इससे ऊपर चलिए । कुछ पीढ़ियों की सामूहिक कल्पना शीलता का परिणाम है क्रिकेट का खेल । यह प्रकृति प्रदत्त नहीं है हमारी शारीरिक विशेषताओं जैसे आँख कान नाक की तरह । हमने इस खेल को बनाया है । उसी तरह देशों की अवधारणा भी बिल्कुल मानव की रचना शीलता पर आधारित है । प्रकृति को कोई अन्य जीव देशों साम्राज्यों आदि की सीमाओं को नहीं जानते और नहीं मानते । यही चीज़ें धर्म , प्रेम , ईश्वर , जाति आदि के लिए भी सच है । सारे वाद , सारे विवाद ,सारी विचारधाराये और इनसे जनित सारे संघर्ष और समस्याएं भी इसी में शामिल हैं । मानव ने अपने आप को इन कल्पित संकल्पनाओं के आधार पर संगठित किया है , इन्ही आधारों पर वह अपनी खुशियाँ ढूँढता है जैसे जितने भी त्योहार हैं , मानव द्वारा कल्पित हैं , चाहे होली हो या क्रिसमस । इन्ही आधारों पर मानव दुखी होने का कारण ढूँढ लेता है । जैसे कि क्रिकेट में हार पर फैन उदास हो जाते हैं और जीत पर प्रसन्न हो जाते हैं । दोनों का आधार कल्पित और कृत्रिम है । संसार का कोई भी जीव ऐसे कारणों से ना उदास होता है और ना हर्षित । हमारी कल्पना ही है जो निर्जीव चंद्रमा में अपने महबूब को और सुदूर तारों में अपने मृत पूर्वजों को खोज लेता है ।
यह कल्पना शीलता ही मानव सभ्यता का आधार है जो ख़ुद की बनायी चीज़ों को उनके मूल रूप से अलग रूप में देख कर अपने जीवन को अलग अलग रूप से कभी धनात्मक और कभी ऋणात्मक रूप से प्रभावित करता है ।
थोड़ा विचार करके देखिए तो यह सारा मायाजाल हमारे दिमाग़ की उपज है । आप इन संकल्पनाओं को माने या ना माने आपकी प्राकृतिक संरचना में कोई बदलाव नहीं आने वाला ।
आप आप चाहें तो भारतीय अभिनेता के जाने और भारत के क्रिकेट श्रृंखला की पराजय का दुख महसूस कर सकते हैं या विचार कर सकते हैं कि यह दुख महसूस करना या ना करना आपकी चॉइस हैं कोई प्रकृति सिद्ध नियम नहीं । प्रकृति की नज़र में हम सिर्फ़ एक प्राणी हैं जिसके नियम सिर्फ़ हमारी क्षुधा , निद्रा और मैथुन और मृत्यु तक सीमित हैं । बाक़ी आपकी भावनाएँ सब कृत्रिम हैं बनावटी हैं मानव जनित हैं और सिर्फ़ आप पर निर्भर करती हैं कि यह कृत्रिम संसार आप पर वास्तविक प्रभाव डाल सकता है या नहीं ।
No comments:
Post a Comment