Saturday, December 7, 2019

आक्रोश का नियंत्रण

भारत विविधतापूर्ण संस्कृति है। यहां की मिट्टी में बुद्ध आए तो अंगुलिमाल भी। पृथ्वीराज हमारे अपने हैं तो जयचंद भी पराया नहीं था। भगवान राम को अगर कौशल्या ने गोद उठाया होगा तो संभव है कि मंथरा ने  भी एक बार ही सही उन्हें लाड़ जरूर किया होगा। इसीलिए भारतीय घटनाओं और पात्रों का मूल्यांकन करते वक़्त इसका ध्यान अवश्य रखें कि मात्रा के परिमाण में विसरण काफी ज्यादा हो सकता है । अपने विचार को रखते वक़्त माध्यमिक प्रवृति और विसरण दोनों के परिमाणों को तौल कर देखें। हैदराबाद की घटना के बाद आपका मूल्यांकन कोई आवश्यक नहीं कि आपके मित्रजनों से मेल खाता हो। कल  अगर घटना से जुड़े नए तथ्य प्रकाश में आ जायें तो अपने विचारों में उनको समाहित करने की जगह बचा कर रखें। इससे ही विचारों में संतुलन और नियंत्रण आता है।
 
हैदराबाद में आरोपियों का एनकाउंटर होना उचित नहीं था पर इसका अर्थ यह नहीं है कि आप आरोपियों को सीधे राजगुरु सुखदेव और भगत सिंह बना कर घटना को देखें। हमारी पुलिस की कार्यशैली में हजारों कमियां हो सकती हैं लेकिन उन्हें जनरल डायर घोषित करने से पहले एक पल का चिंतन आवश्यक है। बलात्कार की भर्त्सना जरूर करें, जम कर करें लेकिन आवेश में आकर पूरे भारत को रेपीस्तान कहना भी उचित नहीं है। समाज में कमियां हैं, उनको दूर करने के लिए जनभागीदारी और सर्ववर्ग का सहयोग लगेगा। हमने सती प्रथा को समाप्त किया है लेकिन उसके लिए राजा राम मोहन राय ने कभी भारतीय समाज को नारी हंता नहीं कहा। अस्पृशयता को हमने जीत लिया है, लेकिन उसके लिए ब्राह्मणों और सामंती प्रतिनिधियों का एनकाउंटर नहीं किया। शनै शनै और नियंत्रित जन आंदोलन ही दीर्घकालिक  और स्थायित्व पूर्ण समाधान दे सकता है। 

हमने इतिहास में पढ़ा है कि मानव की आग की खोज की और मानव विकास का चक्र वहीं से प्रारंभ हुआ। सच कहें तो हमने आग की खोज नहीं की। आग तो प्रकृति में हमेशा से थी। मानव ने खोज की थी सिर्फ उसको नियंत्रण करने की कला का। आग की खोज वस्तुतः उसके नियंत्रण की खोज थी।  नियंत्रित आग ही मानव के विकास का आधार बना। जन आक्रोश भी अग्नि की तरह है। उसकी उपयोगिता तब तक ही है जब तक वह नियंत्रित रहे। 

सबको यह बात समझाना संभव भले ही ना हो, हम स्वयं को तो यह अवश्य समझा सकते हैं। बस आगे अपने आक्रोश को चाहे वह समाज की तरफ हो, या व्यवस्था की तरफ या फिर आपराधिक तत्वों की तरफ, उसके उद्घाटन से पहले सुनिश्चित कर लें कि आपने आक्रोश की अग्नि  को नियंत्रित करने का प्रबंध कर रखा है। आप कार चलाना नहीं सीखते, आप कार को रोकना सीखते हैं। कार की गति का रोमांच तब तक ही है जब तक आपको यह पता है कि कार आपके रोकने से इच्छानुसार रुक जाएगी। अगर नहीं तो
 आपकी   गति की मंजिल अस्पताल या शमशान है, आपका इच्छित गंतव्य नहीं। 

अपने विचारों की अग्नि को नियंत्रण में रखें। जिस प्रकार बिना कार को पूरी तरह नियंत्रण में रखने की कला सीखे बगैर आप वाहन लेकर नेशनल हाईवे पर नहीं निकलते, बिना अपने आक्रोश को नियंत्रित किये, उनका प्रचार क्यूं करने लगते हैं।

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