों के लिए मानवता तार तार होती रहती हैं। यह चंद्रमुखियों का इलाका है। फर्क बस इतना है कि उनके देवदास दिन में पच्चीस बार बदल सकते हैं और चुन्नी बाबू चंद्रमुखी के साथ सहानुभूति नहीं रखते बल्कि उसकी कमाई का अधिकतर हिस्सा अपनी जेब में रख लेते हैं। इन चंद्रमुखी की कमाई अंधेरे में होती है और उजाले में यह चंद्रमुखी तभी आती है जब उसे अपने अंधेरे कमरे में लौटने के लिए एक और देवदास की तलाश करनी होती है। यह विश्व की शायद सबसे बड़ी देहमंडी है जहां इंसान की इंसानियत की कसक सिक्कों की खनखनाहट के नीचे दब गई है। क्या कारण है कि जिस कोलकाता शहर को उल्लास का शहर कहा जाता है वहीं पर सिसकियां का स्वर इतना तीव्र है? क्या कारण है कि विद्रूपताओं भरे इस शहर ने छह नोबेल पुरस्कार विजेता दिए हैं? क्या कारण है कि बंगाल पर ही लाल झंडे ने करीब चार दशक का निर्बाध शासन किया?
इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने के लिए हम वापस चलते है अठारहवीं सदी के उस दुपहरी में पानी के पतीले के ढक्कन को गिरते उठते देख विस्मित होते बालक के पास। इस बालक का नाम है जेम्स वॉट। बालक जेम्स अपने इस कौतूहल को यूं ही नहीं जाने देता। जलवाष्प की उस शक्ति का दोहन वह बड़े पैमाने पर करना चाहता है।
जेम्स वॉट की यह कोशिश सफल होती है और वह भाप इंजन का निर्माण करता है। यह भाप इंजन प्रथम औद्योगिक क्रांति का आधार बनता है और विश्व में आधुनिकता का प्रादुर्भाव होता है। इस भाप इंजन की बदौलत घर पर आधारित कुटीर उद्योगों का स्थान फैक्ट्रियों ने ले लिया है और अहर्निश धूम्र उगलते इंजनों और उनसे चलने वाले मशीनों को चाहिए कच्चे माल की अनवरत आपूर्ति । साथ ही साथ बने माल की मांग के लिए चाहिए एक बड़ा बाज़ार।
कच्चे माल के स्रोतों और उनकी फैक्ट्रियों के बने सामानों के बाज़ार के लिए ब्रितानियों का देश अपर्याप्त सिद्ध होता है और उनकी नजर सात समंदर पार भारत पर पड़ती है।
भारत का राजनीतिक नेतृत्व इन सभी बदलावों से बेखबर रीतिकाल के साहित्य के मांसल सौंदर्य का रसास्वादन करने में व्यस्त है। चारण कवियों की चाटुकारी से उब होने पर मन बहलाने के लिए हरम का रुख किया जाता है और हरम से जी भर जाए तो शिकार करने का बंदोबस्त किया जाता है। मुगलिया साम्राज्य नाम भर का रह गया है और उनके सामंतों में एक मुर्शीद कुली खां बंगाल का नवाब है। बंगाल भारत का सबसे समृद्ध प्रांत है लेकिन राजनीतिक रूप से सबसे सुभेद्य। ढाका के कारीगरों द्वारा बनाई गई रेशमी साड़ी एक अंगूठी से आर पार हो जाती है। बंगाल का नवाब सिरजुद्दौला इससे पहले कि कुछ समझ पाए क्लाइव और जाफर के षडयंत्र का शिकार हो जाता है और अपनी प्रजा के भविष्य को गोरी सरकार के काले मंसूबों के हवाले कर देता है। और गोरों को वह सब मिल जाता है जो उनको , उनकी कंपनी और उनकी ब्रिटेन की फैक्ट्रियों को चाहिए होता है।
