कि गहरे कुएं को कहते हैं अंधा कुआं।
कुआं अंधा नहीं होता,
गिरने वाले भी आंखों से महरूम नहीं होते,
पर भीतर उतरते ही
नज़रें बेकार हो जाती हैं,
रास्ते बंद हो जाते हैं।
नीचे गिरते लोग
बस अपनी ही आवाज़ सुनते रहते हैं,
प्रतिध्वनि की कैद में
और गहरे धँसते जाते हैं।
किसी और की बात
उनके कानों तक पहुँचती ही नहीं,
क्योंकि उनका सारा अस्तित्व
अपने ही शोर में डूबा होता है।
यही तो है असली अंधापन—
न कहीं जाना,
न किसी और को सुनना,
सिर्फ़ गिरते रहना
और अपनी ही आवाज़ में कैद हो जाना।
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