अगर जेम्स वॉट के उस पतीले और सिराज की प्लासी में पराजय का संबंध यहां तक आप समझ गए हैं तो आगे की कहानी आसान होगी। ईस्ट इंडिया कम्पनी बंगाल पर स्थायी बंदोबस्त या जमींदारी प्रथा लागू करती है। जिसके तहत किसानों से नकद में लगान वसूला जाने लगा जिसकी न्यनूतम सीमा तो तय थी लेकिन अधिकतम सीमा जमींदार तय करने लगे। आखिर कुल लगान के ग्यारहवें हिस्से पर ही उनका अधिकार था बाकी सारा कंपनी बहादुर को जमा करना होता था। धन कमाने का एक ही मार्ग था अधिकाधिक करों की वसूली। परिणाम यह हुआ कि विश्व का सबसे समृद्ध क्षेत्र दुर्भिक्ष का केंद्र बन गया। बंगाल और अकाल समानार्थी हो गए।
आशा करता हूं आप अब तक मेरे साथ हैं। अगर हां तो अब हम अपने प्रश्नों के उत्तर के अत्यंत समीप हैं। जेम्स वाट के इंजन से बंगाल का दुर्भिक्ष कैसे जुड़ा है आप समझ चुके हैं। कम्पनी का अत्याचार कारीगरों पर भी हुआ। उनके हस्तकौशल का कोई खरीदार ना रहा , मशीनों के पिस्टन से उनकी नाज़ुक उंगलियां कब तक संघर्ष कर पाती। वे भी किसान पहले बने और भूमिहीन मजदूर बाद में। लेकिन जमींदार का लगान सुरसा के मुख की तरह बड़ा ही होता गया। अपनी फसल और ज़मीन बेचने के बाद भी जब किसान लगान ना भर पाते तो अपनी बेटियों तक को बेचने की नौबत तक आ गई। पेट की आग सारी नैतिकता और आदर्शों को जला देती है और उसकी ताकत के आगे मानवता सर झुका देती है। मानव मूल्यों की बात क्षुधापीडितों के पल्ले नहीं पड़ती। जैसे जैसे दुर्भिक्ष का काल बढ़ता गया, बेची गई बेटियों का बाज़ार बढ़ता गया। वही बाज़ार आज सोनागाछी कहलाता है ।
यही सोनागाछी शरत चन्द्र की चंद्रमुखी का निवास है और देवदास उस जमींदार का लड़का है जिसके हाथ में किसानों के खून से भी गाढ़ा मय का प्याला है और जिसे पीकर वह पारो और चंद्रमुखी के बीच डोलता रहता है। जमींदार ही थे जिनके बच्चे लंदन जाकर पढ़ सकते थे। यही कारण है कि जमींदारों के परिवार से आने वाले राजा राम मोहन राय लंदन जाकर पढ़ सके तो सत्येन्द्र नाथ ठाकुर पहले आईसीएस अधिकारी बन सके। गुरुदेव रवींद्रनाथ भी जमींदार थे इसीलिए उनके पास रवीन्द्र संगीत और गीतांजलि रचने के लिए समय था। यही कारण है कि भारत का पहला नोबेल बंगाल में ही आया। जो श्रृंखला जेम्स वॉट के इंजन से शुरू हुई उसकी ही कड़ी है कि दरिद्र नारायणों की सेवा करने की आवश्यकता मैडम टेरेसा को पड़ी। युवा टेरेसा के मदर टेरेसा और और फिर संत टेरेसा बनने के कहानी के बीज भी उस अल्साई सी दुपहरी में बोए गए थे जिसकी चर्चा हमने शुरू में की। मेरा विश्वास है कि अब आप यह भी समझ गए होंगे कि पूरे भारत में बंगाल पर ही वामपन्थ का प्रभाव सर्वाधिक क्यों पड़ा ? गरीब किसानों और शोषित मजदूरों की अस्थियों से बनी खाद पर वामपन्थ की फसल सबसे अच्छी उगती है।
गणित का एक सिद्धांत है जिसे बटर फ़्लाई प्रभाव कहते हैं। यह कहता है कि विश्व के एक कोने में एक तितली के फड़फड़ाने से विश्व के दूसरी तरफ तूफान आ जाता है। भारत और विश्व में आए साम्राज्यवाद की उस सुनामी की जड़ें उस पानी के पतीले में उबलते पानी से सींची गई थी। हर घटना महत्वपूर्ण है और हर घटना का एक कारण है। अगर आप कारण समझते हैं तो दुनिया को समझना कतिपय सरल हो जाता है।
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